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वैदिक जी जीवन भर हिंदी के सम्मान के लिए लड़ते रहे

दमदार लेखन शैली और प्रभावशाली वक्तृत्व कला डॉ. वेदप्रताप वैदिक की ताकत है। लेकिन, हिन्दी के सम्मान के लिए लड़ाई उनकी पहचान है। रूसी, फारसी, अंग्रेजी और संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं को जानने वाले डॉ. वेदप्रताप वैदिक अपने हिन्दी प्रेम को लेकर सर्वाधिक चर्चित तब हुए जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर अपना शोध प्रबंध हिन्दी में लिखा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रशासन ने उनके शोध प्रबंध को अस्वीकार कर दिया। उनसे कहा गया कि जाइए, अपना शोध प्रबंध अंग्रेजी में लिखकर लाइए। लेकिन, महज 13 साल की उम्र में हिन्दी के लिए सत्याग्रह कर जेल जाने वाले डॉ. वैदिक क्या यूं ही हार मान जाते।

यह मामला भारत के सर्वोच्च सदन भारतीय संसद तक पहुंचा। वर्ष 1966-67 में संसद में जबर्दस्त हंगामा हुआ। डॉ. राममनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी, मधु लिमये, आचार्य कृपलानी, हीरेन मुखर्जी और चन्द्रशेखर सहित तमाम राजनेताओं ने डॉ. वैदिक का समर्थन किया। आखिर में इन्दिरा गांधी की पहल पर जेएनयू के संविधान में संशोधन हुआ। डॉ. वैदिक के शोध प्रबंध को स्वीकार किया गया। तब से देशभर में डॉ. वेदप्रताप वैदिक की पहचान हिन्दी के योद्धा की हो गई। देशभर में घूम-घूमकर, हिन्दी में भाषण देकर आवाम को सम्मोहित करने वाले नरेन्द्र मोदी ने जब ऐतिहासिक विजय के बाद राष्ट्रपति को अंग्रेजी में पत्र लिखा तो उनका विरोध करने वालों में डॉ. वेदप्रताप वैदिक सबसे आगे रहे। जबकि आम चुनाव-2014 से पूर्व वे मोदी के समर्थन में लेख पर लेख लिखे जा रहे थे।

पत्रकारिता में 50 साल से अधिक समय बिताने वाले डॉ. वैदिक के चिंतन और विचारों का जादू भारत में ही नहीं विदेश में भी चलता है। दुनियाभर में, असरदार शख्शियतें छोटे कद के लेकिन ऊंचे माथे वाले डॉ. वैदिक से प्रभावित हैं। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल में राजनेता न होने के बाद भी डॉ. वैदिक को डिप्टी पीएम कहा जाता रहा। इंदिरा गांधी से अटल बिहारी वाजपेयी तक उनके मुरीद रहे। बाबा रामदेव के ‘कालाधन वापस लाओ’ अभियान के तो वे सेनापति रहे हैं।

करीब 80 देशों की यात्रा कर चुके डॉ. वेदप्रताप वैदिक की हाल ही में पाकिस्तान यात्रा काफी हंगामाखेज रही। मुम्बई ब्लास्ट के मास्टर माइंड हाफिज सईद के साथ मुलाकात ने डॉ. वैदिक की देशभक्ति पर ही प्रश्न चिह्न खड़े करवा दिए। हालांकि सब जानते हैं कि डॉ. वैदिक एशिया महाद्वीप में शांति के लिए प्रयासरत हैं।

इंदौर में 30 दिसम्बर, 1944 को जन्मे डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने 1958 में बतौर प्रूफ रीडर पत्रकारिता कदम रखा था। इसके बाद तो उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को नित नई ऊंचाइयां दीं। वे 12 साल तक नवभारत टाइम्स में पहले सह सम्पादक फिर सम्पादक के पद पर रहे। उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया।

“वेदप्रताप वैदिक के संस्कार समाजवादी और हिन्दी के रहे हैं। इसलिए उनके लेखन में सदैव प्रखरता और आक्रामकता रही है। उनकी राष्ट्रवादिता संदेह से परे है और उनके उद्देश्यों पर कभी शक नहीं किया जा सकता।”

 – रघु ठाकुर, प्रख्यात समाजवादी चिन्तक

–  जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका “मीडिया विमर्श” में प्रकाशित आलेख।

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