Wednesday, April 24, 2024
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भारत के सुनहरे भविष्य के लिए वैदिक ज्ञान को अपनाएँ

गणित के क्षेत्र में फील्ड मेडल पाने वाले मंजुल भार्गव संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों को इसका श्रेय इन शब्दों में देते हैः ''प्राचीन भारतीय ग्रंथों में गणित के सवाल भी कविता और गीत-संगीत के जरिए पेश किए जाते थे…कविता और गीत के अंत में आपको एहसास होता था कि कोई प्रमेय बता दी गई है, गणित की एक पहेली इसके माध्यम से रख दी गई है.'' जैन विद्वान और कवि हेमचंद्र ने फिबोनाची श्रृंखला की संख्याओं की खोज की थी, जो उनके दो सदी बाद पैदा हुए इतालवी गणितज्ञ लियोनार्दो फिबोनाची के नाम से जानी जाती हैं.
 
प्राचीन भारत के गौरवमय अतीत के बारे में ऐसे साक्ष्यों के बाद वैदिक विमान की जरूरत किसे रह जाती है?  हमारे वैदिक अतीत को अपनी महानता स्थापित करने के लिए मिथकीय वैज्ञानिक उपलब्धियों के सहारे की कोई जरूरत नहीं है. यह तो उसके विचारों और मूल्यों में ही निहित है जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितना कई सदी पहले थे. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''वेदांत में पाप की अवधारणा नहीं है, सिर्फ भूल-चूक या गलतियों का ही जिक्र है. और सबसे बड़ी गलती भी यही है कि किसी को आप कमजोर, पापी, लाचार प्राणी बताएं, कहें कि आपके पास क्षमता नहीं है और आप यह नहीं कर सकते, वह नहीं कर सकते.'' मानवीय संभावनाओं के बारे में यह शानदार कथन है जो धर्म की भयाक्रांत करने वाली बंदिशों के बारे में चरमपंथियों की व्याख्या से कोसों दूर है.  
 
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान ने अपनी प्रबंधन प्रणालियों के विकास के लिए काइजेन जैसे प्राचीन ज्ञान का इस्तेमाल किया था, जिसका मतलब होता है ''बेहतरी के लिए बदलाव.'' इसकी मदद से उसने विशिष्ट और प्रभावशाली ''जापानी तरीका'' ईजाद किया था. सोच कर देखिए, हम भी अपने वेदों से विचार को लेकर एक विशिष्ट ''भारतीय तरीका'' खोज निकालते तो हमारे देश में चीजें कितनी बदल जातीं.   वेदों में इस पर खासा जोर है कि हर व्यक्ति समान रूप से ताकतवर और समर्थ होता है. अच्छे नेतृत्व की खासियत अनुयायियों को सक्षम बनाना है, न कि उनके ऊपर कुछ थोपना. मनुष्य की स्वाभाविक अवस्था ज्ञान की है, अज्ञान की नहीं. क्षमता और उत्पादकता के लिए वेद समरसता की बात करते हैं. यह विचार सार्वभौमिक स्तर पर साझा ज्ञान की अवधारणा से कितना मेल खाता है.  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ''मैं कुछ करने का सपना देखता हूं, कुछ होने का नहीं.'' वेदों में विलक्षण क्षमताएं हासिल करने के चार रास्ते बताए गए हैं- कर्मी (निःस्वार्थ कर्म का रास्ता), भक्त (ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण), योगी (रहस्यवादी रास्ता) और ज्ञान (प्रज्ञा का रास्ता). ये रास्ते मिलकर ऐसी संरचनाओं का निर्माण कर सकेंगे जिनमें प्रतिभा पहचान और प्रबंधन के लिए नए मुहावरे गढऩे की ताकत हो.   कोलंबिया विश्वविद्यालय में संस्कृत के विद्वान शेल्डन आइ. पोलक ने कहा, ''अपने सांस्कृतिक परिवेश के विनाश को रोकने के लिए भारत के युवाओं को प्राचीन भारतीय मूल्यों को समझना होगा. यह भी कि कैसे वे वर्तमान संदर्भों में अभिव्यक्त होते हैं. उन्हें आधुनिक विषयों में समाहित करना होगा, भारत के यथार्थ में निबद्ध उन विचारों को नए सिरे से आत्मसात करना होगा जो शाश्वत हैं.''   ग्रीक@लैटिन ग्रंथों का अध्ययन पश्चिम की शैक्षणिक परंपरा का हिस्सा रहा है.
 
सवाल उठता है कि पश्चिम के कामयाब लोगों की पीढिय़ों को ग्रीक@लैटिन ग्रंथों ने जो दिया, क्या प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऐसा हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए कर सकेंगे?  शुरुआत के तौर पर हम यह कर सकते हैं कि वेदों का एक सार-संक्षेप तैयार करके स्कूलों में लगवाएं ताकि हमारे बच्चों को समग्र शिक्षा मिल सके. आज के युवा डिजिटल विश्व के नागरिक हैं. वे अक्सर जिन विचारों को पसंद करते हैं और अपनाते हैं, वे डिजिटल जगत से प्रभावित होते हैं. स्कूल अपने यहां रचनात्मक ई-शिक्षण कैप्सूल निर्मित कर सकते हैं जिनमें प्राचीन भारतीय साहित्य और दर्शन को मुहावरों के माध्यम से उन्हें समझाया गया हो. इसके लिए वेक्टर और मोबाइल ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.  
 
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी में चयनित प्राचीन भारतीय साहित्य का विश्व स्तरीय अनुवाद खूबसूरत संस्करणों में प्रस्तुत किया गया है. साथ में मूल पाठ भी प्रकाशित है. अब दुनिया भर के कॉलेज अपने छात्रों को भारतीय ग्रंथों का शिक्षण इनके माध्यम से दे सकते हैं.  
 
मुझे रामायण, महाभारत और भगवत् गीता की वे कहानियां, वैदिक ऋ चाएं, उर्दू शायरी और अमर चित्र कथा के वे संग्रह अब तक याद हैं जो मेरी दादी मुझे सुनाया करती थीं. इन कहानियों से जो मूल्य मुझे प्राप्त हुए, वे आज तक भारतीयता के प्रति मेरे भीतर मौजूद गौरव और भावनाओं को जगाए रखते हैं. मैंने इनका गहरा अध्ययन किया होता तो मेरी भारतीय पहचान पश्चिमी मूल्यों के प्रभाव से धुंधली नहीं पड़ पाती.  
 
वेदों का ज्ञान आधुनिक भारत पर सकारात्मक असर डालने में सक्षम है. इससे विचारों में एकरूपता, सामाजिक विभाजनों को दूर करने और विशुद्ध भारतीय तरीके निर्मित करने के रास्ते खुल सकते हैं.   भारत का राजनैतिक उभार अब हो रहा है. क्या इसमें भारत की विरासत कोई भूमिका निभा सकती है? क्या हम ऐसा कोई आंदोलन खड़ा कर सकते हैं जो न सिर्फ हमारे मूल्यों को संरक्षित कर सके बल्कि उनका इस्तेमाल करके हम अपने सामाजिक-आर्थिक विकास को भी टिकाए रख सकें और गति प्रदान कर सकें जिससे भारत की शाश्वत प्रज्ञा और आध्यात्मिक शक्ति की पुनस्र्थापना हो? हमारा भविष्य हमारे प्राचीन अतीत के प्रति एक श्रद्धांजलि बन सकता है. तब हमारा वैदिक अतीत हमारे वैदिक भविष्य में तब्दील हो जाएगा.  
 
(गीतांजलि किर्लोस्कर किर्लोस्कर टेक्नोलॉजीज की अध्यक्ष हैं और वैदिक जीवन मूल्यों में उनकी गहरी आस्था है))  
 
साभार-  http://aajtak.intoday.in/  से 

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