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कर्नाटक के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति में क्या गुल खिलाएंगे

कर्नाटक विधानसभा के परिणामों से उपजे सवाल…
1.क्या 2024के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी जी कि चुनावी राह कठिन हो सकती हैं?;
2.क्या नरेंद्र मोदी जी की राजनीतिक लोकप्रियता कम हो रही हैं? और
3.क्या कांग्रेस बीजेपी को हराने में सक्षम हो गई हैं?

भाजपा 2014 से अब तक सत्ता में है, व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सशक्त ,चमत्कारिक एवं ऊर्जावान केंद्रीय नेतृत्व हैं। भारत की संसदीय व्यवस्था में संघीय सरकार व इकाई सरकार लगभग समान राजनीतिक व संवैधानिक हैसियत रखते हैं ।अवशिष्ट शक्तियां, सामरिक क्षेत्र ,संचार क्षेत्र ,वित्तीय क्षेत्र व अखंड भू – भाग या वैदेशिक क्षेत्र है जिस पर केंद्रीय सरकार को अनन्य अधिकार है ।इन विषयों पर अधिकारिता के कारण केंद्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में ताकतवर होती है।

भारतवर्ष में मतदाताओं का व्यवहार/ चुनावी व्यवहार संघीय स्तर व राज्य स्तर पर अलग – अलग होता है ।नरेंद्र मोदी के लिए कर्नाटक की हार का कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं हैं;क्योंकि 2014 के बाद सामरिक क्षेत्र में गुणात्मक सुधार हुआ है, संचार क्षेत्र में भी उत्साहजनक व संतोषजनक प्रगति हुई है एवं वैदेशिक क्षेत्र क्षेत्र में 2014 से तुलनात्मक स्तर पर गुणात्मक सुधार हुआ है ।भारत के मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जनादेश अलग-अलग तरह से देते हैं जैसे राजस्थान और दिल्ली में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी ,लेकिन लोकसभा चुनाव में राजस्थान में 25 में से 24 व दिल्ली में 7 में से 7 सीटें प्राप्त हुई थी ।

साल 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 224 विधानसभा सीटों में 40 पर सिमट कर रह गई थी, लेकिन 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को 28 में से 17 सीटों पर जीत मिली थी ।वही लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी 28 सीटों पर जीत मिली थी। मेरा मानना है कि कर्नाटक विधानसभा के चुनावी नतीजों के आधार पर नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को कमतर आंकना अभी जल्दबाजी होगा। साल 2024 के आम चुनाव पर कर्नाटक के चुनावी नतीजों का प्रभाव शून्य है ।मेरा व्यक्तिगत विश्लेषण है कि केंद्रीय नेतृत्व को राज्य नेतृत्व व इकाई नेतृत्व से लोकप्रिय ,ईमानदार व कर्मठ नेताओं को अग्रसर करना चाहिए।

2024 के आम चुनाव एवं राज्य स्तरीय चुनाव में कांग्रेस की राह कठिनाई भरी हैं।राजस्थान में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत का विवाद बढ़ता ही जा रहा है। सचिन पायलट का अपनी ही सरकार के विरोध में आमरण अनशन व धरना प्रदर्शन सांगठनिक कमजोरी व केंद्रीय नेतृत्व के आदेश की एकता का अभाव है।मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जा चुके हैं और इसका सीधा चुनावी वर्धक कांग्रेस की सांगठनिक सेहत पर रहा हैं। राहुल गांधी जी जैसे बड़बोले और और अदूरदर्शी नेता का जनादेश पर किसी भी प्रकार का राजनीतिक पकड़ नहीं है ;क्योंकि यह जीत स्थानीय मुद्दों व चुनावी रेवड़ी का विषय है। इस जीत का मनोवैज्ञानिक असर रहेगा, लेकिन मनोनैतिक स्तर पर मोदी जी की लोकप्रियता परंपरागत और करिश्माई व्यक्तिव के रूप में बनी रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक की हैसियत से कह सकता हूं कि “कर्नाटक वर्तमान है ;एवं भारत भविष्य हैं”।

साल 2024 में कांग्रेस बीजेपी को हराने में असक्षम हैं; क्योंकि कांग्रेस के पास जमीनी मजबूत संगठन का अभाव है। शारीरिक स्तर वह मानसिक रूप से वयोवृद्ध कांग्रेसी अध्यक्ष जिसके कारण विपक्षी एकता भी मृग मरीचिका हैं।अपरिपक्व, अगंभीर, अतार्किक एवं अवैज्ञानिक सोच वाले राहुल जी के नेतृत्व में पार्टी के कद्दावर नेताओं की आस्था भी नहीं है ।भारतीय राजनीति में मैकियावेली के नाम से जाने वाले कौटिल्य का कहना है कि” एक विवेकशील व्यक्ति पिता के हत्यारे को भूल सकता है, लेकिन संपत्ति के हड़पने वाले को नहीं”। कांग्रेस ने जनता – जनार्दन को कुशासन और अस्थिरता, हड़पन ( 2G स्पेक्ट्रम व कोल नीलामी) दिया है; इसलिए 2024 का आम चुनाव कांग्रेस के लिए अभी भी लिटमस परीक्षण हैं।

(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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