Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेपंजाब से सीखे सारा भारत

पंजाब से सीखे सारा भारत

अब से लगभग 65 साल पहले मैंने इंदौर में एक आंदोलन चलाया था कि सारे दुकानदार अपने नामपट हिंदी में लगाएं। अंग्रेजी नामपट हटाएं। दुनिया के सिर्फ ऐसे देशों में दुकानों और मकानों के नामपट विदेशी भाषाओं में लिखे होते हैं, जो उन देशों के गुलाम रहे होते हैं। भारत को आजाद हुए 75 साल हो रहे हैं लेकिन भाषाई गुलामी ने हमारा पिंड नहीं छोड़ा है। जो हाल हमारा है, वही पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार का भी है। नेपाल, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों में ऐसी गुलामी का असर काफी कम दिखाई पड़ता है। इस मामले में पंजाब की आप पार्टी की सरकार ने कमाल कर दिया है। उसने अब यह नियम कल (21 फरवरी) से लागू कर दिया है कि दुकानों पर सारे नामपट पंजाबी भाषा में होंगे और सारी सरकारी वेबसाइट भी पंजाबी भाषा में होंगी। जो इस नियम का उल्लंघन करेगा, उसे 5 हजार रु. तक जुर्माना भरना पड़ेगा।

इससे भी सख्त नियम महाराष्ट्र में लागू हैं। वहां नामपट यदि मराठी भाषा और देवनागरी लिपि में नहीं होंगे तो एक लाख रु. तक जुर्माना ठोका जा सकता है। तमिलनाडु में भी जुर्माने की व्यवस्था है। कर्नाटक में भी नामपटों को कन्नड़ भाषा में लिखने का आंदोलन जमकर चला है। यदि सारे भारत के प्रांत इसी पद्धति का अनुकरण करें तो कितना अच्छा हो। सबके घरों और दुकानों पर नामपट मोटे-मोटे अक्षरों में अपनी प्रांतीय भाषाओं में हों और छोटे-छोटे अक्षरों में राष्ट्रीय संपर्क भाषा हिंदी में हों और यदि कोई किसी विदेशी भाषा में भी रखना चाहें तो रखें। यदि यह नियम सारे देश में लागू हो जाए तो एक-दूसरे की भाषा सीखना भी काफी सरल हो जाएगा।

यदि पंजाब की आप सरकार इतनी हिम्मत दिखा रही है तो दिल्ली में केजरीवाल की सरकार भी यही पहल क्यों नहीं करती? दिल्ली अगर सुधर गई तो उसका असर सारे देश पर होगा। हमारे सभी राजनीतिक दल आजकल वोट और नोट के चक्कर में पागल हुए हैं। उन्हें समाज-सुधार से कोई मतलब नहीं है। भाषा के सवाल पर कानून बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ रही है? यह तो लोकप्रिय जन-आंदोलन बनना चाहिए।

जैसे 5-7 साल पहले मैंने ‘‘स्वभाषा में हस्ताक्षर’’ अभियान चलाया था। अब तक लगभग 50 लाख लोगों ने अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी से बदलकर स्वभाषाओं में करवा लिए हैं। भारत के लोगों में स्वभाषा-प्रेम कम नहीं है लेकिन उसे जागृत करने का जिम्मा हमारे राजनीतिक दल और नेता लोग ले लें तो भारत को महाशक्ति बनने में देर नहीं लगेगी। दुर्भाग्य है कि हमारे साधु-संत, मौलवी और पादरी लोग भी भाषा के मुद्दे पर मौन रहते हैं। क्या उन सब पर मैं यह रहस्य उजागर करूं कि कोई भी राष्ट्र विदेशी भाषा के दम पर महाशक्ति नहीं बना है।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार