Friday, April 19, 2024
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संघ को पाठ्यक्रम से जोड़ने पर बवाल क्यों?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार, दर्शन एवं इतिहास को नागपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने पर कांग्रेस का विरोध उनके पूर्वाग्रह एवं भारत के वास्तविक इतिहास को झुठलाने एवं धुंधलाने की कुचेष्टा ही कहा जायेगा। संघ का भारत की आजादी एवं इसके नवनिर्माण में अभूतपूर्व योगदान रहा है और उसका स्वर्णिम इतिहास है, जिसे स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का अर्थ है भारत के वास्तविक इतिहास को अक्षुण्ण रखना, लेकिन कांग्रेस ने आजादी के बाद से ही संघ के इतिहास को धूमिल करने की हरसंभव कोशिश की है, उसने उजालों पर कालिख पोतने के प्रयास किये हैं। आजादी की लड़ाई सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार या कांग्रेस ने नहीं लड़ी थी। इस लड़ाई में हर व्यक्ति अपने तरीके से विदेशी शासन के विरोध में संघर्षरत रहा है, जिसमें संघ परिवार एवं उसके सदस्यों का भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है, इस इतिहास कोे छात्रों को पढ़ाया ही जाना चाहिए, इसका विरोध करने वालों का घोर विरोध होना चाहिए। क्योंकि यह विरोध उन लोगों का है, जिन्हें अंधेरे सायों से प्यार है। ऐसे लोगों की आंखों में किरणें आंज दी जाये ंतो भी वे यथार्थ को नहीं देख सकते। क्योंकि उन्हें उजाले के नाम से ही एलर्जी है। संघ के नाम से ही एलर्जी रखने वालों पर तरस आता है। तरस उनकी बुद्धि पर आता है कि वे सूरज के उजाले पर कालिख पोतने का असफल प्रयास करते रहे हैं, आकाश में पैबंद लगाने की कुचाले चलते रहे हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर सागर यात्रा करने का प्रयास करते रहे हैं।

भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने, भारतीय संस्कृति को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन संघ की स्थापना की गई थी। इस साल विजयदशमी के दिन संघ अपने 93 साल पूरे कर लेगा और 2025 में यह संगठन 100 साल का हो जाएगा। नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ संघ मौजूदा समय में विराट रूप ले चुका है। इसके इसी विराट स्वरूप को पिछले दिनों नागपुर विश्वविद्यालय ने बीए, इतिहास (द्वितीय वर्ष) के पाठ्यक्रम के तीसरे खंड में परिचयात्मक इतिहास और राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका के रूप में शामिल किया गया। यह भारत का इतिहास (1885-1947) इकाई में एक अध्याय के रूप में जोड़ा गया है। इसमें बताया गया है कि संघ की स्थापना कब हुई, उसकी विचारधारा और नीतियां क्या हैं, इसके शीर्ष पदाधिकारी कौन रहे हैं। इस इतिहास को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का अर्थ है संघ के दृष्टिकोण से छात्रों को अवगत कराया जाना एवं एक सशक्त भारत के निर्माण में संघ की सकारात्मक भूमिका को प्रभावी ढ़ंग से प्रस्तुति देना। यह एक दस्तक है, एक आह्वान है जिससे न केवल सशक्त भारत का निर्माण होगा, बल्कि इस अनूठे काम में लगे संघ को लेकर बनी भ्रांतियांे एवं गलतफहमियों के निराकरण का वातावरण भी बनेगा। प्रश्न है कि संघ के इतिहास को पढ़ाने की आखिर क्यों जरूरत आ पड़ी? संघ को पढ़ाया जाना इसलिये जरूरी है कि इसमें राष्ट्रीयता एवं भारतीयता की शुभता की आहट सुनाई देती है।

संघ के प्रति लोगों की सोच बदलनी चाहिए क्योंकि इसकी सच्चाइयों एवं वास्तविकताओें को अब तक बिना जाने-समझे एवं तथाकथित पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों के चलते एक खास खांचे में फिट करके देखते रहेे हैं। एक सामाजिक-सांस्कृतिक-राष्ट्रीय संगठन के रूप में संघ देश और शायद दुनिया का सबसे विशाल संगठन है। जिसने हमेशा नई लकीरें खींची हैं, एक नई सुबह का अहसास कराया हैं। जिसने हिंदुत्व और भारतीयता को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया है। उसने और अधिक स्पष्ट कर दिया कि मुसलमान लोग भी हिंदुत्व के दायरे के बाहर नहीं हैं। संघ के हिंदुत्व का अर्थ है, विविधता में एकता, उदारता, सहनशीलता, सह-जीवन आदि। उसने न केवल हिंदुत्व को संगठित किया बल्कि नए ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है। संघ शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता आदर्श जीवनशैली का आधार तत्व है और संघ इसे प्रश्रय देता है। इसके बिना अखण्ड राष्ट्रीयता एवं समतामूलक समाज की स्थापना संभव ही नहीं है। जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक विचारधारा है, एक संस्कृति है, चूंकि विविध विचारधाराओं में एक बड़ी विचारधारा यह भी है, इस दृष्टि से इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने इसे पाठ्यक्रम से बाहर करने की मांग की है। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने सवाल उठाया कि भारत की आजादी की लड़ाई में आरएसएस ने क्या किया है? कांग्रेस के मुताबिक यह संघ की विचारधारा को शिक्षा में शामिल कराने की साजिश है। ये सारे आरोप वही हैं जो कांग्रेस और वाम संगठन आजादी के समय से ही संघ परिवार पर लगाते रहते हैं। हालांकि इन आरोपों का आधार बेबुनियाद एवं भ्रातक है। इस प्रकार के उद्देश्यहीन, उच्छृंखल एवं विध्वंसात्मक आरोपों के द्वारा किसी का भी हित सधता हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता तथा न ही उससे संघ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी आलोचना या आरोप की संस्कृति समय एवं शक्ति का अपव्यय है तथा बुद्धि का दिवालियापन है। कांग्रेस ने सत्ता का दुरुपयोग कर संघ पर न केवल प्रतिबंध लगाया था बल्कि उसके उज्ज्वल इतिहास को धुंधलाने एवं झुठलाने का प्रयास किया। आज जब समूचा राष्ट्र कांग्रेस की संकीर्ण मानसिकता एवं स्वयं को ही सबकुछ मान लेने के पूर्वाग्रहों को भलीभांति समझ गया। क्यों एवं किस तरह हर चीज का श्रेय केवल नेहरू-गांधी परिवार को ही दिया जा सकता है?

बात केवल आजादी में योगदान की ही नहीं है, बल्कि भारत को सशक्त एवं स्वावलम्बन बनाने की भी है। 1925 से 1940 तक स्वतंत्रता आंदोलन का सहयोग करते हुए डॉ. हेडगेवार ने स्वयंसेवक बनाने पर ध्यान दिया, उनका मानना था कि स्वयंसेवक आजादी के सिपाही के रूप में खड़े होंगे और वे हुए भी। 1940 तक संघ का सांगठनिक आधार देश भर में काफी व्यापक हो चुका था, जिसे उनके बाद गुरुजी गोलवलकर ने वैचारिक सुदृढ़ता प्रदान की। संघ का विस्तार एवं उसकी ताकत आजादी के पहले से ही कांग्रेस के कई नेताओं को खटकने लगी थी। आज कांग्रेस अगर संघ को पाठ्यक्रम में शामिल करने का विरोध कर रही है तो उसके पीछे कोई तर्क नहीं, बल्कि शुरू से चली आ रही विरोध की मानसिकता है, उनका भीतरी भय एवं असुरक्षा की भावना है। कांग्रेस ने आजादी के बाद इस बड़ी राष्ट्रीय ताकत को कमजोर करने एवं निस्तेज बनाये रखने में अपनी पूरी सत्ता एवं प्रभुत्व का उपयोग किया। कांग्रेस ने संघ को लगातार अस्वीकार किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि संघ की स्वीकार्यता बढ़ती गई। नरेंद्र मोदी के प्रति भी कांग्रेस लगातार अस्वीकार भाव प्रदर्शित करती रही लेकिन उनकी स्वीकार्यता इतनी बढ़ी कि वह लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए। संघ अगर राष्ट्रविरोधी, संविधान विरोधी होता तो देश के लोग कब का उसे खारिज कर चुके होते।

संघ को राष्ट्र की चिंता है, उसके अनुरूप उसकी मानसिकता को दर्शाने वाले इस पाठ्यक्रम से निश्चित ही भारत के भविष्य की दिशाएं तय होगी। जो संगठन आरएसएस को पानी पी-पीकर कोसते हैं, उन्होंने तो कभी यह बताने की जहमत मोल नहीं ली कि देश के विकास को लेकर, संसाधनों के बंटवारे को लेकर, अवसरों की समानता को लेकर उनकी अपनी क्या दृष्टि है? बेहतर होगा कि संघ से प्रेरणा लेकर अन्य दल और संगठन भी अपनी बुनियादी दृष्टि के बारे में आम देशवासियों की समझ साफ करें ताकि उनके समर्थकों और विरोधियों को ऐसी कसौटियां उपलब्ध हों, जिन पर उनके कामकाज को परखा जा सके।

संघ की दिलचस्पी राजनीति में कम और राष्ट्रनीति में अधिक है। उन्होंने समाज निर्माण को अपना एक मात्र लक्ष्य बताया। संघ का हिंदुत्व सब को जोड़ता है और संघ एक पद्धति है जो व्यक्ति निर्माण का काम करती है। प्रत्येक गांव और गली में ऐसे स्वयंसेवक खड़े करना संघ का काम है, जो सबको समान नजर से देखता हो। यह सही है कि संघ के इस पाठ्यक्रम का प्रयोजन लोगों को अपनी बातों से सहमत करना नहीं, बल्कि अपने बारे में आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह को दूर करना एवं संघ के यथार्थ की जानकारी देना है, लेकिन उचित यही होगा कि इस तरह के पाठ्यक्रम आगे भी न केवल शिक्षा बल्कि अन्य सशक्त माध्यमों का हिस्सा बनते रहे ताकि संघ का वास्तविक स्वरूप एवं उद्देश्य जन-जन तक यथार्थ रूप में आ जाये। निःसंदेह संघ को जानने-समझने का यह मतलब नहीं कि उसका अनुसरण किया जाए, लेकिन इसका भी कोई मतलब नहीं कि उसकी नीतियों को समाज एवं राष्ट्रविरोधी करार देकर उसे अवांछित संगठन की तरह से देखा जाए या फिर उसका हौवा खड़ा किया जाये? प्रेषकः

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
मो. 9811051133

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