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लन्दन में क्रान्तिकारियों का गुरुकुल
महर्षि दयानन्द के प्रियतम शिष्य श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा काठियावाड़ राज्य के थे। ये संस्कृत भाषा के धुरन्धर विद्वान थे। महर्षि दयानन्द जी से अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण को पढ़ा था। महर्षि दयानन्द ने विदेशों में वैदिक धर्म के प्रचारार्थ हो
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महाभारत युद्ध के ऐतिहासिक प्रमाण हैं
द्रोपदी की जन्मभूमि अहिच्छत्र ( पाण्चाल प्रदेश ) आज भी खण्डहर रूप में विद्यमान है। पाण्डवों की राजधानी कौशाम्बी ( प्रयाग ) भी आज ध्वस्त रूप में पड़ी हैं। महाभारत में वर्णित योधेय , कुणिन्द आर्जुनायन , वृष्णि आदि गणों की मुद्रायें आज भी प्राप्त हैं।
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अज्ञात योद्धा पं. जगतराम हरियाणवी
पंडित जी के व्यक्तित्व में महान आकर्षण था। सभी कैदी आपके शिष्य बन जाते थे। आपके जीवन और उपदेशों का प्रभाव ऐसा पड़ता था कि कैदियों के जीवन में परिवर्तन होकर धार्मिकता आती थी। पंडित जी कैदियों के चरित्र को सुधारने का सदैव यत्न करते थे।
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भारतीय शिक्षा का सर्वनाश कैसे हुआ
हमारे प्राचीन इतिहास और साहित्य को नष्ट कर उसके स्थान में मिथ्या इतिहास लिखवाकर भारतीय स्कूलों में पढ़ाना प्रारम्भ किया गया , सखेद लिखना पड़ता है कि वही मिथ्या इतिहास स्व तन्त्र भारत में आज भी पढ़ाया जा रहा है।