Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेपेड़ों की पुकार सुनिए

पेड़ों की पुकार सुनिए

कुछ दिन पहले मुझे दिल्ली की भागदौड़ से दूर उत्तराँचल के एक छोटे से हिल स्टेशन पर जाने का मौका मिला. रास्ते भर हरे भरे चीड और देवदार के पेड़ और सुहानी हवा आँखों और मन को शीतल कर रहे थे. हिल स्टेशन पहुँचते ही सुंदर फूलों की क्यारियों और आडू, आलूबुखारे, खुमानी, सेब और नाशपाती से लदे पेड़ों ने हमारा स्वागत किया. इतनी सुंदर और फलों -फूलों से भरपूर जगह मैंने पहली बार देखी थी. मेरा मन किया कि मैं दिल्ली छोड़ कर यही बस जाऊ.

मैंने अपने टैक्सी ड्राईवर से कहा कि आपका हिल स्टेशन तो बहुत सुंदर है तो वह तपाक से बोला कि क्या आप इसे अपना बनाना चाहेंगी? ये प्रश्न मेरे लिए अप्रत्याशित था। फिर भी मैंने पूछा कैसे, तो वह बोला कि यहाँ ज़मीन दिल्ली की तरह बहुत महँगी नहीं है, आप यहाँ ज़मीन खरीद कर कॉटेज बनवा लीजिये और फिर जब मन करे यहाँ आइये या अपने रिश्तेदारों को भेजिए। मैं असमंजस में पड़ गयी। मेरी परेशानी भांप कर वह बोला कि आप किसी बात की चिंता न करे, यहाँ दिल्ली वालो के बहुत से कॉटेज है और कई दिल्ली वालों ने यहाँ ज़मीन खरीद रखी है जो आने वाले समय में यहाँ कॉटेज बनवायेंगे ।

उसने कहा कि अगले दिन वह हमें आस पास की कुछ जगहों पर कुछ प्लॉट दिखा लायेगा, फिर जो प्लॉट हमें पसंद होगा वहां हम अपना कॉटेज बनवा सकते है। बनवाने की व्यवस्था भी वह खुद ही कर देगा। यानि हमें सिर्फ पैसे देने होंगे, बाकी सारी सिरदर्दी उसकी। अगले दिन हम कॉटेज के लिए साइट्स देखने गए। सभी जगहें सुंदर थी।बहरी भरी वादी से पहाड़ों का सुंदर नजारा। पर एक बात हैरान कर देने वाली थी। ज्यादातर साइट्स पर फलों के पेड़ लगे थे। एक साईट देखकर मैंने ड्राईवर से पूछा कि अगर हम ये जगह ले लेते है तो इन पेड़ों का क्या होगा तो वह बोला कि जब ये जगह आपकी हो जाएगी तो जितने पेड़ आपको चाहिए उतने रख ले बाकी कॉटेज बनाने के लिए काट दिए जायेंगे।

मैं जैसे आसमान से धरती पर आ गिरी। मेरे सामने उस हिल स्टेशन का भविष्य तैरने लगा जहां कदम कदम पर सिर्फ कॉटेज ही कॉटेज होंगे और उनके आस पास होंगे, गिने चुने फलों के पेड़ और फूलों की क्यारी। फिर वह हिल स्टेशन भी दिल्ली जैसा ही हो जायेगा, जहाँ हर जगह भीड़, शोर, गाड़ियों का प्रदूषण और प्रदूषित हवा होगी और जो फल आज यहाँ बहुतायत में है, भविष्य में बच्चों को सिर्फ उनके चित्र किताबो में दिखाकर हम उन्हें कहेंगे कि बेटा देखो ये आलूबुखारा है जो एक गहरे लाल रंग का खट्टा मीठा फल था और हमारे ज़माने में बाज़ार में खूब मिलता था।

मैंने कॉटेज लेने का आइडिया वहीँ त्याग दिया और होटल वापिस आ गयी. शाम को टी. वी. पर देखा तो याद आया कि उस दिन पांच जून थी यानि विश्व पर्यावरण दिवस। मेरे मन में ख़ुशी थी कि कम से कम मैंने कॉटेज के लिए ज़मीन न खरीद कर कुछ पेड़ों को कटने से बचा लिया क्योंकि मैं बस अपने आप को ही तो रोक सकती थी, किसी और को नहीं।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार