Thursday, March 28, 2024
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बीमा कंपनियाँ दोवों के भुगतान न करने के लिए कैसी कैसी चालें चलती है

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के सदस्य (जीवन बीमा) नीलेश साठे ने दावों के प्रबंधन के विषय पर हाल ही में आयोजित एक सम्मेलन में ऐसी समस्या सामने रखी, जो कई पॉलिसीधारकों को चिंता में डाल सकती है। समस्या है दावों के प्रबंधन के जीवन बीमा और गैर-जीवन बीमा कंपनियों के अलग-अलग तरीके। अतीत में ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें जीवन बीमा कंपनियों ने दुर्घटना के दावे केवल इसीलिए ठुकरा दिए क्योंकि पॉलिसीधारक की मौत रेल की पटरी पार करते वक्त हुई थी। बीमा कंपनियों ने इसे कानून का उल्लंघन बताकर दावे खारिज कर दिए और पॉलिसीधारक का परिवार अदालत में पहुंच गया। लेकिन सामान्य बीमा कंपनी इस तरह के दावों के लिए भुगतान करेगी। साठे कहते हैं, ‘जीवन बीमा और सामान्य बीमा कंपनियों की प्रणालियों में इस विरोधाभास से पॉलिसीधारकों के लिए दुर्घटना दावों को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हुई है।’

व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा की अलग संरचना भी इसकी एक वजह होती है। जब सामान्य बीमा कंपनी की बात होती है तो इसे एकल उत्पाद माना जाता है, लेकिन जीवन बीमा कंपनी इसे जीवन बीमा पॉलिसी के साथ ऐड-ऑन कवर के रूप में देती हैं। आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस में अंडरराइटिंग, क्लेम्स और रीइंश्योरेंस के प्रमुख संजय दत्ता कहते हैं कि सामान्य बीमा कंपनियों के लिए यह अपने आप में अलग योजनाओं की बड़ी श्रेणी है। वह कहते हैं, ‘यदि ज्यादा भीड़ भरी बस में कोई शख्स छत पर बैठकर सफर कर रहा है और उसके साथ कोई हादसा हो जाता है तो असल में यह कानून तोडऩे का मामला है, लेकिन इसी आधार पर हम उसके बीमा के दावे को ठुकरा नहीं सकते।’ दत्ता कहते हैं कि इसी तरह सड़क पर गलत साइड पर वाहन चलाना भी कानून का उल्लंघन है, लेकिन स्वाभाविक रूप से यह अपराध नहीं है। इसीलिए ऐसे मामले में भी दावे के लिए सामान्य रूप से भुगतान किया जाएगा। एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस के कार्यकारी निदेशक मुकेश कुमार कहते हैं कि रेल की पटरी को फाटक या रेलवे पुल के बजाय कहीं और पैदल ही पार करना कानूनन जुर्म है, लेकिन ज्यादातर बीमा कंपनियां ऐसे में हुई दुर्घटना पर सख्त रुख नहीं अपनातीं। हां,यदि दुर्घटनाग्रस्त होने वाला शख्स हादसे के वक्त नशे में होता है तो वे दावा ठुकरा सकती हैं।

वह कहते हैं, ‘दावे को स्वीकार किया जाना या ठुकराया जाना हरेक मामले में एक जैसा नहीं होता है और यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। आम तौर पर हम यही देखते हैं कि यह कानूनी है अथवा नहीं।’ तकनीकी रूप से बात की जाए तो कानून के उल्लंघन का उदाहरण जीब्रा क्रॉसिंग के बगैर ही सड़क पार करना भी हो सकता है। इसी तरह सफर करते वक्त ट्रेन के पायदान पर खड़ा होना भी गैर-कानूनी है। लेकिन कोटक लाइफ इंश्योरेंस में अंडरराइटिंग, क्लेम्स, प्रोसेस एश्योरेंस एंड रिस्क मैनेजमेंट के प्रमुख एवं एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस क्लेम्स मैनजमेंट के अध्यक्ष गणेश अय्यर कहते हैं कि सभी बीमा कंपनियां इस तरह के कानूनों पर सख्ती से अमल नहीं करती हैं और दुर्घटना होने पर दावे के हिसाब से रकम का भुगतान कर देती हैं। वह कहते हैं, ‘कानून तोडऩे से संबंधित प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि लोग न तो कानून को अपने हाथ में लें और न ही उसके साथ खिलवाड़ करें। लेकिन ज्यादातर कंपनियां इस पर अधिक सख्ती से अमल नहीं करती हैं।’

आम तौर पर यह माना जाता है कि सामान्य बीमा कंपनियां कानून के उल्लंघन के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर अधिक सख्त रवैया नहीं अपनाती हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि अतिरिक्त लाभ अथवा राइडर के तौर पर व्यक्तिगत बीमा की सुविधा देने वाली जीवन बीमा कंपनियों के उलट उन्हें व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा में अधिक कारोबार मिलता है। अय्यर कहते हैं, ‘अगर हम उसे राइडर के तौर पर देंगे तो कानूनन हम मूल बीमित रकम से अधिक रकम का बीमा नहीं कर सकते हैं।’ लेकिन जब कानूनी कारणों का हवाला देते हुए दावे को ठुकरा दिया जाता है तो पॉलिसीधारक को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पॉलिसी खरीदने से पहले उसकी बारीकियों को अच्छी तरह पढऩे और बीमा सुविधा के बारे में ठीक से समझने पर समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है। अय्यर कहते हैं, ‘जीवन बीमा और सामान्य बीमा दोनों में अलग अलग योजनाओं के नियम अलग-अलग होते हैं। इसलिए खरीदार को पॉलिसी खरीदने से पहले योजना के दस्तावेज अच्छी तरह से पढ़ लेने चाहिए।’

व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा अथवा दुर्घटना राइडर से किसी भी दुर्घटना पर रकम मिल सकती है, चाहे पॉलिसीधारक की मौत हुई हो या नहीं हुई हो। अगर पॉलिसीधारक दुर्घटना के कारण विकलांग हो गया है और कामकाज की हालत में नहीं रह गया है तो उसे इस पॉलिसी से फायदा हो जाता है। रकम इस बात पर निर्भर करती है कि विकलांगता कितनी गंभीर है। मौत होने पर पूरी रकम मिल जाती है।

साभार-http://hindi.business-standard.com/ से

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