
राष्ट्रीयता की प्रासंगिकता
“राष्ट्र “एक राजनीतिक संकल्पना है ,राज्य ही राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का मुख्य भाग होता है, राजनीतिक एकता उसके अस्तित्व की पहली आवश्यकता है।राष्ट्र के लिए भूमि, भाषा ,मजहब एवं नस्ल की एकता का होना भी राष्ट्र के लिए अति आवश्यक है ।भारत अलग-अलग भाषाओं ,उपासना ,पंथों एवं नस्लों का जनसमूह है। भारत को एक राष्ट्र बनने के लिए समय-समय पर हुए अनेक सांस्कृतिक प्रवाहों को जोड़कर एक राष्ट्रीय संस्कृति का गठन किया गया था। राष्ट्र की सटीक अभिव्यक्ति इस वाक्य से होती है कि “काफिले बसते गए, हिंदुस्तान बनता गया “। राष्ट्र – निर्माण की प्रक्रिया एक लंबे समय से चलती है। किसी भूखंड पर एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया में से विकसित होती है।राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता उस समूह चेतना का नाम है, जो कोई जन एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया में से उत्पन्न सांस्कृतिक चेतना और उस भूखंड के प्रति देशभक्ति की भावना का पूर्ण संघात होने पर प्राप्त करता है ।भारत में सांस्कृतिक नूतन प्रक्रिया के द्वारा इसके प्रत्येक अंग का पूर्ण समर्पण एवं भक्ति ही राष्ट्रभक्ति की इकाई होती है। राष्ट्र के लिए मानवीय सांस्कृतिक चेतना राज्य की एकता व व्यक्तियों का भावनात्मक व आध्यात्मिक तत्वों का रासायनिक योग होता है।
1905 में बंग – भंग विरोधी आंदोलन के कारण व्यक्तियों के बीच भावनात्मक एकता का भाव उत्पन्न हुआ था ।बंग – भंग विरोधी आंदोलन के कारण नूतन साहित्य का सृजन हुआ था ,उन सभी में भारत भक्ति के तत्व समाहित थे,वैश्विक स्तर पर भारत मूल के व्यक्तियों में नव सांस्कृतिक चेतना का उदय हुआ है ,जिससे राष्ट्रीयता के धारणा में विकास हुआ था। पौराणिक साहित्य राष्ट्रीयता के मूलभूत आवश्यक तत्व में देशभक्ति एवं ऐतिहासिक सांस्कृतिक गौरव भाव से जुड़े हैं। विष्णु पुराण कहता है कि समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो वर्ष स्थित है, उसी वर्ष का नाम भारत है, और उसकी संतान को भारतीय कहते हैं। इस तरह राष्ट्रवाद का विकास ऐतिहासिक सांस्कृतिक अवयवों के द्वारा होता है ;इन अवयवों से भारत की राष्ट्रीयता में सकारात्मक वृद्धि होती है।
स्वर्ग में देवता गण कहते हैं कि वह व्यक्ति धन्य है जिनका जन्म भारत भूमि पर हुआ है, भारत भूमि स्वर्ग से भी श्रेयस्कर है; क्योंकि इस भूमि पर जन्म लेने वाले का मोक्ष प्राप्त होता है। स्वर्ग में रहने वाले हम देवताओं का पुण्य क्षीण होने पर व्यक्ति को वापस भारत भूमि पर आना होता है ।1500 वर्ष पहले भारतवर्ष में राष्ट्रीयता के आधार भूमि भारत में तैयार हो चुकी थी। भारतवर्ष अनेक भाषाओं को बोलने वाले ,अनेक आचार- विचार( धर्मों )का पालन करने वाले जन को धारण करती है। यह भूमि भारत माता अपने सब पुत्रों के लिए समान रूप से दूध रूप वरदान का झरना बहाती रहती है ।इसके छोरों को जोड़ने वाले मार्ग सबके लिए समान रूप से खुले हैं। भारतीय राष्ट्रवाद की भावात्मक, सांस्कृतिक , ऐतिहासिक व धार्मिक आधार भूमि प्रस्तुत करता है ।यह भूमि के प्रति भोग और शोषण की नहीं बल्कि पुत्रवत और भावना उत्पन्न करता है। राष्ट्रीयता के इस यात्रा का स्वरूप सांस्कृतिक था, इसकी प्रेरणा एवं श्रेष्ठ जीवन दर्शन एवं गुण संपदा को वैश्विक स्तर पर प्रसार करना हैं।
(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked (*)