आप यहाँ है :

समाज में आरएसएस की भूमिका और इसकी सार्थकता

वर्ष 1925 (27 सितंबर,1925)को विजयदशमी के दिन आर एस एस की स्थापना की गई थी। इसके स्थापना उद्देश्य में राष्ट्र के नागरिक स्वाभिमानी, संस्कारित चरित्रवान ,शक्ति संपन्न( ऊर्जावान), विशुद्ध मातृ सेवक की भावना से युक्त व व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होते हैं। आज संघ एक वृहद स्वयंसेवी संगठन के रूप में क्रियान्वित हो चुका है ,इसके प्रमुख उत्तरदाई कारक परिवार परंपरा, कर्तव्य पालन, त्याग व सभी के कल्याण एवं विकास की इच्छा एवं सामूहिक पहचान (सनातन संस्कृति) उत्तरदाई हैं।संघ के सारे संबद्ध संगठनों(३५) के साथ संगठन के जमीनी स्तर पर इमानदारी स्तर से काम ने समाज के बीच मजबूत विश्वास विकसित किया है। संघ के सेवा, समर्पण व त्याग के महत्ता को मानवीय जगत में वास्तविकता प्रदान की गई है; क्योंकि कार्यकर्ता मानवता की सेवा के लिए समर्पित रहते हैं।

संघी “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत के आधार पर काम करते हैं ;उनका समाज के प्रति कार्य का आधार जातिगत भेदभाव, संप्रदाय या धार्मिक पूर्वाग्रह के ऊपर है।

आरएसएस(संघ) के विचारधारा को समझने वाला वह प्रत्येक व्यक्ति व नागरिक समझ जाता है कि संघ का जमीनी आधार विद्वता /पांडित्य एवं विशेषज्ञता है; जिस भी व्यक्ति व व्यक्तित्व का इन प्रत्तयों/विज्ञान पर पकड़ होती है, संघ के विद्वान पदाधिकारी उसको विवेकी सम्मान व आदर देतें है।यही नजरिया समाज के प्रति प्राकृतिक दृष्टिकोण होता है। संघ भारत के नागरिकों में भारतीयता, हिंदुत्व( संस्कार पद्धति व जीवन यापन की पद्धति) एवं राष्ट्रीयता की भावना विकसित करके उनमें सामाजिक समरसता के भाव को उन्नयन करने में सफल रहा है।

संघ की विचारधारा में व्यक्ति गौण (द्वितीयक) होता है; जबकि समाज और राष्ट्र प्राथमिक(मुख्य/प्रधान) होते हैं। व्यक्ति निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण ,चरित्र निर्माण ,त्याग और राष्ट्रभक्ति के संस्कार से ओतप्रोत संघ कार्य दुनिया के सम्मुख है। संघी जिसका अपना चरित्र विश्वसनीय है, शुद्ध है जो संपूर्ण समाज को व देश(राज्य) को अपना मान कर काम करता है। किसी को भेदभाव व शत्रुता के भाव से नहीं देखता है और इन्हीं विचारों से समाज एवं संगठन का विश्वास अर्जित किया है। संघ समस्त हिंदू समुदाय के उन्नयन के लिए प्रयास कर रहा है। संघ में धर्म, जाति, वर्ग ,ऊंच-नीच की भावना नहीं होती है ;संघ संपूर्ण हिंदू समाज में एकता लाने की दृष्टि से कार्य करता है।संघ छुआछूत की भावना को समाप्त कर चुका है ;क्योंकि सभी जातियों के व्यक्ति राष्ट्रीय भावनाओं व भारत माता की सेवा की भावना से काम करते हैं ।

कोरोना काल के दौरान संघ की उपादेयता बढ़ी है ।स्वयंसेवकों ने कोरोनाकाल में 5.5लाख व्यक्तियों का सहयोग किया है। 2025 में संघ अपने स्थापना के 100 वर्ष (शताब्दी समारोह) पूरा करने जा रहा है। वर्तमान में संघ 71355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर पर कार्य कर समाज परिवर्तन में अपनी भूमिका निभा रहा है ।संपूर्ण भारत का सारा समाज एक है, सब समान हैं व सब संघ के हैं। हमको समाज को कुछ देना है समाज के लिए कुछ करना है और मेरा जीवन समाज के लिए समर्पित है।

(लेखक सहायक आचार्य व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

image_pdfimage_print


Leave a Reply
 

Your email address will not be published. Required fields are marked (*)

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

सम्बंधित लेख
 

Get in Touch

Back to Top