Saturday, April 20, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोगरीब अनपढ़ माँ-बाप का बेटा बना गाँव के लिए मिसाल

गरीब अनपढ़ माँ-बाप का बेटा बना गाँव के लिए मिसाल

किसे पता था, कभी स्कूल की दहलीज पर कदम न रख पाने वाले निरक्षर माता-पिता का पुत्र अपने ज्ञान की रोशनी से गांव या जिले ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में नाम रौशन करेगा। वर्ष 2014-15 की दसवीं बोर्ड परीक्षा में शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल तिलकेजा के निर्धन छात्र कृष्ण कुमार कर्ष ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया और राज्य की प्रावीण्य सूची आठवां स्थान हासिल किया। अब वह उसी अक्षर ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने गांव के दस निरक्षरों को हर रोज पढ़ाता है।

ग्राम पंचायत तिलकेजा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर कोरबा-सक्ती मुख्य मार्ग में स्थित है। कृष्ण कुमार यहां के शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में 11वीं गणित का छात्र है। वह आर्थिक रूप से काफी कमजोर एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता है, जिनके पास खेती के लिए कृषि भूमि भी नहीं है।

परिवार का गुजर-बसर महज रोजी-मजदूरी से मिलने वाली आय के भरोसे होता है। आर्थिक मुश्किलों से जूझते हुए कृष्ण कुमार ने वर्ष 2014-15 में दसवीं की परीक्षा अव्वल दर्जे में पास की। उसने न केवल स्कूल, विकासखंड या जिले में, बल्कि राज्य की टॉप-10 सूची में आठवां स्थान प्राप्त किया था।

दसवीं में 96.33 प्रतिशत अंक प्राप्त कर अपने माता-पिता, गांव व जिले का नाम रौशन करने वाले इस छात्र ने अपनी योग्यता बढ़ाने के साथ दूसरों को पढ़ाकर अक्षर ज्ञान देने की मुहिम शुरू की। सुबह 10.30 से शाम 4.30 बजे तक स्कूल में पढ़ाई के बाद कृष्ण हर रोज एक घंटे की कक्षा लगाकर गांव के दस बड़ों को पढ़ाता है। साक्षर भारत कार्यक्रम से जुड़कर उसने गांव के दस असाक्षरों को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाया है।

माता-पिता भी सीख रहे कखग

कृष्ण कुमार तिलकेजा के आश्रित गांव खैरभांठा में अपने पिता जीतराम कर्ष व माता श्रीमती रामबाई के साथ निवास करता है। परिवार के बड़े-बुजुर्गों का स्कूल से दूर-दूर तक कोई नाता न रहा, लिहाजा माता-पिता भी अक्षर ज्ञान से वंचित रह गए। गौर करने वाली बात होगी कि कृष्ण ने जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा, उन्हीं माता-पिता को साक्षर बनाने प्रयासरत है। गांव के जिन दस लोगों को वह प्रतिदिन एक घंटे पढ़ाता है, उनमें उसके असाक्षर माता-पिता भी शामिल हैं। मजदूरी करके किसी तरह जीवन-यापन करने मजबूर माता-पिता के प्रतिभावान पुत्र को दिशा देने पूरा स्कूल जुटा रहता है। परिवार की आर्थिक मुश्किलों के बीच वह वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।

शिक्षकों ने जमा कराई परीक्षा फीस

बड़ी मशक्कत के बाद भी कृष्ण के माता-पिता के पास दसवीं बोर्ड के लिए फीस का इंतजाम कर पाना मुश्किल हो गया था। उसकी क्षमता व योग्यता को भांपकर स्कूल के प्राचार्य ने आर्थिक मदद के साथ स्कूल के शिक्षकों ने परीक्षा की तैयारी कराई। इस विश्वास पर खरा उतरते हुए कृष्ण ने प्रावीण्य सूची में जगह बनाई। वर्तमान में गणित लेकर 11वीं कक्षा में अध्ययनरत है। वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर आईएएस बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। उसने बताया कि आज भी शिक्षा के क्षेत्र में हमारे गांव काफी पिछड़े हुए हैं, लिहाजा खुद कामयाब बनकर वह शिक्षा के क्षेत्र में फोकस करते हुए काम करना चाहता है।

ईंट भट्ठे में काम किया, अब एनआईटी में इंजीनियरिंग

वर्ष 2012-13 में शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल हरदीबाजार की छात्रा दुर्गा प्रजापति ने 12वीं की परीक्षा में टॉप करते हुए राज्य की प्रावीण्य सूची में तीसरा स्थान हासिल किया था। दसवीं में भी पांचवा रैंक हासिल करने वाली इस छात्रा को परिवार की आर्थिक मुश्किलों से जूझते हुए स्कूली जीवन के दौरान ईंट भट्ठे में भी काम करना पड़ा। एआई ट्रिपल ई के जरिए देश के लाखों बच्चों से प्रतियोगिता करते हुए दुर्गा ने अच्छा रैंक हासिल किया और वर्तमान में वह राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) रायपुर में कैमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है। वह एनआईटी में तीसरे वर्ष की छात्रा है। उनकी मां श्रीमती सुंदरियादेवी आज भी मजदूरी कर परिवार की पालन-पोषण करती हैं और दुर्गा ने शिक्षा लोन प्राप्त कर अपनी अकादमिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है।

साभार- http://naidunia.jagran.com/ से

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