Friday, March 29, 2024
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चंबल की रोमांचक कहानी

भारत की नदियों की प्रवाह प्रणाली में कोटा से होकर बहने वाली चंबल नदी का अपना विशेष महत्व है। यह नदी मध्य प्रदेश एवं राजस्थान राज्यों में बह कर उत्तर प्रदेश की यमुना नदी में समा जाती है। भारत की यह एक मात्र नदी है जो दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। यह नदी अपने किनारे कई एतिहासिक एवं धार्मिक नगरों एवं स्थानों की पोषक रही है। चंबल एवं इसकी सहायक नदियां विशेष रूप से राजस्थान राज्य की प्रगति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर हाड़ोती ही नहीं राजस्थान की जीवन रेखा बन जाती हैं। राजस्थान की भाग्यश्री बनी चंबल नदी एकमात्र सदा प्रवाहिनी नदी है जो वर्ष भर बहती है।

चंबल नदी का उद्गम मध्य प्रदेश इन्दौर जिले में महू के पास मालवा पगर में विन्ध्यचल पर्वत की जनपाव पहाड़ियों से हुआ है। यह पहाड़ी समुद्र तल से 616 मीटर ऊँची है। यह नदी अपने उद्गम से उत्तर दिशा में मध्य प्रदेश के धार, रतलाम, मन्दसौर जिलों में 325 किमी. बहती हुई चौरासीगढ़ के निकट से प्रवेश कर चितौड़गढ़ जिले की भैंसरोड़गढ़ तहसील से राजस्थान में बहती है। यहाँ से उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में बहते हुए यह एक गहरी घाटी बनाती है जो गोर्ज कहलाती है जो राजस्थान में सबसे गहरी घाटी है।

चौरासीगढ़ से अपनी यात्रा शुरू कर यह नदी चितौड़गढ़ एवं बूंदी जिलों से होती हुई 115 किमी. पर कोटा में प्रवेश करती है। कोटा से आगे बूंदी, सवाईमाधोपुर, करोली, धोलपुर जिलों से 210 किमी. का मार्ग तय कर मध्य प्रदेश के भिंड एवं मुरैना के पठार एवं दर्र में बीहड़ों से हो कर 38 किमी. दूर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना की गोद में समा जाती है। चंबल नदी की कुल लंबाई 1051 किमी. है। यह 252 किमी. राजस्थान एवं मध्य प्रदेश की अंतर्राज्य सीमा बनाती है। चंबल नदी राजस्थान में सर्वाधिक सतही जल वाली नदी है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 19,500 वर्ग किलोमीटर है।

भूगोलवेत्ता प्रो.पी.के. सिंघल बताते है कि चम्बल नदी मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच सीमा रेखा बनाती है। यह पश्चिमी मध्यप्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है जो यमुना नदी के दक्षिण की ओर से जाती है। पहले यह उत्तर-पूर्व की ओर फिर पूर्वी दिशा की ओर बहती हुई मिल जाती है। चम्बल और कालीसिन्ध मध्य भारत के पठारी प्रदेश की भी प्रमुख नदियां हैं। चम्बल उपार्द्र प्रदेश से प्रवाहित होने वाली नदियाँ इसके सामान्य ढाल के अनुसार ही बहती हैं। ये दक्षिण से उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं। सिन्धु, क्वाँरी, पार्वती, कुनू और चम्बल इस भू-भाग की प्रमुख नदियाँ हैं। चम्बल इस पठार की एक प्रमुख नदी है जो पठार में सँकरी व गहरी घाटियों में बहती है।

प्रो.सिंघल के मुताबिक कालीसिंध और पार्वती, जो चम्बल की सहायक नदियाँ हैं, के जल प्रवाह बीहड़ों की रचना करते हैं। इसी पठार के उत्तर मैदानी भाग में जलोढ़ मिट्टियों का सृजन चम्बल, सिंध एवं इसकी सहायक नदियों द्वारा किया जाता है। इन मिट्टियों को चम्बल, सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों ने निर्मित किया। जलोढ़ प्रचुर मात्रा में उपजाऊ मिट्टी है। जहाँ जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है वह क्षेत्र कृषि से धन-धान्य होता है। इस प्रकार की मिट्टी चम्बल और उसकी सहायक नदियाँ निर्मित करती हैं। गुना, मन्दसौर, ग्वालियर तथा शिवपुरी में लावा मिश्रित मिट्टी मिलती है। चम्बल का पठार कर्क रेखा के निकट होने के कारण जलवायु गर्म होती है। चम्बल, क्वाँरी तथा इसकी सहायक नदियों के बीहड़ों बबूल, करील और खजूर आदि के उष्ण कंटिबन्धीय शुष्क कटीले वन मिलते हैं।

विन्ध्य क्रम की चट्टानों का निर्माण कुदप्पा चट्टानों के बाद हुआ है। इस प्रकार की चट्टानों के क्षेत्र में चम्बल तथा सोनघाटी क्षेत्र कहलाते हैं। मालवा का पठार जो त्रिभुजाकार है, अरावली की पहाड़ियों के दक्षिण में व यमुना आदि नदियों तथा विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के मध्य फैला हुआ है। बेतवा, कालीसिंध, चम्बल और माही इस प्रदेश से प्रवाहित होने वाली प्रमुख सरिताएँ हैं। कुछ वैज्ञानिकों की धारणा है कि दामोदर, स्वर्णरेखा, चम्बल तथा बनास नदियाँ अध्यारोपित जल अप्रवाह का निर्माण करती हैं। विन्ध्य पर्वतों के क्षेत्र में आयताकार अप्रवाह का स्वरूप भी प्राप्त होता हैं। चम्बल और उसकी सहायक नदियों की मिट्टी जलोढ़ (उपजाऊ) है। चम्बल का भाग ऊबड़-खाबड़ है जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 300 से 500 मीटर के बीच पाई जाती है लेकिन इसके उत्तरी एवं उत्तरी-पूर्वी भाग समतल मैदान हैं जिनकी ऊँचाई 150 से 300 मीटर के बीच है। इस पठार का सामान्य ढाल दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम से उत्तर की ओर है।

चम्बल के अन्तर्गत भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, गुना शिवपुरी एवं मंदसौर जिलों के भाग आते हैं। इनका कुल क्षेत्रफल 32896 वर्ग किलोमीटर है, जो मध्यप्रदेश के पूरे भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.5 प्रतिशत है। इस पठारी भाग के पूर्व में बुन्देलखण्ड का पठार, पश्चिम में राजस्थान की उच्च भूमि, उत्तर में यमुना का मैदान और दक्षिण में मालवा का पठार स्थित है।

यह उत्तर पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में प्रमुख है। चम्बल नदी कोटा सम्भाग में भैंसरोडगढ़ के पास 18 मीटर ऊँचाई से जल चूलिया झरने में गिरती है, इस नदी में बाढ़ों की बहुतायत है। बाढ़ के समय यह अपने धरातल से 130 मीटर उँचाई तक बहने लगती है।
चम्बल और उसकी सहायक नदियों ने यहां प्रवेश कर भयानक बीहड़ों को जन्म दिया है।

चम्बल नदी कोटा के आगे धोलपुर तक सर्वाधिक मृदा अपरदन खासतौर से अवनालिका अपरदन का कार्य करती है। जिससे बीहड़ों का निर्माण हुआ है। बीहड़ों की मिट्टी भुरभुरी होने का कारण प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में एवं नदी के बहाव से कटाव के कारण यह क्षेत्र वन विहीन पाए जाते हैं। चंबल के बीहड़ पूरे भारत में जाने जाते हैं। सर्वाधिक बीहड़ क्षेत्र राज्य के धौलपुर में है। सारी भूमि खराब हो कर उत्खात स्थलाकृति (बेड़ लैण्ड़ टोपी ग्राफी) बन गई है। इस प्रकार के केटाव से डांग क्षेत्र विकसित हो गये हैं।

यह नदी जहां एक ओर दोनों राज्यों में सिंचाई की व्यापक सुविधा उपलब्ध करा कर खेतों को जीवनदान दे कर कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान करती है वहीं विद्युत उत्पादन में बड़ी भूमिका का निर्वाह करती है। यह सब सम्भव हुआ है आजादी के बाद चम्बल नदी का उपयोग विकास के लिए करने के विचार और प्रयासों से जब प्रथम पंच वर्षीय योजना में चम्बल नदी घाटी परियोजना की परिकल्पना की गई थी। चम्बल नदी घाटी परियोजना मध्यप्रदेश एवं राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। परियोजना के अन्तर्गत तीन चरणों में तीन बांध एवं एक बैराज का निर्माण किया गया।

चम्बल नदी पर लुप्त प्रायः जलीय प्राणी घड़ियाल के संरक्षण के उद्देश्य से चम्बल राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य की स्थापना मुरैना में की गई है। जो 3902 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह मध्य प्रदेश के 23 अभयारण्यों में से एक है। इसमें घड़ियाल के अतिरिक्त मगर, कछुआ, डालफिन, उदबिलाऊ एवं अन्य प्रजातियों के जलचर पाये जाते हैं।

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