Thursday, March 28, 2024
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वीर नारी ब्रह्मवासिनी घोषा

भारत विदुषी , देशभक्त व सर्वस्व त्यागी महिलाओं की जन्मभूमि है । इन महिलाओं ने अपनी तेजस्विता का प्रमाण , अपनी वीरता का प्रमाण रणभूमि में दिया है , अपनी विद्वता का प्रमाण शास्त्राथों में दिया है तो वेद के क्षेत्र में भी यह नारियां कभी पीछे नहीं रहीं । इस क्षेत्र में भी अपने अभूतपूर्व ज्ञान का प्रदर्शन किया है । ऐसी ही विदूषी नारियों में ब्रह्मवासिनी घोषा भी एक थीं ।

कांक्षीवान् ऋषि की कन्या का नाम ही घोषा था । इस तेजस्वी कन्या को जीवन के आरम्भिक काल में ही कोढ का रोग हो गया था । इस रोग के ही कारण विवाह योग्य आयु में इस कन्या का विवाह नहीं हो पाया । अश्विनी कुमार की अपार कृपा इस नारी पर हुई , जिससे इस का यह भयंकर रोग नष्ट हुआ तथा यह कन्या पूरी तरह से स्वस्थ हो गई ।

इस कन्या ने सब प्रकार से ज्ञान में पारंगत होने का निश्चय किया ओर कुछ ही समय में वह अपने उद्देश्य में सफ़ल भी हो गई । अब इसे सुप्रसिद्ध विदुषी ब्रह्म्वासिनी की दृष्टि से देखा जाने लगा । इस ब्रह्म्वासिनी ने ब्रह्मचारी रहते हुए ब्रह्मचारिणी कन्या के सब कर्तव्यों का दर्शन बडे ही विद्वतापूर्ण ढंग से वेद के दो सूक्तों के अन्तर्गत किया । इस घोषा ने कहा कि हे अश्विनी कुमारो ! आप के अनुग्रह से , आप के उपचार के परिणाम स्वरुप , आप की जो दया इस घोषा पर हुई , उस के ही परिणाम – स्वरुप आज इस घोषा को परम सौभाग्य का अवसर मिला है । आप ही के आशीर्वाद से इस घोषा के स्वामी के उत्तम के लिए , भले के लिए आकाश से प्रचुर मात्रा में वर्षा हो , जिससे इस देश के खेत , खलिहान लहलहा उठें । इतना ही नहीं आप की कृपा इस घोषा पर एसी हो कि इस के होने वाले भावी पति की शत्रु की हिंसा से अर्थात् युद्ध में रक्षा हो । यौवन , नौजवान तथा सुन्दर पति को पा कर इस घोषा का यौवन चिरकाल तक अक्षुण बना रहे तथा यह घोषा लम्बे समय तक पति के सुख को भोग सके ।

हे अश्विनी कुमारों ! पिता अपनी सन्तान को सदा उत्तम शिक्षा देता है । आप भी पितृवत हो मुझे सब प्रकार की उतम शिक्षाओं को सत देने का मुझ पर अनुग्रह करो । मैं ज्ञान – हीन तथा बुद्धि – हीन अबला नारी हूं । मुझे ज्ञान का प्रकाश देकर अपने आशीर्वाद से इस दुर्गति से बचाते हुए सबला बनावें । आप के ही आशीर्वाद से मेरे पुत्र तथा पौत्र आदि सुप्रतिष्ठित हो अपने जीवन को बितावें । मैं अपने पति के घर में निवास करते हुए पति की प्रियता को पाने वाली प्रिय पात्री बनूं |

डा.अशोक आर्य
पाकेट १/६१ रामप्रस्थग्रीन से.७
वैशाली २०१०१२ गाजियाबाद उ.प्र.भारत
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