Saturday, October 12, 2024
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Homeदुनिया मेरे आगेये घटनाएँ कुछ नहीं बहुत कुछ कहती है

ये घटनाएँ कुछ नहीं बहुत कुछ कहती है

दो बड़ी घटनाओं में माध्यम से एक बड़ा संदेश और संकेत। आइये, पहले दोनों घटनायें संक्षेप में जानें।
छत्तीसगढ़ : प्रदेश के कॉस्मोपॉलिटन स्वभाव वाला महत्वपूर्ण शहर भिलाई। उसे ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है। वहां SAIL का प्रसिद्ध भिलाई स्टील प्लांट होने के कारण यह शहर भारत के ‘हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ’ है।
वहां कुछ दशक पहले कांगरेड की सरकार शांतिदूतों को मात्र 800 वर्ग फीट जमीन उपलब्ध कराती है। समूह का कारोबार ‘करबला समिति’ के नाम से प्रारंभ होता है। महज चंद फीट पर शांति स्थापना के बाद, जैसा कि अमूमन दुनिया भर में होता है, शांति का संक्रमण बढ़ते-बढ़ते करीब 6-8 एकड़ तक पहुंच जाता है।
विशुद्ध शांति के साथ कब्जा करते-करते उन जमीनों पर मैरिज हॉल, दुकानें आदि खुल जाती हैं। देश भर के निवासियों का प्रतिनिधि शहर, तनिक भी कभी आपत्ति नहीं जताता। अकलियत की रक्षा होती रहती है। हिंदू राष्ट्र चरम नींद के आगोश में सोया रहता है।
फिर दिसंबर 2023 में आती है विष्णुदेव साय जी की सरकार। वर्ष पूरा होते-होते पूरे करबला व्यवसाय को वैधानिक तरीके से गिरा दिया जाता है। जमीन शांतिमुक्त होती है।
यह तो रही सरोकार वाली सरकार आ जाने पर साँय-साँय निपटान हो जाने की बात। अब दूसरे वृत्तांत में शिमला पर ध्यान दीजिये।
हिमाचल प्रदेश : वहां सरकार उसी तुष्टीकरण वाले गिरोह की होती है जिसने 800 फीट से अब के छत्तीसगढ़ में शांति का कारोबार शुरू कराया था। वहां भी ‘पूजा स्थल’ के नाम पर धड़धड़ाते हुए शांति बहाली प्रारंभ होता है। कारोबार आगे बढ़ता है। किंतु उनकी समर्थक सरकार होने के बावजूद आश्चर्यजनक ढंग से हिंदू राष्ट्र जाग जाता है, भरी दुपहरी में।
शायद जागता भी इसलिए है क्योंकि शांति समर्थक पार्टी के ही एक प्रतिनिधि का जमीर जाग जाता है, वे सदन में बयान दे देते हैं अपनी पार्टी लाइन के विरुद्ध। उसके बाद हिंदू राष्ट्र सड़क पर आता है। जंगी प्रदर्शन करता है। ताजा समाचार यह है कि कब्जा समूह ने यह ‘निवेदन’ किया है कि वह स्वयं मसाजित का ‘अवैध हिस्सा’ गिराना चाहता है, उसे स्वयं ही गिरा लेने दिया जाय।
अगर सचमुच आपने यहां तक पढ़ लिया हो, तो बताइए कि इस विकराल पोस्ट में कवि क्या कहना चाहता है? कवि कहना वही चाहता है जो कहता रहा है – ‘बदला नहीं समाज तो सरकार बदल कर क्या होगा।’ समझे मियां, या और समझायें।
कहना यह चाहता है कवि कि सरकार आधारित कोई भी बदलाव स्थायी नहीं हो सकता, जब तक कि समाज उसके लिये तैयार न हो। समाज क्या करता है? बड़ी ही मुश्किल से एक वोट दे देता है अपने समर्थक दल को। इसके बाद ले आलोचना, दे विरोध, पे गाली….
उसके बाद देश के किसी हिस्से में किसी को कोई छींक आ गयी तो इस्ताफा डो, कहीं कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया तो इस्ताफा दो, आपकी गली के बाहर किसी ने शांति से विष्ठा कर दिया तब भी ‘इस्ताफा दो, वरना मुस्ताफा लो’ का आरआर (राहुल रोना) शुरू हो जाता है। आप जवाब देते-देते थक जायेंगे, ‘हिंदू राष्ट्र’ जरा भी मुतमईन नहीं होगा।
उस पर भी अगर ‘आपके वोट से बने’ नेताजी आपको देख कर मुस्कुराहट न उछाल पाये हों, तब तो गयी भैंस पानी में। जा कर अपनी ‘भैंस चराये’ नेताजी।
और आपने समर्थन में अगर पूरे सवा सौ पोस्ट लिख दिये हों, लेकिन सम्मान किसी मात्र 120 पोस्ट लिख पाने वाले पड़ोसी को मिल गया हो, तब तो सीधे निजाम ए मुस्तफा से इस्तफा से कम पर आप मानेंगे नहीं।
लिखते-लिखते बहक जाने की अपनी आदत पुरानी है। सो निस्संदेह आप यहां तक नहीं पहुचे होंगे पढ़ते हुए, पर अगर सचमुच कोई यहां तक पहुंच गया हो, तो उन्हें प्रणाम करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ऊपर के दोनों उदाहरण देते हुए सोये राष्ट्र को जगा कर बता दीजिये कृपया कि आपके वोटों द्वारा नियुक्त अधिकांश नौकर आपके दिये काम पर हैं। परंतु …
परंतु लोकतंत्र में प्रथम सेवक से लेकर अन्य तमाम सेवकों की क्षमता और उनके अधिकार सीमित हैं। आप वोट देते हैं न कि नींद की गोली निगलते हैं।
सो, चैन से सोना है तो जाग जाइए कृपया। घर-घर जा कर जगाने की शक्ति अकेले ‘चौकीदार’ में नहीं है। सिचुएशन अलार्मिंग है तो अलार्म लगा कर सोइये। मैथिली अगर बूझते हों आप तो यही कहूंगा कि ‘लाहक जूइज बरकाइए लेब’ वाली धमकी सदा काम आने वाली नहीं है।
चौकन्ना रहिए। लड़ने-भिड़ने के लिए तैयार रहिए। समूह में रहिए। निजी स्वार्थ या अहंकार को थोड़ा पीछे रखते हुए देश-धर्म-समाज हित को आगे रखिए। प्रारब्ध और सरकार पर भरोसा रखिये। जिस पक्ष को चुना है, उसके साथ चट्टान की तरह खड़े रहिए। मीन-मेख निकालते रहने का यह समय नहीं है।
वोट रूपी दो सूखी रोटी चौकीदार को देकर अगर उससे यह भी आशा करेंगे आप कि वही आपकी चड्ढी भी धो देगा, तो चौकीदार बदल लीजिए। दूसरा तैयार है आपकी चड्ढी तक उतार लेने के लिए। अमेरिका तक जा कर आपकी चड्ढी उतार भी रहा है रोज-रोज।
शेष हरि इच्छा। कम कहे को अधिक समझियेगा। चिट्ठी को तार बुझिएगा। जय-जय।
(लेखक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार हैं) 
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