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घर-वापसी का ऐतिहासिक आकलन
ईसाइयत और इस्लाम में चले गए हिन्दुओं को वापस हिन्दू समाज में लाने के कार्य को हमारे आधुनिक मनीषियों ने भी महत्वपूर्ण बताया था। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, महामना मदन मोहन मालवीय, और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने ही नहीं, बल्कि स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर, और श्रीअरविन्द ने इस का समर्थन किया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे राजनीतिक आंदोलन से भी अधिक महत्वपूर्ण माना था। श्रीअरविन्द ने भी कहा था, ‘‘हिन्दू-मुस्लिम एकता ऐसे नहीं बन सकती कि मुस्लिम तो हिन्दुओं को धर्मांतरित कराते रहें जबकि हिन्दू किसी भी मुस्लिम को धर्मांतरित न करें।’’ डॉ. श्रीरंग गोडबोले ने *‘शुद्धि आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास: सन 712 से 1947 तक’* नामक पुस्तक में इसी का संक्षिप्त,प्रामाणिक आकलन किया है।
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बाबा माधवदास की वेदना और ईसाई मिशनरियां…
हिन्दू समाज के अग्रगण्य लोग, नेता, प्रशासक, लेखक इसे देख कर भी अनदेखा करते थे। यह भी माधवदास ने स्वयं अनुभव किया।
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हिन्दू समाज के लिए गाँधी भारी विपदा, साबित हुए
निस्संदेह, गाँधी जी ने अनेक अच्छे काम किए। पर उन की राजनीतिक विरासत अत्यंत हानिकर रही। उन्होंने अपने तमाम कार्यों का आधार अहिंसा एवं ब्रह्मचर्य बताया था।
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ईशनिंदा कानून के खतरे और इस्लाम
ब्लासफेमी कानून बनाने की मांग उसी का अंग है। यह मांग करने वाले ऐसा कानून नहीं चाहते जो सभी धर्मांवलंबियों को समान सम्मान तथा किसी भी विध्वंस से सुरक्षा दे, बल्कि ऐसा कानून चाहते हैं, जो केवल इस्लाम की आलोचना रोके। इस्लामी समूह यह दोहरी जिद इतने खुले रूप में रखते हैं