Tuesday, April 16, 2024
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चीन की स्पेस डिप्लोमैसी का जवाब

चीन की स्पेस डिप्लोमैसी का करारा जवाब देते हुए भारत ने साउथ एशिया सेटेलाइट लांच कर दिया। यह एक ऐसा संचार उपग्रह है, जो नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा।बीते शुक्रवार पांच मई, 2017 को साउथ एशिया सैटेलाइट लॉन्च कर दी गई। आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से साउथ एशिया सैटेलाइट जीसैट-9 को सफलतापूर्वक लांच कर भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी मजबूती का एक और शानदार नमूनादिखाया है। इसे जीएसएलवी-एफ 09 रॉकेट से स्पेस में भेजा गया। भारत की स्पेस डिप्लोमैसी के तहत तैयार हुई साउथ एशिया सैटेलाइट लॉन्च को पहले सार्क सैटेलाइट का नाम दिया गया था, लेकिन पाकिस्तान ने भारत के इस तोहफे का हिस्सा बनने सेइंकार कर दिया था।

साउथ एशिया सेटेलाइट एक संचार उपग्रह है, जो नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान को दूरसंचार की सुविधाएं मुहैया कराएगा। भारत के इस कदम को पड़ोसी देशों पर चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने केजवाबी कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस उपग्रह का फायदा पाकिस्तान को छोड़ बाकी सभी सार्क देशों को मिलेगा। 450 करोड़ रु की लागत से बना भारत का ये शांति दूत स्पेस में जाकर कई काम करेगा। इसरो का यह सेटेलाइट न सिर्फ बेहतरतस्वीरें खींचेगा, बल्कि यह सेटेलाइट दक्षिण एशिया के इस इलाके के एकीकरण की प्रक्रिया में मील का पत्थर होगा और इस क्षेत्र में विकास के कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में भी मददगार साबित होगा। आर्थिक विकास में मदद का अहम जरिया भी साबितहोगा।

साउथ एशिया सेटेलाइट के लॉन्च की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, इस सेटेलाइट की मदद से प्राकृतिक संसाधनों की ‘मैपिंग’ मुमकिन होगी और टेलिमेडिसन और शिक्षा के प्रसार में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा आईटी कनेक्टिविटीऔर लोगों का आपसी संपर्क बढ़ाने में भी यह अहम भूमिका निभाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ये उपग्रह दक्षिण एशियाई सहयोग का प्रतीक है। दक्षिण एशिया के आर्थिक विकास का सपना पूरा होगा और 1।5 अरब से ज्यादा लोगों को लाभहोगा। इस लॉन्च में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका के नेता भी शामिल हुए।
इस सेटेलाइट के ज़रिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे। किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी। इससे देशों के बीच हॉट लाइन की सुविधा दी जा सकेगी और टेली मेडिसिन सुविधाओं को भीबढ़ावा मिलेगा।

मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों से दक्षेस उपग्रह बनाने के लिए कहा था वह पड़ोसी देशों को ‘भारत की ओर से उपहार’ होगा। गत रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोदी ने घोषणा की थी कि दक्षिणएशिया उपग्रह अपने पड़ोसी देशों को भारत की ओर से ‘कीमती उपहार’ होगा।

साउथ एशिया सेटेलाइट का वित्त पोषण पूरी तरह भारत कर रहा है। इसरो ने ये सैटेलाइट तीन साल में बनाया है और इसकी लागत क़रीब 235 करोड़ रुपये है, जबकि सैटेलाइट के लॉन्च समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च कर रहाहै। इसे दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के लिए शानदार कीमती तोहफ़ा बताया जा रहा है, जो क्षेत्र के देशों को संचार और आपदा के समय में सहयोग देगा। दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में इस तरह के संचार उपग्रह की ज़रूरत काफ़ी समय सेमहसूस की जा रही थी।

उदाहरण के लिए नेपाल सन 2015 में आए भयानक भूकंप के बाद से एक संचार उपग्रह की ज़रूरत बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा था। भूटान को साउथ एशिया सैटेलाइट का बड़ा फ़ायदा होगा, क्योंकि अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीक में वह अभी काफ़ी पीछे है। बांग्लादेश भी स्पेस टेक्नोलॉज़ी में अभी शुरुआती दौर में ही है। हालांकि इस साल के अंत तक वह अपना कम्युनिकेशन सैटेलाइट बंगबंधू -1 छोड़ने की योजना बना रहा है। श्रीलंका 2012 में चीन की मदद से सुप्रीम सैट नामक अपना पहला संचार उपग्रह लॉन्च कर चुका है। लेकिन साउथ एशिया सैटलाइट से उसे भी अपनी क्षमताओं का इज़ाफ़ा करने में मदद मिलेगी।
मालदीव्स के पास स्पेस टैक्नोलॉजी के नाम पर कुछ भी नहीं है। सो उसके लिए तो ये एक बड़ी सौगात से कम नहीं होगा।

हालांकि कुछ देशों के पास पहले से ही अपने उपग्रह हैं। जैसे अफ़गानिस्तान के पास एक संचार उपग्रह अफगानसैट है। असल में यह भारत का ही बना एक पुराना सैटलाइट है, जिसे यूरोप से लीज पर लिया गया है। अफ़गानिस्तान का अफ़गानसैट अभीकाम कर रहा है। इसीलिए अफ़गानिस्तान ने अभी साउथ एशिया सैटलाइट की डील पर दस्तखत नहीं किए है। इसमें कोई शक नहीं कि साउथ एशिया सैटेलाइट इस क्षेत्र में तकनीकी, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को भी बढ़ावा देगा।

लेकिन पाकिस्तान इस परियोजना में शामिल नहीं हुआ।सेना, कट्टरपंथी ताकतें और पाकिस्तान की कठपुतली सरकार ने अपने देश के लोगों को इस क्षेत्र के लोगों के साथ आपसी संवाद बढ़ाने वाले इस मौके से इसलिए महरूम कर दिया, क्योंकि लोग अगर आपस में जुड़ने लगेंगे, तोसमाज पर सेना की पकड़ ढीली हो जाएगी। पाकिस्तान के मन में ये संदेह भी हो सकता है कि सैटेलाइट का इस्तेमाल भारत जासूसी करने में कर कता है। पाकिस्तान का अपना अंतरिक्षप्रोग्राम अभी ज़्यादा विकसित नहीं है। ना वो सैटेलाइट बनाते हैं, ना उनके पास बड़े रॉकेट हैं। ऐसे में उन्हें ये तोहफ़ा क़बूल करने की ज़रूरत थी। पर हो सकता है कि दोनों देशों में जारी तनातनी के मद्देनज़र शायद पाकिस्तान ने यह तोहफ़ा लेना मंजूर नहीं किया। पाकिस्तानी हुकूमत ने जन कल्याण को छोड़ राजनीतिक स्वार्थों को तरजीह दी और अपने देश और इसकी जनता को सांस्कृतिकएकीकरण से होने वाले आर्थिक और तकनीकी लाभों से वंचित करने का फैसला किया। पाकिस्तान के इस फैसले पर तरस ही खाया जा सकता है।

बहरहाल साउथ एशिया सैटलाइट पड़ोसी देशों में भारत का प्रभाव बढ़ाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

Onkareshwar Pandey
ONKARESHWAR PANDEY
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