Saturday, April 20, 2024
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चर्च की आंबेडकर को बदनाम करने की कोशिश

*फारवर्ड प्रेस के माध्यम से भीमराव अम्बेडकर को अपमानित करने वाले साहित्य का सुनियोजित तरीके से प्रकाशन किया जा रहा है। हिंदू और बौद्ध धर्मालंबियों की भावनओं को ठेस पहुंचाने वाले लेख पैसे देकर लिखवाए जा रहे हैं*

बिहार के मुजफ्फरपुर में जिला न्यायालय में नई दिल्ली से प्रकाशित वेबपोर्टल और पुस्तक प्रकाशन संस्था ‘फॉरवर्ड प्रेस’ के खिलाफ परिवाद दायर किया गया है। गुरुवार (20 अगस्त) को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सम्बन्धित संस्था के मालिकों को नोटिस जारी कर किया। मामले की अगली सुनवाई 5 मार्च को होगी।

परिवाद दायर करने वाले अधिवक्ता मनीष ठाकुर के अनुसार— नई दिल्ली से संचालित फारवर्ड प्रेस नामक संस्था देश में बौद्ध व हिंदू धर्म के अनुयायियों को अपमानित करने का काम कर रही है। ऐसा लगता है जैसे ये देश में गृह युद्ध फैलाने के लिए किसी योजना पर काम कर रहे हों। ठाकुर के अनुसार— फारवर्ड प्रेस नाम की संस्था वेबपोर्टल का संचालन करती है। इसके मालिक आयवन कोस्का विदेशी नागरिक हैं तथा वे विदेश से मनी लांड्रिंग व हवाला के जरिए धन मंगवा कर विभिन्न प्रकार की देश -विरोधी गतिविधियों में संलग्न हैं।

ठाकुर ने कहा कि इस संबंध में गृह मंत्रालय को पुख्ता प्रमाणों के साथ सूचित किया गया है तथा माननीय न्यायालय से इस संस्था के मालिकों पर कार्रवाई करने की गुहार लगाई गई है।

हाल ही में फारवर्ड प्रेस के मालिक आयवन कोस्का ने ‘आंबेडकर का हीरो कौन’ शीर्षक से एक लेख लिखकर प्रकाशित किया है, जिसमें डॉ. आंबेडकर का अपमान किया गया है। लेख में कहा गया है कि आंबेडकर के हीरो बुद्ध, कबीर और महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक जोतीराव फुले नहीं थे बल्कि उनकी हीरो बाइबिल में वर्णित मोजेज थे। जबकि तथ्य यह है कि स्वयं डॉ. आंबेडकर ने कभी नहीं कहा है कि मोजेज उनके हीरो थे। उन्होंने अपने कई भाषणों व लेखों में साफ तौर बताया है कि वे बुद्ध, कबीर और फुले को अपना गुरू मानते हैं तथा उनसे प्रभावित हैं। लेखक अपने लेख के साथ डॉ. आंबेडकर का चित्र भी प्रकाशित किया है, जिसमें डॉ.आंबेडकर को ईसाई परिधान में दिखाया गया है। वह तस्वीर कंप्यूटर की मदद से मूल तस्वीर में छेडछाड करके तैयार की गई है, जिससे डॉ. आंबेडकर और उनके अनुयायियों की बौद्ध धर्म के प्रति आस्था का मजाक उड़ाया जा सके।”

विदेशी नागरिकता वाले क्रिश्चियन मालिकों की फारवर्ड प्रेस पत्रिका में पहले भी इसी प्रकार अनेक लेखों में हिंदू धर्म का अपमान किया गया है तथा देवी-देवताओं का मजाक उडाया गया है। देवी दुर्गा के लिए भद्दी टिप्पणी की वजह से यह क्रिश्चियन मालिकों वाली पत्रिका पहले भी विवादों में रही है। इसके विदेशी मालिक आयवन कोस्का और सिल्विया कोस्टा भारत में उन लोगों के संपर्क में रहे जिनकी पहचान क्रिश्चियन कन्वर्जन कराने वाले गिरोहबाज के रूप में यहां है।

आयवन और सिल्विया की पत्रिका फारवर्ड प्रेस को बहुजन समाज में स्थापित नाम बनाने में कांग्रेस सरकार में माखन लाल चतुर्वेदी विवि के विवादित प्राध्यापक रहे दिलीप चन्द्र मंडल की अहम भूमिका रही। आयवन और सिल्विया दिलीप के अच्छे मित्रों में से हैं। उन्होंने इनकी पत्रिका को स्थापित करने में काफी मेहनत की।

आयवन और सिल्विया मामले में कोर्ट से अपील की गई है कि आरोपियों को देश छोड़ने की इजाजत न दी जाए तथा इनके बैंक अकाउंट सील किए जाएं।

शिकायत के मुख्य बिंदु

-वर्ष 2009 से दिल्ली से एक फारवर्ड प्रेस नामक बाईलिंगुअल (अंग्रेजी-हिंदी) पत्रिका प्रकाशित हो रही है। इसके मालिकन श्रीमती सिल्विया मारिया फर्नाडिज कोस्का है और संपादक उसका पति श्री आयवन कोस्का है। दोनों ही कैनेडियन नागरिक हैं। इन दोनों को ओवरसीज सिटीजनशिप आफ इंडिया (ओसीआई) प्राप्त है।

-पिछले कुछ महीनों से इस पत्रिका का संचालन कैनेडा में स्थित दलित बहुजन एमेनसिपेशन इंटरनेशनल (डीईआई) नामक ट्रस्ट कर रहा है, जो कैनेडा में नाट फॉर प्रोफिट कारपोरेशन एक्ट के अन्तर्गत रजिस्टर्ड है। इसका पता – 27 हाकले पथ ब्रम्पटन एल 6 वी, थ्रीआरटू, कनाडा है। सिल्विया मारिया फर्नाडिस कोस्टा इसकी निदेशक हैं। इसके बावजूद इनकी पत्रिका क्रिश्चियन रिलिजन की आलोचना में दो शब्द भी नहीं लिखती। संभवत: इनकी रूचि दिलीप सी मंडल और कांचा इलैया सरीखे चिन्तकों पर थोड़ा निवेश करके वंचित समाज के असंतोष को हवा देकर दलितों के कन्वर्जन में है।

-भारतीय कानूनों के अनुसार कोई भी विदेश कंपनी भारत में बिना अनुमति, बिना एफडीआई संबंधी नियमों का पालन किए यहां मीडिया संस्थान नहीं चला सकता है, न ही पुस्तकों का प्रकाशन कर कर सकता है। विदेश में स्थित नाट फार प्रोफिट कारपोरेशन्स को तो यह छूट भी प्राप्त नहीं है। इस तरह के संगठन कुछ विशेष प्रकार के सेवा कार्य करने के लिए भारत स्थित स्वयं सेवी संगठनों को आर्थिक मदद कर सकते हैं, लेकिन उसके लिए एनसीआरए संबंधी नियमों का पालन आवश्यक होता है। इस संस्था के पास एफसीआरए भी नहीं है।

-भारत की सुरक्षा ऐजेंसियों से बचने के लिए ये ऑफिस निरंतर बदलते रहते हैं। सिर्फ दफ्तर ही नहीं, भारतीय कानून की नजर से इसके अवैध धंधों को बचाए रखने के लिए कंपनियां व सैलरी एकाउंट भी बार-बार बदले जाते रहे हैं। जिसके संबंध में इनके एक पूर्व कर्मचारी ने जानकारी दी।

-2009 से 2014 तक इसका प्रकाशन मासिक प्रिंट मैगजीन के रूप में किया गया। 2014 से इसका ऑनलाइन प्रकाशन भी शुरू कर दिया। पहले पत्रिका का प्रकाशन एक “अस्पायर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड” नामक एक मुखौटा कंपनी के तहत किया जाता था। 2019 से पत्रिका का पूरा कार्यकलाप दलित बहुजन एमेनसिपेशन इंटरनेशनल (डीईआई) नामक कैनेडियन ट्रस्ट के हवाले कर दिया गया है।

-अन्य अवैध कामों के अतिरिक्त सिल्विया कोस्का व आयवन कोस्का फारवर्ड प्रेस पत्रिका के माध्यम से हिंदू देवी देवताओं, बौद्ध धर्म व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों के बारे में आपत्तिजनक भाषा में सामग्री प्रकाशित कर रहे हैं, जिससे करोडों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। साथ ही यह पत्रिका भारत की अनुसूचित जातियों, आदिवासी बंधुओं व अन्य पिछडा वर्गों को सामान्य वर्ग की जातियों – विशेषकर ब्राह्मणों, राजपूतों, भूमिहारों, खत्रियों व वैश्य जातियों के खिलाफ उकासाती हैं, तथा इन कथित उच्च जातियों का संहार करने के लिए प्रेरित करती है।

-एक ओर यह पत्रिका हिंदू देवी देवताओं – माता दुर्गा, भगवान राम और श्रीकृष्ण आदि के लिए अपशब्दों का प्रयोग करती है तथा हमारे राष्ट्रीय नायकों – महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, डॉ राधाकृष्ण आदि को असभ्य और जातिवादी बताती है तो दूसरी और ईसाई धर्मग्रंथों में वर्णित ईसा मसीह, मोजेज आदि का महान कहती है। इसी प्रकार यह पत्रिका महात्मा गांधी की जगह अंग्रेज ईसाई मिशनरी – विलियम कैरी – जिन्होंने पश्चिम बंगाल में रहकर बाईबिल का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद करवाया, को ‘राष्ट्रपिता’ बताते हुए लेख प्रकाशित करती है। संबंधित लेखों में महात्मा गांधी व हमारे अन्य राष्ट्रीय नायकों के बारे में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करती है तथा अनेक ऐसे सफेद झूठ उनके बारे में रखती है, जिनसे आम जनता में उनके प्रति नफरत फैले।

-पत्रिका ने अनेक ऐसे लेख प्रकाशित किए हैं, जिसमें डॉ आंबेडकर को अपमानित किया गया है। अपने लेखों में पत्रिका कहती है कि आंबेडकर वास्तव में ईसाई बनना चाहते थे, बौद्ध नहीं। उनका बौद्ध धर्म, बुद्ध से नहीं ईसाई धर्म से प्रभावित है। पत्रिका ने अपने एक कवर पेज पर डॉ आंबेडकर की तस्वीर के साथ छेडछाड़ कर उन्हें ईसाई परिधान में दिखाया, जिससे डॉ अम्बेडकर को राष्ट्रीय नायक मानने वाले हम लोगों तथा उनके प्रभाव में बौद्ध मत को स्वीकार करने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंंची है।

-इस पत्रिका के अन्य कानूनी शेयर होल्डर्स में रंजीत गुप्ततारा शामिल हैं। इसके अलावा इस पत्रिका का मुख्य संरक्षक प्रभुगुप्त तारा नामक व्यक्ति हैं। रंजीत गुप्ततारा, प्रभु गुप्ततारा का बेटा है। ये दोनों स्विट्जरलैंड के नागरिक हैं। प्रभुगुप्त तारा स्वीस बैंक (यूनियन बैंक आफ स्विटजरलैन्ड :यूबीएस) में कार्यकारी निदेशक रहा है, जबकि उसका बेटा रंजीत गुप्ततारा भी अभी उसी बैंक में उपाध्यक्ष हैं।

– फारवर्ड प्रेस के संरक्षक प्रभुगुप्त तारा के महाराष्ट्र के कुख्यात तस्कर हवाला किंग हसन अली से इसके नजदीकी संबंध रहे हैं। इसी ने हसन अली का खाता स्विस बैंक में खुलवा कर हजारों करोड़ रुपए हेरा—फेरी में उसकी मदद की थी। कांग्रेस के कई नेताओं के खाते भी वहां इसी ने खुलवाए थे। सऊदी अरब के अंतरराष्ट्रीय हथियार व्यापारी अदनान खगोशी के साथ रिश्ते रखने के कारण स्विस बैंक का यह पूर्व अधिकारी कई देशों की जांच एजेंसियों के निशाने पर है। 2011 में हजारों करोड़ मनी लॉनड्रिंग और हवाला के मामले में हसन अली की संलिप्तता की जांच ईडी ने शुरू की थी। जांच के दौरान प्रभु गुप्त तारा का नाम सामने आया था।

-फारवर्ड प्रेस का संपादक आयवन कोस्का कैनेडा के ब्रम्पटन में स्थित ब्रमलिया बेपटिस्ट चर्च में पास्टर है। इस चर्च के पास अरबों डॉलर की संपत्ति है। इसी चर्च ने उसे ग्लोबल डिसाइपलशिप देकर भारत भेजा। भारत आने पर पहले इसने मुंबई से ईसाई धर्म का प्रचार करने वाली एक पत्रिका निकालने की योजना बनाई लेकिन बाद में इसने चर्च के निर्देश पर एक राजनीतिक और सामाजिक विषयों की पत्रिका ‘फारवर्ड प्रेस’ शुरू किया।

बहरहाल मामला अब न्यायालय में है। यदि इस पर गम्भीरता के साथ समय रहते कार्रवाई न की गई तो देश छोड़कर भागने में कोस्का दंपत्ति देर नहीं लगाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। घूमंतु पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं, ग्रामीण पत्रकारिता के लिए नारद सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।)

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