Tuesday, April 23, 2024
spot_img
Homeप्रेस विज्ञप्तिपर्यावरण एवम् सामाजिक न्याय नेतृत्व पर आठ दिवसीय कार्यशाला

पर्यावरण एवम् सामाजिक न्याय नेतृत्व पर आठ दिवसीय कार्यशाला

तिथि: 07 से 14 अप्रैल, 2016
स्थान: तरुण आश्रम, गांव: भीकमपुरा किशोरी, तहसील: थानागाज़ी, जि़ला: अलवर, राजस्थान
संयोजक संगठन: एकता परिषद, जलबिरादरी, जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, नवदान्या, मज़दूर किसान शक्ति संगठन एवम् अन्य।

बदलती आबोहवा के दिखते दुष्प्रभावों ने दुनिया को चिंतित किया है; भारतीयों को भी। क्योंकि भारत में भी बाढ़ और सुखाङ का दंश कम होने की बजाय, बढ़ा ही है। परिणति गरीब के मजबूरी भरे पलायन और जबरन विस्थापन के रूप में सामने है। वे कह रहे हैं कि धरती को बुखार है। वे कह रहे हैं कि मौसम गङबङा गया है। गर्मी, सर्दी सब अनुमान से परे हो गये हैं। बेमौसम बारिश, तापमान में अचानक वृद्धि और घटोत्तरी अब आश्चर्य की बात नहीं। निचले समुद्री तट से लेकर ऊंचे पहाङ तक कोई भी अप्रत्याशित बाढ़ से अछूते नहीं है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड लंबे से समय से सुखाङ के शिकार हो रहे हैं। सबसे कमज़ोर, सबसे गरीब, छोटे व मंझोले किसानों की आजीविका लंबे समय से दुष्प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिक, सिर्फ और सिर्फ ग्रीन हाउस गैसों को दोष दे रहे हैं; जबकि संभवतः वास्तविक कारण पानी और भूमि से हमारे लेन-देन में आया असंतुलन है। सरकार और कंपनियां इस मसले पर चुप हैं। काॅप 21 में भूमि, जल, नमी और हरित क्षेत्र की भूमिका पर बहुत चर्चा न होने के पीछे एक कारण यह है कि मुनाफा कमाने वाले शायद यह समझते हैं कि जितना बिगाङ होगा, बाज़ार के लिए उतने मौके होंगे।

निस्संदेह, ऐसे में सामाजिक चेतना के पहरुओं और सामाजिक व प्रकृति सरोकारों के हितधर्मियों के लिए जानना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन क्या है ? कैसे, कब से, कहां-कहां और किस हद तक यह बदलाव प्रगट हो रहा है ? खासकर दलितों, आदिवासियों और महिला हित के मसलों पर काम करने वाले संगठनों के लिए आज क्यों जरूरी है जलवायु परिवर्तन और इसके विविध आयामों को समझना-समझाना ? गरीब-सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मज़दूर और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जलवायु सरोकार क्या हैं ? जलवायु परिवर्तन की इस परिस्थिति में सुरक्षा और समाधान को लेकर हमारी क्या-क्या भूमिका हो सकती है ? उस भूमिका का निर्वाह सुनिश्चित करने के लिए हमें कैसी तैयारी की जरूरत है ? इन प्रश्नों पर आज विचार-विमर्श की जरूरत है। जरूरत कि समय रहते भावी कार्ययोजना बने। इसीलिए तरुण भारत संघ के गंवई आंगन में ठंडे दिमाग और स्थिर मन के साथ विचार करने की दृष्टि से यह कार्यशाला आयोजित की गई है। उत्तरापेक्षियों में एकता परिषद की ओर से श्री पी. व्ही, राजगोपाल जी और जलबिरादरी व तरुण भारत संघ की ओर से जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी का नाम है।

हालांकि गरीब की चिंता करने वाले इस कार्यशाला के आयोजन का आमंत्रण.. विवरण सब कुछ अंग्रेजी में है। विदेशी फण्ड आधारित परियोजनाओं और दस्तावेजीकरण को प्रमाण मानने वाले कार्यों की एक यही दिक्कत है कि वे गरीब की बात भी करेंगे, तो अंग्रेजी में। जैसे मान लिया गया है कि अंग्रेजी सब समझते हैं और दक्षिण भारतीय लोग हिंदी नहीं समझते। खैर, आयोजकों द्वारा प्रेषित आमंत्रण पत्र ने कुछ इन्ही शब्दों में कार्यशाला का मंतव्य व चिंता प्रस्तुत की है। उन्होने इसे ’नेतृत्व निर्माण बैठक’ भी कहा है। निस्संदेह, विषय गंभीर है। स्थितियां-परिस्थितियां और काॅप 21 के वक्त जलवायु परिवर्ततन पर शासन व मीडिया चर्चा मंे आई तेजी और उसके बाद छाई चुप्पी भी गंभीर ही है। आवश्यक है कि यह चुप्पी टूटे; संवाद हो; निर्णय हों; प्रयास हों और बदलाव के कारणों का निवारण तथा दुष्प्रभाव से संरक्षा ज़मीन पर उतरे। इसी विश्वास के साथ शामिल होने मैं भी इस कार्यशाला में जा रहा हूं। लौटकर लिखता हूं कि क्या निकला ?

अधिक जानकारी के लिए संपर्क: [email protected]

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार