Friday, April 19, 2024
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भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक: पुरी के गजपति महाराजा, श्री श्री दिव्यसिंह देव

जगत के नाथ श्री श्री जगन्नाथ भगवान के प्रथम सेवक हैं पुरी धाम के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी।इनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन राजतंत्रीय है लेकिन विचार,आचरण,व्यवहार तथा सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिक है प्रजातांत्रिक। ये सनातनी जीवन के शाश्वत जीवन मूल्यों के संरक्षक तथा सच्चे प्रचारक हैं। ये जगन्नाथ भगवान के प्रथम सेवक हैं। भगवान जगन्नाथ की इन पर ऐसी असीम कृपा है कि ये बडे ही आत्मीय,सहृदय,दयालु और कृपालु हैं कि पूरी दुनिया इनको जगन्नाथ भगवान की तरह ही सर्वधर्म समन्वय के साक्षात प्रतीक मानती है। जगन्नाथ और पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग के प्रति इनकी अगाध श्रद्धा और विश्वास है। ओडिशा से लेकर पूरे भारत में तथा भारत से लेकर विदेशों में जितने भी श्री जगन्नाथ मंदिर आजतक बने हैं और बन रहे हैं उन जगन्नाथ मंदिरों की स्थापना तथा उन मंदिरों में चतुर्धा देवविग्रहों की प्राणप्रतिष्ठा के दौरान पुरी के गजपति महाराजा जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक तथा उनके प्रतिनिधि बनकर जाते हैं और अपने आध्यात्मिक दायित्व को संपन्न करते हैं। हाल ही में वे अमरीका में जाकर अपने इस दायित्व को वखूबी निभाए।

पुरी के गजपति महाराजा,श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी का जन्म 06फरवरी,1953 में एक राजपरिवार में हुआ। ये अपने स्वर्गीय पिताजी महाराजा वीरकिशोर देवजी से विरासत में भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक के रुप में छेरापंहरा आदि का पवित्र दायित्व प्राप्त किये हैं। 1971 में जब ये मात्र 19 वर्ष के थे तभी से ये भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दिन छेरापंहरा का पवित्र दायित्व वहन करते आ रहे हैं। प्रतिवर्ष ये आषाढ शुक्ल द्वितीया,रथयात्रा के दिन ये अपने पुरी धाम के राजमहल श्रीनाहर से सफेद राजसी पोशाक में तथा सफेद पालकी में सवार होकर मुसकराते हुए आते हैं तथा तीनों रथों नंदिघोष(जगन्नाथ जी के रथ) देवदलन(सुभद्राजी के रथ) तथा तालध्वज रथ(बलभद्र की के रथ) पर चंदनमिश्रित पवित्र जल छिडकर छेरापंहरा का दायित्व निभाते हैं।उस समय ये विश्व के समस्त जगन्नाथ भक्तों को सादगी का संदेश देता है।जगन्नाथ जी के प्रति अटूट भक्ति तथा श्रद्धा का संदेश देते हैं।इनकी प्रारंभिक शिक्षा पुरी के एक मिशनरी स्कूल में हुई। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के संत स्टीफन कालेज से एलएल.बी. किया। आपने अमरीका शिकागो के नार्थ-वेस्टर्न विश्वविद्यालय से एलएल.एम. किया।

इनकी महारानी ,महारानी सूर्यमणि महापट्टदेवी इनके आध्यात्मिक तथा सामाजिक जीवन की प्रेरणा हैं। 1980 से 1993 तक ये आध्यात्मिक साधना के लिए उत्तराखण्ड,देहरादून के स्वामी शिवानन्द आश्रम में रहे । 7जुलाई,1970 को इनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया।उसके उपरांत ये भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक के रुप में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के समय छेरापहंरा की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

2012 में ये पहली बार सामूहिक श्रीमद्भागवत कथा,रामकथा तथा हनुमंत कथा की तरह श्री जगन्नाथ कथा को पुरी में पंचरात्र महोत्सव के रुप में आरंभ किये।गौरतलब है कि अब यह आयोजन पूरे ओडिशा में समय-समय पर हो रहा है।इसके आयोजन द्वारा गजपति महाराजा स्कंदपुराण में वर्णित भगवान जगन्नाथ महात्म्य को अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाना चाहते हैं।ये स्कन्द पुराण में वर्णित भगवान जगन्नाथ के पूजा-पाठ को ही मूल रुप में महत्त्व देते हैं। ये सभी भाषाओं का आदर करते हुए स्कन्द पुराण का ओडिया,अंग्रेजी तथा हिन्दी संस्करण समय-समय पर प्रकाशित करवाते हैं।ये पुरी धाम में समय-समय पर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सर्वधर्म सम्मेलन आयोजित कराते हैं।

पुरी गोवर्द्धन पीठ के जीर्णोद्धार में महाराजा श्री का योगदान अभूतपूर्व है।ये चाहते हैं कि श्री जगन्नाथ मंदिर का सर्वांगीण विकास हो। मंदिर के सभी सेवायतों के हितों का ये विशेष खयाल रखते हैं।जगन्नाथ संस्कृति के ये पुरोधागण हैं। ये एक ही बात कहते हैं कि सभी को अपने-अपने व्यक्तिगत जीवन में सदगुरु,सत्संग तथा सदग्रंथ को अपनाना चाहिए। सच कहा जाय तो ये इन तीनों के सतत विकास के लिए ही अपना आध्याध्यमिक जीवन धारण किये हुए हैं। इनके भगवान जगन्नाथ के प्रति समर्पित यथार्थ जीवन का प्रमाण 1972 की रथयात्रा के दिन देखने को मिला। रथयात्रा के लिए चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी विजय कराकर उन्हें रथारुढ किया जा चुका था लेकिन भगवान जगन्नाथ अपने रथ नंदिघोष रथ की सीढियों पर ही बैठे रहे। अपराह्न हो गया था। ऐसे में ये अपने राजमहल श्रीनाहर से दौडते हुए रथ के समीप आये और भगवान जगन्नाथजी से प्रार्थना किये कि वे रथारुढ हों और भगवान जगन्नाथ इनकी प्रार्थना स्वीकार कर तत्काल रथारुढ हो गये और जय जगन्नाथ के साथ रथयात्रा आरंभ हो गई।

इनके आध्यात्मिक जीवन से जुडी अनेक ऐसी बातें हैं जो सिद्ध करती हैं कि ये सचमुच भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक हैं जो सर्वधर्म समन्वय तथा बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय में अटूट विश्वास रखते हैं तथा इनके सहायक जगन्नाथ भगवान हैं जिनकी सेवा ये उनके प्रथम सेवक के रुप में करते हैं।

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