Thursday, March 28, 2024
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हाड़ोती पुरातत्व दर्शन : चित्रकला दीर्घा, राज.संग्रहालय कोटा

कोटा के राजकीय संग्रहालय की चित्रकला दीर्घा में कोटा – बूंदी शैली के नायब चित्रों का संग्रह प्रदर्शित करता है। चित्रों को कला का सबसे प्रभावशाली माध्यम माना जाता हैं। राजस्थान की विभिन्न शैलियों में बूंदी शैली के लघुचित्रों का विशिष्ठ स्थान है। यह शैली मुगल शैली से प्रभावित थी। 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस शैली में प्रभावशाली चित्रण किया जाने लगा। 18वीं सदी के मध्य के पश्चात उच्च तकनीक श्रेष्ठता एवं अलंकरण में हास होना प्रारंभ हो गया।

दीर्घा के आरंभ में नायक, नायिकाओं के रंगचित्र प्रदर्शित हैं। प्रारंभ में नायिकाभेद एवं रागमाला के कतिपय चित्र हैं। इस शैली के चितेरों ने भावों को बखूबी से व्यक्त किया है। कृष्ण की बाल लीलाएं, गोचारण, असुरवध, नंद-कंस सम्मेलन आदि लघुचित्रों को संयोजित किया गया है। कोटा शैली के कुछ रंगचित्र भी प्रदर्शित किये गये हैं। इन चित्रों में दो स्त्रियों द्वारा शेर का शिकार, जल विहार एवं आलनिया के जंगलों में शिकार के दृश्य मुख्य हैं। इस शैली के चित्रकारों ने जंगल में शिकार के द्वश्यों का यथार्थ चित्रांकन किया है।

इस शैली के नायिकाओं के कतिपय रंगचित्र भी यहां प्रदर्शित हैं। 19वीं शती के अंतिम चतुर्थांश में पाश्चात्य प्रभाव के कारण इस शैली की अवनति प्रारंभ हो गई। दीर्घा के अंतिम भाग में जयपुर शैली के बारहमासा की श्रंखला प्रदर्शित की गई है। राधा-कृष्ण पर आधारित इन चित्रों में मास की विशेषताओं का रूपांकन है। इस प्रकार इस दीर्घा में कृष्ण-लीला चित्रों की बहुलता है।

संग्रहालय की चित्रकला दीर्घा में विश्व प्रसिद्ध बूंदी शैली में राजसी जीवन, शिकार, श्रंगार प्रियता, संगीत की विभिन्न रागों और भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं से सम्बन्धित बेमिसाल पेंटिंग्स प्रदर्शित की गई हैं। उपवन में महिलाएं आंनद लेते हुए, हाथों में मदिरा पात्र लिए स्त्रियों को निर्देशित करते हुए, सेविका रानी से विनय करते हुए पेंटिंग्स से दीर्घा की शुरुआत होती है। राग ललित चित्र में सोती नायिका को छोड़ कर जाते हुए नायक, राग टोड़ी में उद्यान में वीना लिए नायिका के सामने आते मृग, राग गंधार में एक नायिका व्याघ्र चर्म पर तपस्या करते हुए और खप्पर लिए दूसरी नायिका सामने खड़ी है, राग गौरी में हाथ में माला और फुलझडी लिए नायिका प्रतीक्षा कर रही है, राग पूर्वी में कुर्सी पर बैठ कर अंगड़ाई लेते हुए नायिका एवं राग मानवती में अंगड़ाई मुद्रा में नायिका को मनाते नायक का चित्रण किया गया है।

लघुचित्रों में प्रेमाशक्त नायक – नायिका, संगीत का आंनद लेते हुए नायक, सोते हुए नायिका को सेविका पंखा करते हुए, प्रेमालाप करते नायक – नायिका, शुक क्रीड़ा करते नायिका और सामने पिंजरा लिए खड़ी नायिका, उपवन में रोमांचक मुद्रा में खड़े नायक – नायिका, भवन के सामने खड़े नायक – नायिका, सेज पर बैठी नायिका से प्रिमालाप करते, सरोवर के किनारे स्नान के बाद केश विन्यास करती नायिका और दूसरी स्त्री ओढ़नी से ओट करते हुए, भवन के समीप मीरा सितार के लिए बालक को बुलाते हुए, विचारों में खोई नायिका, राजा – रानी सेज पर बैठे हैं और नीचे दो स्त्रियां वादन एवं गायन कर रही हैं के चित्र प्रदर्शित किये गये हैं।

शिकार सम्बन्धी लघुचित्रों में दौड़ते हुए अश्वों पर नायक – नायिका, राजा द्वारा शेर का शिकार पास में एक हिरन, जंगल में एक मचान पर दो स्त्रियां मृगों का शिकार करते हुए और जल विहार के साथ नाव से शेर का शिकार करते हुए के चित्रण देखने को मिलतें हैं।

भगवान कृष्ण की जीवन लीलाओं से सम्बन्धित चित्रों में ज्येष्ठ माह में राधा – कृष्ण भवन में बैठे हैं और सेविका पंखा कर रही है एवं एक व्यक्ति मशक से पानी का छिड़काव कर रहा है, सद्य स्नाता को दर्पण दिखाती दो नायिका और झरोखे से देखते हुए राजा, नंद – यशोदा के सामने गर्गाचार्य ज्योतिष शिशु कृष्ण का नाम देखते हुए, तृणावर्त दानव वध के प्रसंग,भवन की छत पर कृष्ण को अपना दूध पिलाते यशोदा और दही बिलोती गोपियां, कृष्ण सखाओं के साथ माखन चोरी करते हुए, कृष्ण दावानल पान करते हुए और विस्मय से देखते बलराम, यमुना नदी में कालिया नाग की जकड में कृष्ण और चिंता करते महिला – पुरुष , कृष्ण द्वारा रजक वध, गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, नंद- वसुदेव वार्ता और पास में धन – दौलत से भरी गाडियां खड़ी हैं, वृक्षों के नीचे कृष्ण की चरण सेवा करते हुए बलराम, अश्व दानव केशी का वध करते हुए कृष्ण, वृष्णभासुर का सिंग से वध करते हुए कृष्ण, वृक्षों के नीचे कमल सरोवर किनारे गाय का दूध दुहते कृष्ण, कंस सभासदों से विचार- विमर्श करते हुए, नंद – कंस वार्तालाप और राजा परीक्षित ध्यानस्त ऋषि की गर्दन पर धनुषबाण से सर्प डाल कर ध्यान भंग करते हुए आदि चित्र देखने को मिलते हैं।

इनके अतिरिक्त और भी कई सुंदर चित्र यहां प्रदर्शित हैं। विशेषता यह है की प्रदर्शित चित्रों की कारीगरी इतनी बारीक है कि इन्हें बारीकी से देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं। इसके लिए लेंस की जरूरत होगी। अत: सुझाव है कि आप संग्रहालय जाते समय आकृति को बड़ा दिखाने वाला मेग्नीफाइड लेंस साथ लेकर जाए।

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