Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोआईएएस आरती डोगराः छोटा कद ऊँचे काम

आईएएस आरती डोगराः छोटा कद ऊँचे काम

आईएएस आरती डोगरा ने अपनी कामयाबियों के सफर में कभी अपने कद (3 फुट, 2 इंच) को आड़े नहीं आने दिया। राजस्थान में अपने स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ से पीएमओ तक मुग्ध कर देने वाली उत्तराखंड के कर्नल पिता की बिटिया आरती डोगरा राजस्थान ही नहीं पूरे देश के प्रशासनिक वर्ग में एक नई मिसाल बन चुकी हैं। आरती डोगरा आरती डोगरा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया।

वह जोधपुर डिस्कॉम का प्रबंध निदेशक भी रह चुकी हैं। इस पद पर नियुक्त होने वाली वे पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं। राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में कलक्टर रह चुकीं आरती डोगरा अब अजमेर की नई कलेक्टर नियुक्त की गई हैं। वह कद में तो मात्र तीन फुट छह इंच की हैं लेकिन खुले में शौच से मुक्ति के लिए शुरू हुए उनके स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ पर पीएमओ भी मुग्ध हो चुका है। वर्ष 2006 बैच की आईएएस आरती डोगरा दून के विजय कॉलोनी की रहने वाली हैं। उनके पिता कर्नल राजेन्द्र डोरा सेना में अधिकारी और मां कुमकुम स्कूल में प्रिसिंपल रही हैं। आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी बच्ची सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी। माता-पिता के जुनून ने उनको हौसला प्रदान किया। उसी वक्त उनके माता-पिता ने तय कर लिया कि उनकी बिटिया सामान्य स्कूल में अन्य बच्चों के साथ पढ़ने जाएगी। फिर उन्होंने ऐसा ही किया। उनको शुरू से इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह पढ़ाई के अलावा खेलकूद और अन्य गतिविधियों में सामान्य बच्चों की तरह ही भाग लेती रहें। कर्नल पिता में ऐसा जुनून था कि बिटिया को उन्होंने न केवल खेलकूद में प्रोत्साहित किया बल्कि घुड़सवारी तक सिखाई। इसके लिए उन्होंने अलग से जीन तक बनवाकर उन्हें घोड़े पर बैठना सिखाया।

आरती डोगरा बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड के रूप में माता-पिता ने मेरी परवरिश की। उन्होंने इतना हौसला प्रदान किया कि कभी किसी प्रकार की कमी नहीं महसूस हुई। स्कूल से निकल कर दिल्ली के श्रीराम लेडी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के दौरान उन्होंने जमकर छात्र राजनीति में भी भाग लिया और छात्र संघ चुनाव भी जीतीं। वह कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधयों से लेकर डिबेट तक में खुद भाग लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारती रहीं। ग्रेजुएशन के बाद पीजी उन्होंने देहरादून से की। इसके बाद अपने पसन्द के काम यानी बच्चों को पढ़ाने में जुट गईं। इस दौरान देहरादून की तत्कालीन कलेक्टर मनीषा के साथ उनकी मुलाकात ने पूरी सोच ही बदल कर रख दी। मनीषा ने उनको प्रेरित किया कि यदि वे लगन के साथ तैयारी करें तो आसानी से आईएएस अधिकारी बन सकती हैं। इसके बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उन्हे वही मंजिल प्राप्त करनी है। मन लगाकर तैयारियों में जुट गईं। कर्नल पिता को पता चला तो उन्होंने एक ही बात कही कि चाहे जो काम करो, नतीजों की चिन्ता छोड़ उसमें अपना पूरा सौ फीसदी श्रम और विवेक झोक दो। उन्होंने जमकर मेहनत की और उम्मीद के विपरीत लिखित परीक्षा पास कर ली। अब साक्षात्कार में जाना था। साक्षात्कार के लिए कमरे में प्रवेश करने से पूर्व बुरी तरह से नर्वस हो चुकी थीं। अंदर पहुंचीं तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने माहौल को कुछ हल्का बनाया तो हिम्मत आई। इसके बाद 45 मिनट तक सवाल-जवाब की दौर चला। आर्मी व अर्थशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण अधिकांश सवाल इसी से जुड़े रहे। इस तरह वह अपने पहले ही प्रयास में आईएएस सेलेक्ट हो गईं।

वह अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनी आईएएस अफसरों से भी ‘बंको बिकाणो’ अभियान के अनुभव कई बार साझा कर चुकी हैं। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में भी वह केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश के अफसरों को ‘बंको बिकाणो’ अभियान के बारे में बता चुकी हैं। जयपुर में विश्व बैंक की ओर से दुनियाभर के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भी उन्होंने इस अभियान पर प्रजेंटेशन दिया था। वह बताती हैं कि जब वह बीकानेर की डीएम थीं, दुनिया के18 देशों के प्रतिनिधि अभियान को धरातल पर देखने समय-समय पर उनके पास पहुंचे थे। उनकी ओर से मिशन अगेंस्ट एनीमिया ‘मां’ कार्यक्रम और डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स कार्यक्रम को भी पहचान मिली है। उन्होंने बीकानेर के कार्यकाल के दौरन जिले के सभी डॉक्टरों के लिए वाट्सएप अनिवार्य कर दिया था, जिससे ऐसे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों का भी इलाज वाट्सएप से किया जाने लगा, जहां डॉक्टर तैनात नहीं थे। आज भी वहां तैनात स्वास्थ्य कर्मचारी डॉक्टरों को मरीजों की जांच रिपोर्ट भेजते हैं और इन रिपोर्ट पर डॉक्टर इलाज की सलाह देते हैं।

वर्ष 2013 में बीकानेर (राजस्थान) की डीएम रहते हुए उन्होंने ‘बंको बिकाणो’ अभियान शुरू किया। इसमें लोगों को खुले में शौच नहीं करने के लिए प्रेरित किया गया। राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के साथ आईएएस आरती डोगरा धीरे-धीरे यह आंदोलन राजस्थान के बाकी जिलों में फैला और दो साल के भीतर ही राजस्थान के बाहर अन्य राज्यों ने भी इस मॉडल को अपना लिया। आरती डोगरा बताती हैं कि कुछ ही महीनों में बीकानेर की 195 ग्राम पंचायतों में सफलता पूर्वक यह अभियान चला। इसमें प्रशासन के लोग सुबह गांव में पहुंचकर खुले में शौच करने वालों को रोकते थे। ऐसे गांवों में घर-घर पक्के शौचालय बनवाए गए, जिनकी मॉनिटरिंग मोबाइल के जरिए ‘आउट कम ट्रैकर साफ्टवेयर’ से की जाती थी। आरती डोगरा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया। वह जोधपुर डिस्कॉम का प्रबंध निदेशक भी रह चुकी हैं। इस पद पर नियुक्त होने वाली वे पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं। वह अपना सबसे बेहतर कार्यकाल बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मानती हैं, जहां उन्होंने कुछ अनाथ लड़कियों की मदद की।

आज भी वे लगातार उनके संपर्क में हैं। आरती डोगरा अपने जीवन के अनुभव साझा करती हुई बताती हैं कि आईएएस अधिकारी का पद कभी महिला और पुरुष में भेद नहीं करता है। ऐसे में उनको तो कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वे एक महिला हैं। इस पद पर रहते हुए किसी अधिकारी से जिस काम की अपेक्षा की जाए, वह एक महिला भी आसानी से निभा सकती है। कलेक्टर रहने के दौरान कई बार उन्होंने रात को दो बजे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई। उन्हें अपने अब तक के जीवन को लेकर किसी प्रकार का अफसोस नहीं है। वह मानती हैं कि यह नकारात्मक सोच है और वह कभी ऐसा नहीं सोच सकती हैं। अब तक के कैरियर में उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मिली है। वो अनाथ लड़कियां आज बीकानेर के बड़े स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रही हैं। वे स्वयं लगातार उनके संपर्क में रहती हैं।

वर्ष 2013 में निर्मल भारत अभियान के तहत जब उन्होंने बंको बीकाणा अभियान की लांचिंग की थी, मोबाइल एप, अलसुबह मॉनीटरिंग और जनप्रतिनिधियों के जुड़ाव के चलते उनका प्रयास कैंपेन कम्युनिटी कैम्पेन में तब्दील हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उनके अभियान की प्रशंसा करते हुए उसकी और अधिक बेहतर तरीके से मानीटरिंग के निर्देश दिए थे। डोगरा के तबादले के बाद जिला कलेक्टर पूनम ने भी इस कैंपेन को उसी गंभीरता के साथ आगे जारी रखा। यही कारण रहा कि जब 26 जनवरी को बीकानेर जिला राजस्थान का प्रथम ओडीएफ जिला घोषित हुआ, तो जिला कलेक्टर पूनम को भी राज्यपाल के हाथों सम्मानित किया गया। इस अभियान के लिए राजस्थान में बीकानेर, अजमेर, चूरु, झुंझुनूं और जयपुर जिले नामांकित किए गए थे। बंको बीकाणा अभियान की इस सफलता से न केवल प्रशासनिक अधिकारी रोमांचित रहते हैं, बल्कि बाद में आरती डोगरा को केन्द्रीय मंत्री ने बेहतर काम के लिए अन्य नौकरशाहों के साथ दिल्ली में आमंत्रित किया था।

साभार- https://yourstory.com/hindi/ से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार