Friday, April 19, 2024
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वैष्णव मूर्ति कला,कोटा संग्रहालय के संदर्भ में

हाड़ौती में वैष्णव धर्म के प्राचीनकालीन प्रमाण मिलते हैं। ग्राम बड़वा (जिला बारां) के तीसरी ई. शताब्दी के प्रस्तर यूप स्तम्भों पर स्थानीय मोखरी शासकों द्वारा यज्ञ सम्पादन का विवरण उत्कीर्ण है। ये स्तम्भ वैदिक धर्म की पुनर्जाग्रति के प्रमाण है। इनमें चार स्तम्भ संग्रहालय के प्रागण में प्रदर्शित हैं। 423 ई. के गंगधार शिलालेख में विष्णु एवं डाकिमी मातृका (योगिनी) मंदिर के निर्माण का उल्लेख मिलता है।

कृष्णविलास (जिला बारां) में 9-10वीं ई. सदी के अनेक देवालयों के अवशेष विद्यमान हैं। इन देवालयों में बहुसंख्यक विष्णु को समर्पित हैं। यहां से प्राप्त वैष्णव मूर्तिशिल्प में विष्णु के विभिन्न अवतार फलक, कृष्ण और शेषाशायी विष्णु की प्रतिमाएं प्रमुख हैं। इस दीर्घा में कृष्णविलास की गजासुर संहार और अवतार आदि की मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं। शेरगढ़ में 11वीं ई. शताब्दी में निर्मित लक्ष्मीनारायण मंदिर आज भी सुरक्षित स्थिति में है। बडोरा में विष्णु मंदिर के संरचनात्मक अवशेष मौजूद हैं।


कोटा के समीपस्थ चित्तौड़गढ़ की सीमा में बाड़ोली के मंदिर समूह अपनी भव्यता के कारण विख्यात है। यहां के विष्णु मंदिर की अलौकिक शेषशायी विष्णु प्रतिमा भारतीय कला की उत्कृष्ट कलाकृति है। इसलिए इस मूर्ति को संग्रहालय के प्रवेश के प्रथम कक्ष में स्थान दिया गया है। कोटा जिले के गागोबी में 9वीं ई. शताब्दी का विष्णु मंदिर था। इस दीर्घा में गांगोबी का तोरणखण्ड, पद्मनाभ एवं दामोदर स्वरूप की प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं। मंदिर समूह काकूनी, रामगढ़, धूमेन, अटरू और चन्द्रेसल में वैष्णव देवालय भी विद्यमान थे। ये मंदिर तत्कालीन भागवत धर्म की लोकप्रियता प्रमाण हैं।

वैष्णव धर्म में विष्णु के दस अवतार और चौबीस स्वरूपों की पूजा परम्परा है। इस अवतारों और स्वरूपों की कतिपय मूर्तियां इस दीर्घा में प्रदर्शित की गई हैं। गदा, शंख, चक्र एवं पद्म आयुध हाथों में धारण करने के क्रम के अनुसार विष्णु स्वरूप निर्धारित होता है। स्थानक विष्णु, शेवशायी विष्णु, वामन, नरवराह, वैष्णवी और धुव वसु आदि महत्वपूर्ण प्रतिमाएं दीर्घा का अन्य आकर्पण हैं। इस दीर्घा में विभिन्न प्रतिमाएं तिथि-क्रम में सयोजित की गई हैं। प्रदर्शित कलाकृतियां तत्कालीन वैष्णव धर्म के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

संग्रहालय के प्रवेश कक्ष में बाईं तरफ बाडोली से प्राप्त शेषशायी विष्णु की अलौकिक विशाल प्रतिमा प्रदर्शित है। शेषशायी विष्णु की नाभि कमल पर ब्रहम्मा विराजमान हैं। ऊपरी पट्टिका में दशावतार एवं अष्ट दिकपालों का अंकन है। इसमें किरीट मुकुट, कुण्डल, केयूर ओर गले में हार धारण किए विष्णु क्षीरसागर में शेष पर लेटे हुऐ हैं, उनकी नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा आसीन है, लक्ष्मी पांव दबा रही है, युद्धरत मधु-कैटम, द्वारपाल एवं द्वारपालिकाएं सब बड़े विस्तार से दिखाए गए हैं। लगभग 9 वीं शती की यह मूर्ति आकृतियां मांसल है। इसमें गुप्तकालीन सुडौलता व मध्यकालीन तकनीकी प्रौढ़ता दोनों ही साथ-साथ दिखाई देते हैं। संग्रहालय की यह प्रतिमा फरवरी 1993 ई. में एशियाई सोसायटी गेलरी न्यूयार्क में आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित की जा चुकी है।

प्रदर्शित मुख्य प्रतिमाएं
(1 ) इस दीर्घा में बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की विष्णु द्वय प्रतिमा में विष्णु सम्मुख भाग में विविध आयुध लिये हैं। पार्श्व भाग में चतुर्हस्त विष्णु की प्रतिमा खण्डित स्थिति में है।

(2) बारां से प्राप्त 9वीं सदी की त्रिविक्रम प्रतिमा में ऊपर ब्रह्मा और शिव सुखासन अवस्था में है और नीचे आयुध पुरूष और परिचारक दिखाये गये हैं।

(3) बारां जिले के विलास से ही प्राप्त 10वीं सदी की दामोदर प्रतिमा के दोनों ओर शार्दूल गज एवं पुरूष आकृतियां हैं। यहीं से 10वीं सदी की नृसिंह प्रतिमा में विष्णु का नरसिंह अवतार हिरण्यकश्यपु का पेट चीर कर वध करते हुये दृष्टव्य है। एक अन्य प्रतिमा धु्रव एवं घर वसु में गोमुखी गोमुखी धु्रव सुखासन में विराजमान है तथा दक्षिण पार्श्व में धर वसु है।

(4) कोटा जिले के गांगोबी से प्राप्त 9वीं सदी की हरि-मार्तण्ड प्रतिमा पद्मासन में ध्यान मुद्रा में है एवं ऊपरी हाथों में शंख एवं सनाल कमल लिये हुए है। गांगोबी से ही 9वीं सदी की तोरण का खण्डित भाग प्रतिमा में मध्य खण्ड में विष्णु का अंकन एवं अन्तिम खण्ड में कल्कि एवं कच्छप अवतार उत्कीर्ण है। इसी काल की गांगोबी से प्राप्त विष्णु स्वरूप पद्ममासन के दोनों ओर स्त्री आकृतियां उत्कीर्ण हैं।

(5) कोटा से प्राप्त 10वीं सदी की वामन प्रतिमा में ऊपरी ताकों में क्रमश गणेश और वीणाधारिणी, उत्कीर्ण हैं और नीचे आयुध पुरुषों का अंकन है।

(6) बारां जिले के रामगढ़ से 9वीं सदी की चतुर्हस्त वैष्णवी प्रतिमा में ललितासना में विराजमान ऊपरी दायें हाथ में गदा है तथा शेष हाथ खण्डित हैं।

(7) बारां से प्राप्त नवीं सदी की शेषशायी विष्णु में विष्णु की प्रतिमा के ऊपर एवं नीचे के भाग में देवसेना का दृश्य उत्कीर्ण किए गये हैं।

(8 ) बारां जिले के अटरू से प्राप्त 9वीं सदी की अधोक्षज प्रतिमा के निचले भाग में आयुध एवं पुरूष दृष्टव्य हैं। बारां से समकालीन विष्णु प्रतिमा में ऊपरी भाग में ब्रह्मा और शिव का अंकन है तथा निचले भाग में अनुचर वर्ग का अंकन किया गया है।

(9) कोटा से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा दिक्पाल के दक्षिण हाथ में खटवांग और बायें हाथ में कुक्कुट तथा बायें पैर के समीप वाहन महामहिष उत्कीर्ण हैं। इसी सदी की एक प्रतिमा में शिशु सहित अम्बिका के दांये हाथ में आम्रलुंबी और नीचे सिंह वाहन उत्कीर्ण हैं।

(10) बारां जिले के छबड़ा से प्राप्त 10वीं सदी की नवग्रह फलक प्रतिमा में सूर्य से केतु तक ग्रहों का सुंदर अंकन किया गया है। वामवर्ती भाग में कीचक पर युगल उत्कीर्ण है।

(11) बारां से प्राप्त नवीं सदी की प्रतिमा जननी और बांसुरी वादक प्रतिमा में बायें हाथ में गोद में बच्चे को सहारा देते हुए तथा पुरूष बांसुरी वादन करते हुए उत्कीर्ण किये गये हैं।

(12) बारां जिले के रामगढ़ से ही प्राप्त 9वीं सदी की प्रतिमा माता और शिशु में आभूषणों से अलंकृत माता की गोद में शिशु का अंकन किया गया है। यहीं से 10वीं सदी की प्राप्त प्रतिमा कुबेर (तांत्रिक) में कुबेर ललितासन मुद्रा में दायें हाथ में पानपात्र एवं बायें हाथ में मत्स्य लिए है तथा समीप एक महिला का अंकन किया गया है। मत्स्य तांत्रिक प्रतीक है।

(13) बारां जिले से प्राप्त 10वीं सदी की खण्डित सप्त मातृका फलक प्रतिमा में मातृका वाराही, ऐन्द्री एवं चामुंडा का अंकन किया गया है। बारां जिले के छबड़ा से प्राप्त समकालीन ब्रह्मा प्रतिमा में परिकर के ऊपरी खण्ड में प्रमुख मातृकाएं सुखासन में विराजमान उत्कीर्ण की गई हैं।

(14) कोटा के जग मंदिर से प्राप्त 10वीं सदी की विष्णु प्रतिमा में विष्णु खड़े हैं, पादपीठ पर पृथ्वी देवी का अंकन तथा दोनों तरफ हाथ जोड़े उपासक दर्शाए गए हैं।
इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त कुछ और प्रतिमाएं भी संग्रहालय की दीर्घा में प्रदर्शित हैं। हाड़ोती की वैष्णव मूर्तिकला के अध्ययन के लिए यह दीर्घा महत्वपूर्ण है।

लेखक राजस्थान के मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं और ऐतिहासिक व पर्टयन से जुड़े विषयों पर लिखते हैं)

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