Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeप्रेस विज्ञप्तिभारत एक समृद्ध देश था, है और बना रहेगा

भारत एक समृद्ध देश था, है और बना रहेगा

नई दिल्ली । दिल्ली के रफी मार्ग स्थित कांस्टीट्यूशनल क्लब में 19 दिसंबर, 2021 को कोरोना पश्चात वैश्विक व्यवस्था में भारत, संभावनाएं और चुनौतियां विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई।

इस कार्यक्रम में बीज वक्तव्य देते हुए भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी डॉक्टर शैलेंद्र कुमार ने कहा कि भारत कोरोना पश्चात किस प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है और इनके समाधान के लिए कौन सी दिशा पकड़नी है इसका मंथन करना अब आवश्यक हो गया है। प्रश्न उठता है कि पश्चिमी देशों ने जिस प्रकार की एक व्यवस्था हमारे ऊपर थोप दी है क्या उसके सहारे भारत महान बन पाएगा और अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनर्स्थापित कर पाएगा।

पश्चिमी देशों की पक्षपात पूर्ण व्यवस्था का सबसे ज्वलंत और सटीक उदाहरण वर्तमान समय की आर्थिक प्रणाली और उसको चलाने के उनके मानदंड का है। उन्होंने अर्थव्यवस्था को मापने अर्थात जीडीपी के आकलन का एक पैमाना तय किया हुआ है जिसे उन्होंने सार्वभौमिक स्तर पर घोषित कर रखा है और उसी के आधार पर तमाम देशों की जीडीपी को तय कर रहे हैं तथा आर्थिक नीतियों का निर्माण कर रहे हैं। इन्हीं मानदंडों पर विकासशील, विकसित देशों का वर्गीकरण हो रहा है। यहां तक कि इसी चालाकीपूर्ण व्यवस्था के तहत वैश्विक आर्थिक निकायों में गरीब देशों और अमीर देशों की भागीदारी अथवा हिस्सेदारी निर्धारित कर रहे हैं।

कहने का मतलब है कि जिस देश की जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था होगी वैश्विक आर्थिक निकायों में उनके पास उतने ही अधिकार होंगे। समझना पड़ेगा कि चाहे वह विश्व व्यापार संगठन हो संयुक्त राष्ट्र अथवा आईएमएफ हो किसी का भी रुचि गरीब देशों को उनकी गरीबी से बाहर लाने में नहीं है और न ही उनका यह उद्देश्य है। उनका उद्देश्य तो यह है कि कैसे इनको थोड़े से लालच देकर उनके संसाधनों पर कब्जा जमाया जाए। चालाकीपूर्ण तरीके से इन्हें अपने भ्रम जाल में फंसा कर और उलझा कर रखा जाए।

जहां तक भारत को वैश्विक व्यवस्था में स्थान दिलाने की बात है तो सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि आज जो वैश्विक व्यवस्था हमें दी गई है अथवा नजर आ रही है जिसकी धूरी अमेरिका और यूरोप अपने आप को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं उससे हजारों वर्ष पूर्व एक व्यवस्थित व्यवस्था चली आ रही थी तो ज्यादा समृद्ध, सुसंगतम, सभ्य और व्यवस्थित थी और जिसकी धूरी भारत रहा है। आज की संगोष्ठी में इसी बात को स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा।

मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में देखा जा रहा है कि भारत की जीडीपी लगभग 300000 करोड़ रुपए की है जो कि अमेरिका और यूरोप द्वारा बनाए गए अथवा समर्थित वैश्विक निकायों ने अपने मानदंडों पर गणना करके तैयार की है। अब सवाल उठता है कि भारत कितने लंबे समय तक उनके झूठ और प्रपंच के जाल में फंस कर स्वयं की हीनता बोध से ग्रस्त रहेगा क्योंकि यदि भारत की जीडीपी का आकलन यदि ठीक प्रकार से किया जाए मसलन कितना उत्पादन होता है, कितना खपत होता है, हमारी समृद्धि का पैमाना क्या है, हमारी जीवन शैली का पैमाना क्या है और इन आधारों पर यदि सकल घरेलू उत्पाद की गणना की जाए तो भारत की अर्थव्यवस्था कम से कम 900000 करोड़ रुपए की बैठती है।

जेंटलमैन एग्रीमेंट यानि कि सभ्य लोगों का समझौता के तहत द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात आज के डब्ल्यूटीओ, आईएमएफ जैसे वैश्विक आर्थिक तंत्र खड़े किए गए जिनका मूल उद्देश्य युद्ध में अमेरिका और यूरोप को हुई क्षति की भरपाई करना था। जब यह कार्य पूरा हो गया तब इनको भंग किया जाना चाहिए था जबकि इसके इसे गरीब देशों से कमाने का जरिया बनाया गया। यह षड़यंत्र उन्हें गरीबी से उबरने के नाम पर चल रहा है। इसमें उनका भेदभाव पूर्ण रवैया स्पष्ट तौर पर नजर आता है।

डॉक्टर शैलेंद्र ने भारत के आर्थिक समृद्धि के पैमाने को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारे यहां शास्त्रों में व्यापारे वसते लक्ष्मी की बात कही गई है जो स्वतः सिद्ध करती है की व्यापार के स्तर पर हम कितने उन्नत सोच से युक्त रहे हैं और पुनः अपनी जड़ों की ओर लौटने और अपने तरीकों को अपनाने पर ही हम उस गौरव को हासिल कर पाएंगे।

उन्होंने आगे कहा कि मध्य एशिया के जितने देशों के नाम के अंत में स्थान शब्द लगा नजर आ रहा है वह वास्तव में स्थान था जो भारत की सीमा होने का परिचय देते हैं। समृद्धि के मोर्चे पर बात करें तो भारत के सभी तटीय प्रदेशों पर नजर डालिये। ओडिशा से लेकर गुजरात तक के समृद्ध मंदिर भारत के समृद्धि के प्रतीक के तौर पर देखे जा सकते हैं। इसके आधार पर भारत के व्यापार के दायरे को समझा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आर्थिक समृद्धि में पिछड़ने की एक वजह यह भी है कि हमें निज भाषा का गौरव नहीं रहा। जिन देशों में एक भाषा है एक संस्कृति, प्रकृति और जाति के लोग हैं उन्होंने जबरदस्त आर्थिक तरक्की हासिल की है। हमारे यहां विदेशी भाषा, विदेशी तंत्र की नक़ल और विविधता की जकड़न आर्थिक प्रगति में अड़चन पैदा कर रहे हैं। हमें निज भाषा का गौरव होना चाहिए और निश्चित तौर पर इसी के दम पर हम आर्थिक उन्नति की सीढ़ियां चढ़ पाएंगे।

हमारे यहां कहा गया है
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥
जो दुष्ट प्रकृति के लोग होते हैं वह विद्या का उपयोग विवाद खड़ा करने, धन का उपयोग मद के लिए और शक्ति का उपयोग दूसरों को पीड़ा पहुँचाने के लिए करते हैं।

आईटी एवं वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ श्री प्रकाश शर्मा ने कहा कि दुनिया की तमाम आईटी कंपनियों में शीर्ष स्तर पर भारतीय की नियुक्ति हमारे लोगों की मेधा शक्ति का परिचय देने के लिए पर्याप्त है। सरकार से स्तर पर भी भारत को शशक्त और समृद्ध बनाने के प्रयास जारी हैं। सरकार कारोबार में हस्तक्षेप से बाहर निकल रही है।

प्रसिद्ध इतिहासकार तथा लेखक डॉ आनंदवर्धन ने कहा की भारत शिल्पियों का देश रहा है जिनके कौशल के दम पर दुनिया भर के तमाम देशों में भारतीय उत्पांदों की मांग और व्यापार की धमक थी। आज जब हम कोरोना पश्चात के भारत की संभावना पर बात कर रहे हैं तो इस आपातकाल के दौरान जिस सूझबूझ से भारत ने अपनी उद्यमिता का परिचय दिया है वह अपने आप में एक शश्क्त और समृद्ध भारत के लिए आशा जगाने वाला है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री आभाश कुमार मालदहियार ने कहा कि कोरोना काल में लोगों को भारत के वाश्तुशाश्त्र की अहमियत समझ आने लगी है। घर के अंदर प्रकाश और सूर्य की रोशनी का महत्व अब लोग फिर से समझने लगे हैं। दुनिया के तमाम देशों में भारत की सांस्कृतिक पहचान की जड़ें नजर आती है। चीन में पांच अँगुलियों की अवधारणा भारत की देन है।

भारतीय विश्वविद्यालय संघ की महासचिव और कार्यक्रम की अध्यक्षा डॉ पंकज मित्तल ने शिक्षा में हो रहे बदलावों पर रोशनी डालते हुए कहा कि कोरोना काल में हमने शिक्षकों और विद्यार्थियों की तकनीक को आत्मसात करने की अद्भुत क्षमता का परिचय पाया है। आज नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा जगत में बदलाव लाने का प्रयास चल रहा है।

सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक श्री रवि शंकर ने कहा कि आज की वैशिवक व्यवस्था से पहले भी एक विश्व व्यवस्था थी जिसके केंद्र भारत था और यह व्यवस्था सदियों पुरानी थी और विश्व के कल्याण से ओतप्रोत थी। हम इस बात को मजबूती के साथ रखने के लिए एक वैचारिक आंदोलन खड़ा करने की दिशा में बढ़ रहें जिसमे आज का कार्यक्रम महज एक पड़ाव है।
इस कड़ी में देशभर के लगभग 100 विद्वानों की दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन सितम्बर माह में किया गया था। उस कार्यशाला में इस विषय के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की गई थी। उस कार्यशाला में यह निश्चित किया गया था कि इस विषय पर एक पुस्तक का प्रकाशन किया जाए। इस पुस्तक में अलग अलग विषयों के विद्वान 21वी शताब्दी की वैश्विक व्यवस्था में भारत के दावों की पुष्टि के ऐतिहासिक आधारों तथा राष्ट्र की क्षमताओ पर शोधपूर्ण अध्यायों का लेखन करेंगे। प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन भी इसी दिशा में एक पड़ाव है।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार