Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवपंजाबी वीरांगणा साहिब कुंवरी

पंजाबी वीरांगणा साहिब कुंवरी

बात उन दिनों की है जिन दिनों मुगलों का सूर्य अस्ताचल की और जा रहा था और मराठा साम्राज्य विस्तारोंमुख था| इन्हीं दिनों या यूँ कहें कि आज से लगभग २०० वर्ष पूर्व वीर प्रस्विनी भारत भूमि का प्रमुख अंग पंजाब प्रदेश के अंतर्गत पटियाला नाम की जो रियासत आती थी, इस में एक बालिका ने जन्म लिया, इस बालिका नाम साहिबकुंवरि रखा गया| यह सुन्दर बालिका जब यौवन में पहुंची तो इसका विवाह वारिद्वाव के राजा जयमल सिंह से बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ| अब वह अपने पति के साथ बड़े आनंद से रहने लगी| यह युवती साहिब कुँवरि आरम्भ से ही अत्यंत वीर, धीर, सुवीर, राजनीति चातुर्य आदि गुणों की स्वामिनी और अत्यंत बुद्धिवती नारी थी| राजकार्य में वह अपने पति को बड़े ही बुद्धि से युक्त परामर्श दिया करती थी| इस के उत्तम परामर्शों पर कार्य करने के कारण इनके राज्य में सब दिशाओं में शान्ति तथा पूर्ण समृद्धि थी और इसकी प्रजा अत्यंत प्रसन्न रहती थी|

साहिब कुंवरी अत्यंत प्रसन्नता से भरा हुआ जीवन यापन कर रही थी कि एक दिन उसे अपने पिता अर्थात् महाराजा पटियाला के देहांत का समाचार मिला| महाराजा की मृत्यु के उपरांत इस राजगद्दी पर इस रानी का भाई साहिब सिंह आसीन हुआ| गद्दी पर बैठने पर पता चला कि यह एक आलसी, प्रमादी, अयोग्य, अकुशल, विलासी और दुर्बल राजा था| इस सब का यह परिणाम था कि राज्य व्यवस्था में राजा के आदेश कम और दरबारी तथा कर्मचारियों के आदेश अधिक चलते थे| इस प्रकार यह एक नाम का ही शासक अर्थात् कठपुतली शासक बनकर रह गया था| परिणाम स्वरूप राज्य के अधिकारियों और कर्मचारियों की निरंकुशता तथा मनमानियों के कारण प्रजा के साथ अन्याय होने लगा, उसका शोषण होने लगा तथा प्रजा अत्याचारों से अत्यधिक पीड़ित होने लगी| इस कारण प्रजा में विद्रोह की भावना बलवती हुई और सर्वत्र विद्रोह की चिन्गारियाँ फूटती दिखाई देने लगीं| इस अवस्था को देख जहाँ यहाँ का राजा घबरा उठा, वहां दरबारी लोग भी स्वयं को असहाय सा ही अनुभव करने लगे| इस असाधारण अवस्था में पटियाला के राजा को एक मात्र सहारा अपनी बहिन साहिब कुंवरि ही दिखाई दी| डूबता क्या न करता उसने तत्काल अपनी इस बहिन को बुला भेजा| पति की स्वीकृति लेकर साहिब कुँवरी जब पटियाला पहुंची तो राज्य की शोचनीय अवस्था को देखकर बहुत चकित होने के साथ ही साथ दु:खी भी हुई|

इस ने सर्वप्रथम प्रजा के दु:खी तथा विद्रोही होने के कारण की खोज की| उस ने प्रजा को आश्वासन दिया की प्रजा के सब दु:खों को दूर किया जावेगा| यह भी कहा गया कि यदि कोई अधिकारी अथवा राजकर्मचारी प्रजा के साथ अन्याय करेगा तो उसे भी कठोर दण्ड दिया जावेगा| मालगुजारी को पहले से कम कर दिया गया| इसके साथ ही अन्य सब करों का बोझ भी पहले से कम कर दिया गया ताकि प्रजा प्रसन्न होकर उस पर विशवास कर सके| इस सबके अतिरिक्त प्रजा की भलाई की अनेक योजनायें भी आरम्भ की गईं| इस प्रकार वह कुछ ही दिनों में प्रजा के ह्रदय की साम्राज्ञी बन गई| जहाँ उसने प्रजा के हित के कार्य किये, वहां उसने सेना को भी शक्तिशाली बनाया| इस प्रकार प्रजा एक बार फिर से प्रसन्न और शांत हो गई|

इस मध्य ही उस के पति के राज्य में भी षड्यंत्रकारी शक्ति पकड़ने लगे| इस मध्य ही एक दिन राजा जयमलसिंह के अपने ही भाई फतेहसिंह ने जयमलसिंह पर आक्रमण कर उसे बंदी बना लिया और स्वयं को वहां का शासक घोषित कर दिया| इसकी सूचना मिलते ही इस वीरांगणा ने शक्तिशाली दस्ते को अपने साथ लेकर फतहसिंह पर हमला बोल दिया| वह बहादुर और रण चातुर्य से तो निपुण थी ही, अत: अपने पति को छुडाने में उसे कुछ भी समय नहीं लगा| पति को राजसत्ता सौंप वह एक बार फिर राजसत्ता का अधिकारी बना दिया| रानी एक बार सुव्यवस्था बनाकर फिर पटियाला लौट आई|

पटियाला लौटे रानी को कुछ समय ही हुआ था की पटियाला पर मराठों ने आक्रमण कर दिया| वह इस रियासत को अपने आधीन कर मनचाही संधि के द्वारा कर लेना चाहते थे| उनका यह व्यवहार साहिब कुँवरि को अच्छा नहीं लगा| अत: उसने मदीनपुर नामक स्थान पर मराठों से युद्ध किया| भारी नर हानि उठाकर कुँवरि ने विजय प्राप्त की| इस मध्य ही नाहन की राज्य की प्रजा के विद्रोह का सामना भी उसे करना पड़ा, जिसने अपनी सैनिक शक्ति के साथ पटियाला पर आक्रमण कर दिया था| वीरांगणा ने बड़ी वीरता से मुकाबला कर इस विद्रोह को कुचल दिया|

पटियाला राज्य की एक विपत्ति दूर होती थी कि नई विपत्ति आ खडी होती थी| यहाँ का कमजोर और योग्य राजा पास पड़ोस के सब राज्य के लोभ को बढ़ा रहा था और वह सब इसे हड़प करना चाहते थे| अंग्रेज भी सब सिक्ख रियासतों पर आधिपत्य स्थापित कर अंग्रेजी राज्य के विस्तार का लोभ संजोये हुए था, इस कारण १७६६ में उसने सर टामस के नेतृत्व में जीन्द पर आक्रमण किया| इस वीर रानी, जो पटियाला की राजकुमारी थी, ने सेना एकत्र कर प्रतिरोध की तैयारी झटपट कर डाली| इससे टामस ने सिक्ख राज्यों से मुंह मोड़ कर महम की और कर लिया और सिक्ख राज्यों के पास संधि प्रस्ताव भेज दिया| इस प्रकार साहिब कुँवरि की मध्यस्थता से यह संधि कर उसने सुख की साँस ली| अब पटियाला रियासत के शत्रु शांत होने से इस रियासत में सब और से शान्ति स्थापित हो गई|

कुँवरी के पटियाला आने से मनचले कर्मचारी भयभीत रहने लगे थे| इस कारण वह इस राजकुमारी से बदले की भावना संजोये हुए थे किन्तु कुंवरि की वीरता और साहस के चर्चे सब और हो रहे थे| अत: इस राज्य पर अब उस का ही राज्य दिखाई देने लगा था| अब ईर्ष्यालु तथा जले भुने मनचले दरबारियों ने राजा के कान भरने आरम्भ कर दिए| जितने मुंह उतनी बातें| कोई कह रहा था की महाराज आपकी बहिन आपका राज्य हड़प लेना चाहती है, कोई कहता उसके कारण आपकी इज्जत समाप्त हो रही है, कोई कहता कि वह एक दिन आपको भी बंदी बना लेगी| पटियाला का राजा तो हम, जानते ही हैं कि बुद्धिहीन तथा योग्य था अत: दरबारियों की कुचाल में आ गया तथा अपनी बहिन को थोडं के किले में बंदी बना लिया| इस पर बहिन को अपने भाई की मूर्खता पर दया भी आई और क्रोध भी आया| बुद्धिमान अपने लिए अवसर स्वयं ही निकाल लिया करते हैं| अत: एक दिन अवसर पाकर वह वेश बदलकर इस किले से रफू हो गई और शीघ्र ही अपने पति के पास जा पहुंची| अब वह वहां के राज कार्यों में पति का सहयोग करने लगी| इस प्रकार अपने भाई को सुव्यवस्था देने के पश्चातˎ पति को सहयोग देते हुए यह रानी १७९९ में अपने इस माटी के पुतले को यहीं छोड़ कर वीरगति को प्राप्त हो गई|

यह साहिब कुंवरी ही थी, जिसने बिखर रहे पटियाला के राज्य को पुन: स्थापित किया अन्यथा यह राज्य अनेक भागों में बंट गया होता| इस रानी ने अपनी दूरदर्शिता, संघर्षशीलता, रणचातुर्य, वीरता तथा व्यवस्था पटूत्रा से इस राज्य को एक समृद्ध राज्य में बदल दिया| इस प्रकार अपने मायके और अपने ससुराल दोनों को सुदृढ़ करने वाली साहिब कुँवरि ने नारियों को यह प्रेरणा दी कि नारी कभी अबला नहीं होती, वह सबला ही होती है| नारी को कभी न तो कायर समझा जाए और न ही कमजोर समझा जावे| इस प्रकार की प्रेरणा वह अन्य नारियों के लिए छोड़ गई| इस प्रकार की देशभक्त, प्रजा वत्सल नारियों से प्रेरणा लेकर भारत की ही नहीं विश्व की प्रत्येक नारी को अपने अपने क्षेत्र में उन्नत होते हुए आगे बढ़ना चाहिये और जनहित के कार्य चलाने चाहिए।

डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६ e mail [email protected]

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार