Saturday, April 20, 2024
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Homeकवितामुझको पहचानो..मै औरत हूँ..??

मुझको पहचानो..मै औरत हूँ..??

माँ ,बहन, पत्नी और बेटी..
और कई इन रिश्तों से परे
मेरी पहचान भी है..
मै औरत हूँ…।

मुझको अपने वजूद का होने लगा एहसास
आधे तुम आधी मै फिर बना एक विश्वास
ऐसी बनी तस्वीर मे एक होने का एहसास

अपार असिमित बाहुबल
बनी पुरष तेरी पहचान हमेशा
अबला असहाय कहलाती मैं
फिर भी शक्ति रुपणी मेरी पहचान
कहलाती देवी मैं, जननी भी
पर बन कर रह गयीं केवल दासी

जन्म से मृत्यु परंत कितने हिस्सों मे जिया.
और कितने हिस्सों मे बांटोगे मुझे तुम
सतयुग से छलते आ रहे..
लेकर अग्नि परीक्षा, लगाया दाँव पर जुए के
जीवन भर साथ रखते रखते दुख दिया चिरहरण का
मृत्यु शया पर भी नहीं छोडा तुमने,वो बना सती मुझे

अब इस छल की भी देख़ो कैसी पराकाष्ठा है…आज अब.
आधुनिकता लिए कलयुग मे भी
कर प्रयोग वैज्ञानिक तरीकों का
(कोख मे)जन्म से भी पहले
होने लगी हत्या इस जननी की

इस सच को न नकारो अब
मेरे वजूद के बगैर कुछ भी नहीं तुम
और तुम्हारे बगैर कुछ भी नहीं मैं
फिर भी भरते दंभ तुम पुरुष होने का
तुम इतने कमजोर हो ये नहीं सोचा था

मैं औरत हूँ मुझको औरत ही रहने दो
मुझको पहचानो…
मैं औरत हूँ
मै औरत हूँ
मै औरत हूँ।।

चिरंजीव

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