Friday, March 29, 2024
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श्री कृष्ण की राजनीति और वर्तमान उग्रवाद

योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म से लगभग एक सहस्र वर्ष पूर्व ही भारत देश की अधोगति आरम्भ हो गई थी| योगीराज ने अपनी नीति के प्रयोग से इस अध:पतन को समाप्त किया| यह उनकी राजनीतिक सूझ-बूझ का ही परिणाम था कि जो भारत देश महाभारत काल में ही विदेशियों का गुलाम होने की अवस्था में था, वह देश महाभारत के चार हजार वर्ष बाद अपनी घरेलु कमजोरियों के कारण विदेशियों का गुलाम हुआ| श्री कृष्ण जी के पश्चात् भी हमारे जिस राज नेता ने भी उनकी नीति का अनुसरण किया, इतिहास में उसका नाम स्थाई रूप से स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया|

भारतीय इतिहास में महाभारत के पश्चात् हम आचार्य चाणक्य जी को प्रथम राजनेता के रूप में पाते हैं, जिसने श्री कृष्ण जी के राजनीतिक आदर्शों को तथा उनके बनाये नियमों को पूर्णतया अपनाया| इस कार्य के इए उन्होंने चन्द्रगुप्त को आगे रखकर भारत की सीमाओं को सुद्दढ किया| उनके पश्चात् छत्रपति शिवाजी महाराज ने श्री कृष्णजी की उसी राजनीतिक नीति को अपनाते हुए दक्षिण भारत में तथा बन्दा वैरागी , हरिसिंह नलवा, महाराजा रंजीत सिंह, आदि ने उत्तर भारत में इसी नीति से अविलम्ब कार्य किया| इसी का ही परिणाम था कि यह महापुरुष मुगलों के विरुद्ध किये गए अपने सब अभियानों में सदा ही सफल हुए| जब भारत स्वाधीन हुआ, उस समय देश अति विकट अवस्था में था| इस समय देश पुन: बँट कर नष्ट हो जाता, यदि कृष्ण नीति को अपना कर सरदार पटेल देसी रियासतों पर लगाम न कसते और आज भी भारत बिखर चुका होता यदि इस देश के वर्तमान प्रधान मंत्री श्री दामोदर भाई नरेंद्र मोदी ने भी इसी कृष्ण की राजनीति को न अपनाया होता|

इस प्रकार के कृष्ण को यदि महर्षी दयानंद सरस्वति जी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा कि “ श्री कृष्ण ने जन्म से लेकर मरण पर्यंत कोई पाप नहीं किया|” , तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं है| महाभारत काल वह काल था, जिस में ब्राह्मण अपनी मर्यादाओं को भूल रहे थे| उन्होंने जन्म को ही जाति का आधार बना दिया था| यह ही वह कारण था, जिस से वीर कर्ण और बालक एकलव्य को क्षत्रीय राजपुत्रों के समान शिक्षा देने में बाधक बनकर उन्हें शस्त्र विद्या देने से मना कर दिया गया| यह वह समय था, जब क्षत्रियों ने भी अपनी मर्यादाओं को लांघ लिया था| तब ही तो श्री कृष्ण जी ने वैदिक मर्यादाओं को स्थापित करने का प्रयास किया| इस समय भारत देश कौरव तथा पांडव नामक दो दलों में बंट चुका था| राष्ट्रीय भावना रखने वाले लोग पांडवों का साथ दे रहे थे जबकि देश को नष्ट होता देखने की अभिलाषी विदेशी शक्तियां कौरवों के साथ मिल चुकी थीं| इस कारण ही योगीराज श्री कृष्ण ने पांडवों का पक्ष लेकर न केवल देश को सुरक्षित ही किया अपितु खण्डित होने जा रहे भारत देश को एक केन्द्रीय नेतृत्व भी देते हुए इस की कमान युधिष्ठिर के सुरक्षित हाथों में सौंप दी|

श्री कृष्ण जी की राजनीतिक सूझ बुझ इस से ही प्रकट होती है कि राजनीति में दया का कोई स्थान नहीं होता अपितु जैसे को तैसा के मार्ग पर चलाकार ही सफलता मिल सकती है| इस कारण ही जब कौरव सेना ने युद्ध के सब नियमों का उल्लंघन करते हुए बालक अभिमन्यु का वध कर दिया तो श्री कृष्ण जी ने उनके साथ वैसा ही व्यवहार करने का निर्देश देकर कुछ भी गलत नहीं किया, कर्ण पर प्रहार करने के लिए अर्जुन को उत्तेजित कर कुछ गलत नहीं किया, यहाँ तक कि दुर्योधन का वध करने के लिए भीम को इस प्रकार का ही आदेश देकर युद्ध नीति का पालन करते हुए कुछ भी गलत नहीं किया| इसी नीति के माध्यम से ही तो कर्ण, भीष्म पितामह, अश्वत्थामा, जयद्रथ, कालयवन आदि और अंत में दुर्योधन को मारकर या पराजित करके अपनी अद्भुत राजनीति का परिचय दिया| उन्होंने यह जो सब कुछ किया, यह सब राजनीति के तराजू में तोलते हैं तो ठीक भी दिखाई देता है| राजनीति में पराज्य का नाम मृत्यु होता है और जय का नाम ही जीवन होता है, स्वर्गिक आनंद होता है| इसमें जीतना ही धर्म है और हारना ही अधर्म है| यह ही कारण था कि जब संधि का सन्देश लेकर श्री कृष्ण कौरव दल में गए तो पहले से ही इसके लिए तैयारी करके गए थे कि उनके साथ छल न होने पावे| जब श्री कृष्ण के ओजस्वी विचारों से कौरव दल के सब लोग उनके पक्ष में आ गए तो दुर्योधन ने उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दे दिया किन्तु दूरदर्शी श्री कृष्ण जी की पहले से ही की हुई तैयारी यहाँ उनके काम आई| धूर्त दुर्योधन उनका बाल भी बांका न कर सका|

यह सब श्री कृष्ण की नीतियों का ही परिणाम था कि यह देश, जो उस समय विदेशियों की गुलामी झेलने के निकट पहुँच गया था, को आपने सुदृढ़ कर न केवल इसे गुलामी से बचाया ही अपितु इसके लगभग चार हजार वर्ष बीतने तक भी इस देश पर कोई विदेशी आँख तक न उठा सका| इस प्रकार लम्बे समय तक यह देश पराधीनता की जंजीरों में जकड़ने से बचा रहा|

आज जिस प्रकार हमारा भारत देश विदेश प्रायोजित उग्रवाद की चपेट में फंसा हुआ है, ठीक इस प्रकार ही मर्यादा पुरुषोतम श्री राम के राज्यारोहण से पूर्व तक तथा युधिष्ठिर के शासन से पूर्व भी उग्रवाद तथा विदेशी लोगों के कोप से ग्रसित था| मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र तथा योगिराज कृष्ण दो इस प्रकार के नेता तथा राजनितिकार इस देश को प्राप्त हुए, जिनकी सफल राजनीति ने इस समय के स्थानीय तथा विदेशी उग्रवाद को समूल नष्ट कर एक ठोस तथा मजबूत केन्द्रीय सत्ता इस देश में स्थापित कर इस देश को ऐसी सुदृढ़ पृष्ठभूमि दी कि फिर हजारों वर्षों तक उग्रवाद इस देश में अपना फन न उठा सका|

आज हमारा देश एक बार फिर ठीक वैसी ही अवस्था से निकल रहा है| इस देश को प्रतिदिन विदेशी शक्तियां घुडकियां दे रहीं हैं| इसके साथ ही साथ प्रतिदिन उग्रवादियों द्वारा भी बमों के धमाके किये जा रहे हैं, गोलियां चलाई जा रही है और इनका साथ हमारे अपने देश के भी बहुत से नेता तथा उनके पालतू पलूरे दे रहे हैं, इन सब के कारण प्रतिदिन अनेक देशवासियों की ह्त्या हो रही है| इस सब अवस्था में भी हमारे देश के नेता दलगत राजनीति करने में लगे हैं| देश के इस महान् संकट के समय भी एक होकर लड़ने के स्थान पर एक दूसरे को नीचा दीखाने का प्रयास कर रहे हैं, जो शत्रु की सहायता करने के समान ही है| ऐसी अवस्था में देश का अवनति की और जाना निश्चित है| राजनेताओं की इस आपसी खींच तान के कारण प्रकृति भी रुष्ट होती दिखाई दे रही है| इसका ही पारिणाम है कि आज कहीं तो अति वृष्टि से विनाश हो रहा है तो कहीं अनावृष्टि के कारण बर्बादी हो रही है| कहीं तो किसी के पास उसके गोदाम भरे पड़े हैं तो किसी को दो जून का भोजन भी उपलब्ध नहीं है| सब स्वार्थ के वशीभूत हो रहे हैं| हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री की सूझ भी हमारे इतिहास के इन दोनों महापुरुषों से कुछ मेल खाती दिखाई देती है और वह देश को संगठित और उन्नत करने में लगे भी हैं|

अत: आज आवश्यकता ही नहीं अपितु इस विदेशी प्रायोजित आतंकवाद पर काबू पाकर देश को ठोस आधार देने की है| चाहे चीन हो, चाहे पाकिस्तान, नेपाल हो या कोई अन्य देश, तब ही डरेंगे जब हम उन्हें डर दिखाने की शक्ति रखते होंगे| यह तब ही संभव हो पावेगा, जब हमारे सब दलों के राजनेता श्री कृष्ण जी की राजनीति को न केवल समझेंगे अपितु इसे व्यवहार में भी लायेंगे| यह ही एक मात्र उपाय है इस उग्रवाद के मुंह से देश को निकाल कर पुन: परम वैभव की और लाने का! आर्य समाज एकमात्र ऐसी संस्था है, जो यह मार्ग वर्तमान राजनेताओं को दिखा सकता है| वेद मार्ग पर चलने वाली आर्य समाज के पास वेद के ही प्रमाण है, जिनका उपयोग कर तथा इन मन्त्रों को राजनेताओं में आत्मसात् करवा कर सन्मार्ग दिखा सकता है| अत: आज आर्य समाजियों को श्री कृष्ण की राजनीति, श्री कृष्ण की रणनीति अपना कर इसे राजनेताओं के सामने रखकर वर्तमान राजनेताओं को बाध्य करना होगा कि वह देश की रक्षा के लिए इसे अपनावें| यदि कोई नेता नहीं मानता तो उसका बहिष्कार करें या उनको वोट न दें, इस में ही देश का हित है और देश की उन्नति संभव है|

डॉ. अशोक आर्य
पाकेट १/६१ रामप्रस्थ ग्रीन से.७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ.प्र.भारत चलभाष ९३५४८४५४२६
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