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अत्याचारी व्यक्ति जीवन में दुःख का ही भागी बनता है
छोटे बेटे कामबख्श को बादशाह ने लिखा था -”मैं जा रहा हूँ और अपने साथ गुनाहों और उनकी सजा के भोझ को लिये जा रहा हूँ। मुझे आश्चर्य यही है कि मैं अकेला आया था, परन्तु अब इन गुनाहों के काफिले के साथ जा रहा हूँ।
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महात्मा बुद्ध और वैदिक कर्मफल व्यवस्था
पाप कर्म का कर्ता लोक परलोक दोनों में शोक करता है।अपना अशुभ कर्म देखकर तपड़पता है, शोक करता है।।पुण्यकर्म का कर्ता इस लोक में मुदित होकर परलोक में जाकर भी मुदित होता है।
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वेदों में बहु-विवाह आदि विषयक भ्रान्ति का निवारण
ऋग्वेद १०/८५ को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता है। इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया है कि तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो।
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वैदों की विश्वकल्याण की भावना
भावार्थ―हे इन्द्र ! परमेश्वर ! हम अपने पथ से कभी विचलित न हों। शान्तिदायक श्रेष्ठ कर्मों से हम कभी च्युत न हों। काम, क्रोध आदि शत्रु हमपर कभी आक्रमण न करें।
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आदि पत्रकार – देवर्षि नारद
नारद जी के विभिन्न उपनाम भी हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उन्हें संचारक अर्थात सूचना देने वाला पत्रकार कहा गया है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्द कोष में उनका एक नाम ” आचार्य पिशुन“ आया है
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जानिये हमारी ज्ञान परंपरा के मर्म कोः कुछ शब्द उनके संदर्भ, व्युत्पत्ति, स्पष्टीकरण और कुछ इतिहास!
सूत्रकार कहता है कि दर्पण, जल, नेत्र, भाण्ड अर्थात् चिकने चमकदार पॉलिश वाले बरतन, धातु के बरतन (मिट्टी का हर बरतन भाण्ड नहीं कहा जा सकता) और मणि में बिम्ब दिखाई देता है।
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अपरिवर्तनीय स्रोत को जानना
अगर देश सुरक्षित नहीं है तो हमारी महान संस्कृति और आध्यात्मिक मूल्यों का क्या होता है यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अब श्रीलंका में देखा जा सकता है। व्यक्तिगत चेतना को भारत माँ की चेतना से जोड़ने से ही जीवन सही मायने में खिलेगा।
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श्री राम की छबि पर पाश्चात्य जगत की नस्लीय व पूर्वाग्रही दृष्टि
ऑड्रे तृस्कके जैसे लेखक इन्हीं असत्य प्रसंगों का सहारा लेकर श्री राम जी को नारी विरोधी सिद्ध करना चाहते हैं। भारतीयों के रोम-रोम में बसे राम मर्यादा-पुरुषोत्तम हैं। न कि नारी विरोधी।
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श्री संप्रदाय के प्रारंभिक दस प्रमुख आचार्य
दसवें क्रम में श्री गंगाधराचार्य जी का नाम आता है। गंगाधराचार्य जी श्री सम्प्रदाय के महान् गुरुभक्त संत हुए है श्री गंगाधराचार्य जी , जिनकी गुरु भक्ति के कारण इनका नाम गुरुदेव ने श्री पादपद्माचार्य रख दिया था ।
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क्या सांख्यकार कपिल मुनि अनीश्वरवादी थे?
यही बात अन्य भी अनेक लेखकों ने लिखी है किन्तु वस्तुतः यह अशुद्ध है। सांख्य दर्शन में ईश्वर के सृष्टि के उपादान कारणत्व का निम्न सूत्रों द्वारा खण्डन किया गया है उसका यह अर्थ समझ लेना कि यह ईश्वरवाद मात्र का खण्डन है, अशुद्ध है।