Saturday, April 20, 2024
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Homeपत्रिकाकला-संस्कृतिनारी के दस आभूषण

नारी के दस आभूषण

नारी इस सृष्टि की एक इस प्रकार की शक्ति है, जिस के समबन्ध में जिस व्यक्ति ने जिस रूप में देखा, उसकी उस रूप में हजी व्याख्या कर डाली| नारी को देवी कहने वाले भी है और दानव कहने वाले भी है| नारी के सम्बन्ध में अनेक लोगों ने अनेक प्रकार से चर्चाएँ की हैं जिसने भी इसे जिस रूप से देखा है,रूप से देखा है उसने उसका वर्णन उस प्रकार से ही किया है नारी तो एक है किन्तु देखने वाली आँखें अनेक है बुरे लोग बुरी दृष्टि से देखते हैं और अच्छे लोग अच्छी दृष्टि से इस कारण देखने वाले अपनी द्रष्टि अपनी सोच के अनुसार ही नारी की व्याख्या भी करते रहते हैं वेद में नारी की बहुत उंची महिमा बताई गई है और इस संसार की स्थिति ही नारी के योगदान के आधार पर ही चर्चा करतीहै बिना असंभव बताई है| नारी के दस आभूषण बताये गए हैं|योगदान के आधार पर ही चर्चा करते हैं नारी सोने चांदी के आभूषण पहनती है किन्तु वेद ने इन वस्तुओं को आभूषण नहीं माना अपितु नारी के गुणों को ही उसके आभूषणों की श्रेणी में रखा है|इस प्रकार के आभूषणों को दस श्रेणियों में बाँटा गया है जो इस प्रकार हैं:-
१. अन्तो अग्गि बही न नीहरितब्बो
२. बही: अग्नि अन्तो न पबेसेताब्बो
३. ददन्तस्स दातब्बमˎ
४. अदन्तस्स न दातब्बमˎ
५. ददंतास्साfप अदन्तस्साfप दातब्बमˎ
६. सुख भुन्जितब्बमˎ
७. सुखं भुन्जितब्बमˎ
८. सुखं निपज्जितब्बमˎ
९. आगी परिचरितब्बो
१०. अंतो देवतापि नमfस्सतब्बा

हमें जब भी नारी को जानना होता है तो नारी के इन दस आभूषणों के माध्यम से ही उअसकी परख करते हैं| अत: आओ इन दस गुणों को कुछ विस्तार से समझाने का यत्न करें:-
१. अन्तो अग्गि बही न नीहरितब्बो
नारी का यह प्रथम आभूषण है| नारी का यह प्रथा, नारी के जो दस आभूषण बताये गए हैं इन आभूषणों का वर्णन करते हुए आभूषणों के अन्तर्गत उपदेश किया गया है कि नारी कभी भी अपने अन्दर की आग को बाहर न लकर जावे|लिए जो उपदेश किया गयाहै उसमे से प्रथम उपदेश के अंतर्गत कहा गया है कि नारी कभी भी परिवार के अन्दर की बातों को परिवार से बाहर न लेकर जावे यह सत्य भी है इस सब का भाव यह है कि एक परिवार में अनेक बार अच्छी और बुरी बाते होती रहती हैं यदि नारी अपने परिवार की छोटी छोटी बातों को पास पडौस के लोगों को अपनी सखी सहेलियों को अथवा अपने मायके वालों को बतावेगी तो इससे जहाँ परिवार की प्रतिष्ठा नष्ट होगी वहां अनेक बार बाहर के लोग परिवार की इन छोटी छोटी बातों में हस्तक्षेप करने लगते हैं इससे यह छोटी सी बातें अनेक बार विकराल रूप धारण कर लेती है|बार अन्य लोगों के हस्तक्षेप से विशाल कलह खड़ी होने की संभावना से कभी इनकार नहीं किया जा सकता परिवार को भी लोग बुरी दृष्टि से देखने लगते हैं इसलिये सुकन्या तथा सुग्रहिणी वही है है जो परिवार की प्रतिष्ठा का सदा ध्यान रखे इर परिवार के अन्दर जो भी कलह आदि हो, उसे बाहर न जाने दे हां! परिवार कि उत्तम बातों कि चर्चा अवश्य करती रहे,है जो अपनी अग्नि को अपने अन्दर ही रखे हाँ उत्तम बातों कि चर्चा अवश्य करे ताकि परिवार की प्रतिष्ठा को बढाया जा सके वह जब विवाह करवा कर ससुराल में आ जाती है तो उसका ससुराल ही अब उसका परिवार होता है और इसकी प्रतिष्ठा को बनाए रखना ही और इसे के उपाय करना भी उसका कर्तव्य हो जाता है इसलिए वह परिवार की अप्रतिष्ठा वाली बातो को अपने अन्दर ही दबाए रखे कभी बाहर न निकलने दें।

२. बही: अग्नि अन्तो न पबेसेताब्बो
जहाँ नारी अपने परिवार के अन्दर की बातों कहीं बाहर न जाने दे वहां उसके लिए यह भी आवश्यक हो जाता कि वह बाहर के कलह क्लेश को भी अपने घर में न आने दे नारी को अनेक बार पास पडौस में बैठना होता है सखी सहेलियों से मिलना होता है और अपने मायके में भी जाना होता है इस अवस्था में अन्य लोगों से अनेक प्रकार की अच्छी और बुरी चर्चाएँ भी होती है। यदि वह इन चर्चाओं के आधार पर अपने घर को चलाने लगती है अथवा इन बातचीत को अपने परिवार में चर्चा का विषय बनाने लगती है तो अनेक बार यह सब भी परिवार में कलह क्लेश का कारण बन जाता है| इन सब चर्चाओं में अनेक बार गोपनीय बातें भी होती हैै, इन बातों को कभी भी अपने परिवार मे लाकर इनकी चर्चा नहीं करनी चाहिए।

अनेक बार बाहर से बहुत सी उत्तम बातें सुनने को मिलती है इन बातों की चर्चा किये बिना यदि परिवार को इन चर्चाओं वाले उत्तम मार्ग पर ले जाने का प्रयास करे तो वह स्तुत्य हो सकता है किन्तु इसमें यह चर्चा कभी नहीं करे कि उन शिक्षाओं मैने कहाँ से लिया है अन्यथा यह सब चर्चा बढ़कर अनेक बार अपने परिवार में कलह पैदा कर देती है इसलिए सदा ध्यान रखे कि यहाँ वहां कही गई छोटी सी बात भी कई बार विकराल रूप धारणकर लेती है इसलिए सदा सावधानी बरतने वाली नारी का यह दूसरा आभूषण है।

३.ददन्तस्स दातब्बमˎ
जो व्यक्ति अथवा मित्र आपको कभी कुछ देता है तो केवल लेने के ही आप आदि न बनें अपितु स्वयं भी उसे समय समय पर कुछ देते रहने का आदि बनाओ यदि केवल आप लेने का ही काम करेंगे तो इससे आपका अपयश फैलेगा और यदि देने वाले बनोगे तो यश चारों और आग की भाँती फ़ैल जाएगा इसलिए परिवार के यश को बढाने के लिए कुछ देने वाले भी बनो इसके अतिरिक्त एक बात और नारी को विशेष ध्यान में रखनी चाहिए कि पास पडौस से जो वस्तु जिसके हाथ से लो उसी के हाथों में लौटा भी दो यदि किसी दूसरे के हाथ भेजते हो तो ले जाने वाला व्यक्ति आलस्यवश अथवा भूलवश वह वस्तू देना भूला जाता है अथवा समय पर नहीं दे पाता तो यह झगड़े का कारण बन जाता है आपने तो मांगी हुई वस्तु वाविस भेज दी किन्तु देने वाले ने उसको दी ही नहीं जब कुछ दिनों के बाद उसने आप से अपनी वास्तु मांगी तो निश्चय ही आप कहेंगी कि मैंने तो वह वस्तु लौटा दी था, जब मिली नहीं तो जिसकी वस्तु है वह तो शोर करेंगे ही इसलिए नारी का तीसरा आभूषण यह है कि वह केवल लेने की ही भावना न रखे अपितु देना भी सीखे तथा जिस से कोई वस्तु ले वह स्वयं उस वस्तु को उसी के ही हाथ लौटा देवे।

४.अदन्तस्स न दातब्बमˎ
अनेक बार इस प्रकार होता है कि पड़ोस के लोग आपसे कोई वस्तु मांग कर तो ले तो जाते है किन्तु लौटाते नहीं और जब आप उससे माँगने जाते है तो वह वस्तु लौटाने के स्थान पर कोई बहाना बना कर झगड़ा खड़ाकर लेते हैं। इस प्रकार के लोगों को भविष्य में कभी कोई वस्तु माँगने पर भी नहीं देनी चाहिए, अन्यथा यह आपके अपने परिवार की कलह बन जावेगी। हाँ, अपवाद रूप में किसी को आप ठीक समझ कर दे सकती है यह्नरी का चतुर्थ आभूषण है।

५. ददंतस्साfप अदन्तस्साfप दातब्बमˎ
नारी का एक यह भी आभूषण है कि वह उस व्यक्ति को तो दे जो आपको कुछ देता है किन्तु वह उसको भी सदा देने का ही प्रयास करे, जो आपको कभी कुछ नहीं देता है। इसके अतिरिक्त आपके निकट समबन्धी या आपके ससुराल के लोग जिस व्यक्ति में अपनत्व रखते हों इस प्रकार के परिजनों को प्रतिदिन भी कुछ देते रहें तो भी परिवार में ख़ुशी के साथ ही साथ सुख और समृद्धि भी बढ़ने का कारण बनती है। यह परिजन अपने परिवार और मित्र मंडली में आपकी प्रशंसा करेंगे जिस से परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

नारी सर्वस्व के नाम से एक पुस्तक तपोभूमि मासिक पत्रिका के जून-जुलाई १९९६ के वार्षिक अंक के रूप में प्रकाशित हुई है इस पुस्तक में नारी के इस आभूषण के संबंध मे एक अत्यंत सुन्दर उदाहरण दिया है। इसके अनुसार द्रोपदी ने सत्यभामा को परामर्श देते हुए यही बात अन्य प्रकार से कही थी कि अपने पति के अनुरक्त हितैषी जनों को विविध उपायों से भोजन कराती रहा कर अर्थात् उन्हें देने में संकोच न किया करें।

६. सुख भुन्जितब्बमˎ
आजकल अनेक परिवारों मे देखा जाता है कि अनेक नारियाँ भोजन बनाते ही बड़े लोगों के भूखा बैठे होने पर भी पहले स्वयं खाने बैठ जाती है और अनेक बार तो यह भी देखने में आता है कि रसोई में एक आध वस्तु इस प्रकार की भी बना ली जाती है जो केवल अपने लिए ही बना ली जाती है। ये दोनों बातें नारी के लिए वर्जित हैं।

नारी का यह छठा आभूषण इस प्रकार का ही उपदेश करते हुए कह रहा है कि नारी जब अपने घर की रसोई तैयार करती है तो सब से पहले अपने घर के सास ससुर तथा अन्य लोगों सहित पूरे परिवार को भोजन करवा कर और जब यह निर्णय हो जावे कि परिवार के सब लोग भोजंकर चुके हैं तो ही वह स्वयं भोजन करे जब वह इस प्रकार का व्यवहार रखेगी तो परिवार में सब लोग उसका आदर करेंगे और उसके गुणों की चर्चा अन्य लोगों के सामने भी करेंगे, इस से इस नारी का यश बढ़ेगा। इसके साथ साथ उसे एक बात का और भी ध्यान रखना होगा कि वह आज की नारियों के स्वभाव को त्याग कर प्राचीन नारियों का अनुकरण करते हुए कभी भी अपनी रसोई में कोई भी इस प्रकार की वस्तु न बनावे जो केवल अपने लिए ही बनाई गई हो अन्यथा पता लगने पर परिवार में यह बात भी भयंकर कलह का रूप ले सकती है इससे सदा बचना चाहिए।

७. सुखं निसीदीतब्बमˎ
परिवार की प्रत्येक गृहिणी को अपनी मर्यादा का ध्यान रखते हुए सुख के साथ बैठना चाहिए यह नारी का सप्तम आभूषण है। एक तो साधारण रूप में बैठना और दूसरे सुख के साथ बैठना यह बैठने के दो रूप है दो विधियाँ है दोनों मे अत्यधिक अंतर है प्रथम अंतर तो यह ही है कि जिस स्थान पर बैठ रहे हो पहले देख परख लो कि यह स्थान आप ही के योग्य है या नहीं और फिर यहाँ से कीई उठाएगा तो नहीं इन दो बातों की परख पर पूरा उतरने वाले स्थान पर ही बैठना चाहिए घर के अन्दर कुछ स्थान सास श्वसुर या अन्य बड़ों के लिए निर्धारित होते हैं इन स्थानों पर अथवा इन से ऊँचे स्थानों पर कभी भी नहीं बैठना चाहिए इन सब के बैठने का समुचित प्रबंध करके उनको ठीक से बैठने अथवा बैठाने के बाद ही नारी को स्वयं किसी सुख पूर्ण स्थान पर बैठना चाहिए।

८. सुखं निपज्जितब्बमˎ
आजकल तो इस प्रकार की अवस्था आ पहुंची है कि नारियाँ दस दस बजे तक दिन चढने पोर भी नहीं उठतीं और रात्री को भी बहुत जल्दी सो जाती है यह नारी का धर्म नहीं है नारी का आभूषण नहीं है नारी का यह एक उत्तम आभूशण है कि वह अपने सास श्वसुर पति तथा घर में आये हुए अभ्यागत के बिस्तर पर जाने से पहले कभी स्वयं अपने बिस्तर में सोने के लिए न जावे यह उत्तम नहीं है इनसे पहले अपने बिस्तर पर जाने से आपकी अपनी और और परिवार की प्रतिष्ठा कम होती है उसको चाहिए कि इन बड़ों के लिए जो आवश्यक सेवा होती है वह सब करके और फिर ही स्वयं अपने बिस्तर पर विश्राम करे।

९. अग्गि परिचरितब्बो
कुल की अग्नि परिवार की नाभि होती है जिस कुल की पवित्र अग्नि प्रकट होती रहती है वह कुल धन्य होता है उन्नत होता है, उस परिवार को परमपिता परमात्मा का आशीर्वाद सदा ही मिलता रहता है। यह कुल अग्नि क्या होती है इसे कैसे प्राप्त किया जावे इस पर भी यहाँ हम कुछ विचार कर लेते हैं। कुलअग्नि से अभिप्राय अग्निहोत्र से होता है नारी का कर्तव्य है कर्तव्य ही नहीं यह उसका एक आभूषण भी है कि अपने परिवार में प्रतिदिन अग्निहोत्र करने की व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाए रखे प्रतिदिन नियमित रूप से परिवार के अन्दर यज्ञ हो और परिवार के सब सदस्य इस यज्ञ में भाग ले यदि इस प्रकार का वह कर पाने में सफल होती है तो इस परिवार पर सदा ही सुखों की वर्षा होती रहती है। अग्निहोत्र करते हुए अग्नि के गुणों पर भी विचार करते रहना चाहिए और इन गुणों को अपनाने से तो और भी अधिक लाभ होगा इसलिए इस कुलअग्नि को परिवार की नाभि माना गया हैै।

१०. अंतो देवतापि नमfस्सतब्बा
नारी के दस आभूषणों की इस श्रृंखला में यह्नारी का अंतिम और दस्वान्न आभूषण है कि वह प्रतिदिन परत:काल उठाते ही और रात्री को अपने शयन स्थानपर जाते समय अपने सास श्वसुर अथवा घर में रहने वाले अन्य लोगों केए पाँव छूकर उन्हने नमस्ते करे उनका बहिवादंकराते हुए सदा उंसे आशीर्वाद ले बदोंका आशीर्वाद सदा ही सुखों को बढ़ने वाला होता है यह बड़ों का आशीर्वाद फ़अल देने वाला होतक है परिवार कि सुख तथा समृद्धि को बढाने वाला होता है इसलिए उसे यह सदा ध्यान रखना चाहिए कि परिवार के अन्दर जो भी कम करे इन बड़ों के आशीर्वाद से करे और उनको सदा नमस्ते करर्ते हुय्ये उनके सामने नत होती रहे इस से परिवार की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी

यह कुछ नैतिक शिक्षा कि ही बातें हैं कि बहु सदा सास श्वसुर का आदर सत्कार करे उन्हें नमन करे उनके सामने अपने घर के किसी नौकर को भी कोई आदेश न दे यह सब वह अपने घर के बड़ों के लिए छोड़ दे तो निशचय ही घर के अन्दर न तो किसी प्रकार की लड़ाई होगी न झगड़ा होगा न कलह होगी न कलेश होगा इसके साथ ही साथ इस प्रकार की नारी को जो संतान होगी वह भी उत्तम सुन्दर सुशील और उत्तम गुणों वाली होगी अत: नारी को अपने शरीर पर सोने चांदी के आभूषणों के स्थान पर इन दस आभूषणों की और अत्यधिक ध्यान देते रहना आवश्यक है इससे ही वह अपने घर परिवार को स्वर्ग बना पावेगी अथर्ववेद के मन्त्र संख्या १४.१.४४ के अंतर्गत भी परमात्मा ने इस प्रकार का ही उपदेश दिया है।

इस प्रकार नारी के यह प्रमुख दस आभूषण बताये गए हैं इस के अतिओरिक्त क्लुछ छोटे छोटे आभूषण भी बताए गए हैं, जैसे-

नारी को बड़ों की आज्ञा के बिना घर से कभी भी बाहर नहीं जाना चाहिए| नारी को अपना ऊपर का कपड़ा अर्थात् ओढ़ना कभी नहीं उतारना चाहिए| उसकी नाभि कभी कसी को दिखाई नहीं देनी चाहिए| वस्त्र इस प्रकार के पहने कि शरीर का उभार तो क्या टखना भी दिखाई न दे| नजाकत से, मचलकर कभी न चले और चलने में कभी जल्दबाजी न करे| सदा धीमी चाल से निगाहें नीचे रखते हुए चलना ही उसके लिए उत्तम होता है| दांत निपोरकर जोर से हंसना नारी के लिए कभी अच्छा नहीं होता| नारी को कभी भी नाचने वाली, धूर्त नारी, जादू टोना करने वाली नारी,तथा इस प्रकार की नारी जिन्हें दुराशीष मिलता हो, इनके साथ नहीं मिलना चाहिए| इससे उनका चरित्र भी दूषित हो जाता है| शराब आदि का कभी सेवन न करे, बुरे लोगों की संगति से दूर रहे, पति से निकटता बनाये रखे, अथवा पति की संगति के बिना कभी न घूमे, दिन में सोना अथवा दूसरों के घर में रहना भी नारी के लिए अच्छा नहीं होता| अपने मायके में अधिक समय रहने से भी उसकी कीर्ति, चरित्र और धर्म की हानि होती है|

अनुशासित जीवन व्यतीत करना उसका कर्तव्य है| परिवार के बड़े लोगों की सदा सेवा करना नारी का कर्तव्य है| घर के सभी समकक्ष यथा देवर देवरानी नन्द आदि से सख्यभाव बनाकर रहना| कभी रोष में आने पर पति के प्रतिकूल व्यवहार को भी बुरा न मानना| संपन्न होने पर परिजनों को उदार भाव से दक्षिणा देना|

जब नारियों में इस प्रकार के अलंकार धारण किये होंगे तो निशचय ही वह गृहणी पद पर अलंकृत होंगी| यह ही नारी के सच्चे आभूषण हैं| जब से नारि ने इन आभूषणों को त्यागा है तब से ही घरों में लड़ाई झगड़ा कलह क्लेश और तलाक होने लगे हैं| परिवार को सुखी सुदृढ़ तथा उत्तम बनाने के लिए नारी के लिए आवश्यक है कि वह इन सब आभूषणों को फिर से धारण करे|

डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६ e mail [email protected]

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