आप यहाँ है :

माँ का वो आशीर्वाद जिसने जीवन ही बदल दिया

माँ मेरी माँ : मेरी माँ अंग्रेजो के समय की अंग्रेज़ी की स्नातक थी , मेरी माँ होलकर महाराज के दीवान बेरिस्टर विनायक राव पंचोली की बेटी थी , मेरी माँ का बस्ता उठा कर चलने वाली पद्मिनी शुक्ल बाद में श्यामा चरण शुक्ल की पत्नी बनी ,मेरी माँ की सहेली इंदूमती पंडित भारत की पहली पंचाग गणित कर्ता खगोल विद थी ,मेरी माँ की सहपाठी पुष्पा बहन धरम सी खटाऊँ के घर ब्याही ,ये सब बाद तक माँ से मिलने आतीं थी वे मुझे बताती थी की तुम्हारी माँ बचपन में बहुत तेजस्वी थी विजया की इंगलिश सुन अंग्रेज भी चौंक जाते थे !जी हाँ मेरी माँ का नाम विजय लक्ष्मी व्यास वह दोपहर में भोजन के बाद चश्मा लगा कर अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ओफ़ इंडिया या इण्डियन एक्सप्रेस पढ़ती तो हम बच्चे हंसते थे ,क्योंकि वह एक पारम्परिक पंडितो के परिवार में आ गयी थी ,क्योंकि हम उसका बचपन नहीं जानते थे !

पर वह पंडित सूर्यनारायण व्यास जैसे महान विद्वान की पत्नी बनी जिन्होंने १९३५ में ही ‘जागृत नारियाँ “लिख दी थी , पर एक अकेले उनके” प्रोग्रेसिव “होने से क्या होता हमारा परिवार संयुक्त परिवार था !ज़्यादातर अन्य महिला अनपढ़ और अर्ध शिक्षित थी !माँ एक बार नहा कर टावेल लपेट कर बाथ रूम से बाहर आयी तो बवाल हो गया वे गोरी चिट्टी और खूबसूरत थी ! उस बवाल के बाद फिर माँ बड़े घर की मर्यादा में ऐसी विलीन हुई की उन्होंने अपने आप को ही विस्मृत कर दिया ,उनकी तेजस्विता सात्विकता विद्वत्ता के अनेक क़िस्से हैं ,अभी केवल एक ही लिखूँगा आज उनका दिन जो हैं क़िस्सा जो मुझे दुनिया की किसी किताब में नहीं मिला ,माँ ने दिया था मंत्र! जिससे मेरा जीवन ही बदल गया !

अभी विगत सप्ताह मैं जोधपुर और जयपुर था ,ज्योतिष खगोल के एक महत्वपूर्ण सम्मेलन में मुख्य अतिथि वहाँ यह क़िस्सा सुनाया तो भारत भर से आये ज्योतिष के विद्वान खड़े हो गये सबने माँ के इस महान वाक्य को नोट किया , क़िस्सा यह की जब पूज्य पिता का देह अवसान हुआ मैं महज़ १४ बरस का था !जीवन संघर्ष में निकल पढ़ा ,नास्तिक था भगतसिंह मार्क्स लेनिन का चेला ,१९ साल का होते होते सब साहित्य चाट डाला पर विवेकानंद भी पढ़ता उनको पढ़ कर आत्म विश्वास बढ़ता ,पर था तो ज्योतिष की साँदीपनी वंश परम्परा से ,जिसके दादा और पिता ज्योतिष जगत में सूर्य समान सम्मानित थे ,तो ज्ञान की उथल पुथल रक्त में ,ज्योतिष रक्त में ,दिमाग़ में मार्क्स !

एक दिन २३ की उम्र में दिल्ली की एक बरसाती से माँ को ख़त लिखा – माँ ज्योतिष भी कोई विज्ञान हैं ? और अगर हैं तो मेरा क्या कोई भविष्यभी हैं ? माँ ने एक अंतर्देशिय पत्र में सिर्फ़ एक वाक्य लिख भेजा – astrology is a language if you understand sky speak to you if you listen sky speak to you.उसी दिन संयोग देखें ,नवभारतटाइम्स गया वहाँ रज्जु बाबू और नंदन जी ने मुझे ज्योतिष ग्रंथ के दो बड़े पार्सल दिये ,मैं कुछ समझ पाता तब तक नंदन जी ने बताया ,की हमारे एक स्तम्भ कार केवल आनंद जोशी ने ज्योतिष के सभी प्रकाशकों से ये ग्रंथ बग़ैर हमारी अनुमति -सहमति के समीक्षा के नाम पर मँगवा लिये हैं अब हमने उनको दंड स्वरूप किसी सुयोग्य विद्वान से समीक्षा लिखवाने का निर्णय लिया हैं तुम ये सारे ग्रंथ ले जाओ और एक समीक्षा में सारे ग्रंथ समेट देना ,जो समीक्षा मैंने आज तक लिखी भी नहीं ,क्योंकि मेरी रुचि थी नहीं ! पर ज्योतिष के दुर्लभ ग्रंथ मेरे पास आ गये थे जो उस समय दस बीस हज़ार रुपये के थे अब उनमे मन लगा पढ़ने लगा दिलचस्पी में उन्हें अगले पाँच साल में घोंट -चाट गया ,तब मैं मुक्त लेखक था ,जो लगभग दस बरस रहा पर अखबार में तो लिखता था दूरदर्शन पर भी आता था महीने में चार बार ,पर इस से गुज़ारा नहीं होता था कभी कभी महीने का मकान किराया भी नहीं चुका पाता २८ का हो गया था। सोचता था इस संघर्ष का कब अंत होगा ज्योतिष का धंधा करना नहीं था , कहते हैं ज़्यादा ज्ञान भी दुःख का कारण हैं ! ज्योतिष के सारे ग्रंथ मस्तिष्क में थे ,अब दुःख पीढ़ा से भरकर माँ को पत्र लिखा – माँ में भाग्य हीन ! माँ में शनि की दशा में जन्मा ,बुध में बढ़ा हुआ माँ अब केतु की दशा में घनघोर संघर्ष कर रहा हूँ !मेरी किडनी में दर्द ,किडनी में पत्थर ,रात- रात कराहता हूँ गरम -गरम ईंट पेट पर रख कर सोता हूँ माँ में हार रहा हूँ माँ ! मेरा क्या होगा?

अगले सप्ताह फिर माँ का पत्र आया वही बड़े से कोरे पन्ने पर ,फिर वही अंग्रेज़ी में एक वाक्य !उसी एक वाक्य ने मेरा जीवन ही बदल दिया उसी एक वाक्य को पढ़ कर बड़े बड़े ज्योतिषी भी थर्रा जाते हैं यह वाक्य आज तक ज्योतिष के किसी ग्रंथ में नहीं मिलता , मेरी माँ ने लिखा – ordinary people is influenced by the star extraordinary people can influence the star ! आगे लिखा – ग्रहों का क्या हैं वे तो आते जाते रहते हैं राम पर आये गये पांडव पर आये गये ( ज्योतिष जानने वाले जानते हैं माँ किसकी बात कर रही थी – गोचर ) मनुष्य को स्थिर रहना चाहिये ! फिर मुझे मेरे अंदर के बच्चे को बल देने को लिखा तुम्हारे पिता कह गये थे – उनके सब अपूर्ण काम तुम ही पूर्ण करोगे ! और यह बाद के सालों में सच भी हुआ !मेरी ममतानयी करुणानयी स्नेहमयी माँ के चरणों में अश्रु सिक्त अभिषेक मुझ भाग्यहीन को जो भाग्यवान बना गयी !,

(लेखक दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक रहे हैं और कई पुस्तकों का लेखन व संपादन किया है)

image_pdfimage_print


Leave a Reply
 

Your email address will not be published. Required fields are marked (*)

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

सम्बंधित लेख
 

Get in Touch

Back to Top