Friday, April 19, 2024
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राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार – लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल


31 अक्टूबर पर विशेष

देश के बंटवारे के आधार पर मिली स्वतंत्रता के पश्चात की उथल पुथल में जो भारतीय एकता के प्रतीक बनकर उभरे, एक प्रखर देशभक्त जिन्होंने ब्रिटिश राज के अंत के बाद 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोया, एक महान प्रशासक जिन्होनें लहू से छलनी भारत को स्थिर किया उन महान लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। देशभक्ति तो वल्लभ भाई के रक्त में बहती थी उनके पिता झबेरभाई ने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था और मां लाडोबाई रानी झाँसी की वीरगाथा गया करती थीं।

अपने गाँव में कक्षा चार तक की प्रारंभिक शिक्षा लेने के पश्चात आगे की पढाई के लिए बालक वल्लभ पेटलाद गांव के एक विद्यालय जाने लगे जो उनके मूल गांव से छह से सात किमी की दूरी पर था । पढाई में विशेष रूचि के कारण पटेल को उनकी ननिहाल में रखा गया जहाँ उन्होंने हाईस्कूल उत्तीर्ण किया। यहीं से उनके व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास प्रारंभ हुआ किन्तु वल्लभभाई की आगे की शिक्षा आर्थिक कष्टों में पूरी हुई उन्होंने इंग्लैंड से बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की।

वे पढ़ाई में तो तेज थे ही गीत, संगीत व खेलकूद में भी उनकी रूचि थी तथा उनमें एक ऐसा जादू था कि वे अपने साथियों के बीच स्कूल के दिनों में ही बेहद लोकप्रिय हो गये थे तथा उनका नेतृत्व करने लग गये थे। पटेल बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा उनमें सीखने की अद्भुत क्षमता थी। बचपन में एक बार वे स्कूल से आते समय पीछे छूट गये। कुछ साथियों ने जाकर देखा तो ये धरती पर गड़े एक नुकीले पत्थर को उखाड़ रहे थे । पूछने पर बोले ,” इसने मुझे चोट पहुंचायी है अब मैं इसे उखाड़कर ही मानूंगा और वे काम पूरा करके ही घर आये।“

उनके बाल्यकाल की बहादुरी के कई संस्मरण उल्लिखित किए जाते हैं । एक बार उनकी बगल में फोड़ा निकल निकल आया। उन दिनों गांवों में इसके लिए लोहे की सलाख को लालकर उससे फोड़े को दाग दिया जाता था। नाई ने सलाख को भटठी में रखकर गरम तो कर लिया पर वल्लभभाई जैसे छोटे बालक को दागने की हिम्मत नहीं पड़ी। इस पर वल्लभभाई ने सलाख अपने हाथ में लेकर उसे फोड़े में घुसा दिया आसपास बैठे लोग चीख पड़ें लेकिन उनके मुंह से उफ तक नहीं निकला।

1926 में उनकी भेंट गांधी जी से हुई और वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने के बाद वे स्वदेशी जीवन शैली में आ गये। बारडोली में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व करने के कारण उनका नाम सरदार पड़ा। सरदार पटेल स्पष्ट व निर्भीक वक्ता थे। यदि वे कभी गांधी जी से असहमत होते तो वे उसे भी साफ कह देते थे। वे कई बार जेल गये। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें तीन साल की कैद हुई।

वल्लाबह भाई प्रधानमंत्री पद के सर्वथा योग्य थे किन्तु अन्यान्य कारणों से यह अवसर नेहरु जी को मिल गया जबकि वल्लभ भाई नेहरू मंत्रिपरिषद में गृहमंत्री बने । सरदार पटेल ने चार वर्ष तक गृहमंत्री के पद पर कार्य किया। यह चार वर्ष स्वाधीन भारत के ऐतिहसिक वर्ष माने जा सकते हैं।

सरदार पटेल ने 542 रियासतों का विलय करवाया जिसमें सबसे कठिन विलय जूनागढ़ और हैदराबाद का रहा । सरदार की प्रेरणा से ही जूनागढ़ में विद्रोह हुआ और वह भारत में मिल गया। हैदराबाद में बड़ी पुलिस कार्यवाही करनी पड़ी। जम्मू –कश्मीर का मामला नेहरू जी ने अपने पास रखा जो आज भी अनसुलझा है। संभव है यदि कश्मीर का मुद्दा भी पटेल जी के हाथ में रहता तो आज भारत आतंकवाद की समस्या से न जूझ रहा होता ।

वल्लभ भाई समय के अनुसार वे निर्णय लेने में सक्षम थे। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को समय- समय पर परामर्श भी दिया करते थे। जब चीन तिब्बत पर अपना अधिकार जता रहा था नेहरू जी तत्कालीन चीनी नेतृत्व के प्रति काफी उदार थे तब भी सरदार पटेल ने चीन के प्रति सर्वाधिक संदेह प्रकट करते हुए कहा था कि यदि चीन तिब्बत पर अधिकार कर लेता है तो यह भविष्य में भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। आज सरदार पटेल की चिंता सच साबित हो रही है।

प्रेषक- मृत्युंजय दीक्षित
123, फतेहगंज गल्ला मंडी
लखनऊ (उप्र) -226018
फोन नं. – 9198571540

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