Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeकविताफेंक चुका नाविक पतवारों को ?

फेंक चुका नाविक पतवारों को ?

रेत कणों से रोक रहे हो,
सरित प्रवाह सैलाबों को ।
कसके मुठ्ठी बाँध भले लो,
कर कैद भाव विचारों को।।

कब तलक शांत रख पाओगे,
शोलों को ढक कर राखों से?
जड़ में जीवन के सूत्र सभी,
सत्य छुपाओगे कैसे शाखों से??

शाखाओं को काट काट कहो क्या,
अस्तित्व वृक्ष का बच पायेगा?
हरा भरा चमन सतरंगी,
क्या इकरंगी होके जी पायेगा??

“विनोदम्” किश्ती पार लगेगी कैसे,
फेंक चुका नाविक पतवारों को ??

दूसरी कविता
उड़ा सकता हूँ हवा में घोड़े?

लगा मजमा दिखाना है तमाशा,
बोलने है वचन असत्य थोडे।
सीखा है हुनर मैंने बेचने का,
उड़ा सकता हूँ हवा में घोड़े।।
सुनाके मधुर, कुछ शब्द पैने,
सदा बेचे है सलौने स्वप्न मैनें।। (1)

क्यो नही दर्पण खरीद सकते?
मुझको बताओ शहर के अंधे।
चखा है स्वाद मैने सफलता का,
बेचकर गंजो को अनेक कंघे।।
न चढ़े पुनः वही काठ की हांडी,
खोज ली है हांडी किन्तु नई मैने।।(2)

सदा बेचे है सलौने स्वप्न मैनें…………

हर सुबह हाँ नई बात होगी,
मेरी सुबह की न रात होगी।
किसे याद रहते कसमे वादे?
नई आशा नई फिर बात होगी।।
तराशकर भ्रम के पत्थरों को,
खड़े किये “विनोदम्” महल मैनें।। (3)

सदा बेचे है सलौने स्वप्न मैनें…………

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार