Saturday, April 20, 2024
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ट्वीटर और फेसबुक पर सवार सरकार जम्मू कश्मीर की जमीनी हकीकत समझे

आज कश्मीर घाटी के नेता स्थिति को कितनी निराशानजक और चिंताजनक हालत में ले आए हैं इस का अंदाजा इस वात से लगाएया जा सकता है कि डॉ फारूक अब्दुल्लाह की नेशनल कांफ्रेंस के कुछ नेताओं ने हो सकता है। कभी १९४७ में भारत के साथ हुए अधिमिलन पर ऊंगली उठाने के संकेत दिए हों पर डॉ फारूक अब्दुल्लाह ने कभी भी अक्टूबर १९४७ के भारत के साथ हुए अधिमिलन पर प्रश्न नहीं किए थे और कई बार यहाँ तक कह दिया है कि जिन को भारत अच्छा नहीं लगता है उन के लिए वे भारत की अन्तरराष्ट्रीय सीमाएं खुलवा सकते हैं। साल २००२ के बाद उन के दल के नेतृत्व ने भी राजनीतिक उत्तेजना में कुछ विरोधात्मक विचार व्यक्त करते हुए मर्जर और एक्सेशन के नाम पर साल २०१० में विधान सभा में भी प्रश्न खड़े किए हैं ! यह भी सच है कि आज के दिन अगर कश्मीरियत को राष्ट्रीयता की तरह कुछ लोग देखने लगे हैं तो इस के लिए सिर्फ कश्मीर घाटी के स्थानीय नेता दोषी नहीं हैं क्यों की राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भी अकसर अपने व्यव्हार से प्रतक्ष या अप्रतक्ष रूप में ऐसी सोच प्रक्ट होने दी है !

१ मार्च २०१५ को पीडीपी और बीजेपी का साथ आना एक ऐसी बात थी जिस के बारे में शायद ही कोई कभी उम्मीद रखता हो ! मुफ़्ती मोहमद सईद के ७ जनवरी २०१६ निधन के बाद अपने ही साथियों द्वारा उठाए गए कुछ प्रश्नों से पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती झूझ रहीं थीं इस लिए ४ अप्रैल को मुख्यमंत्री का कार्यभार सँभालने से पहले उन को तीन महीने से ज्यादा समय लग गया था ! पर उस के बाद भी उन के लिए कश्मीर घाटी से उठते प्रश्नों से जूझने का सिलसिला अभी तक थमा नहीं हैं! ऐसे प्रश्न उन के विरोधी दल भी उन से पूछते हैं जिन का स्त्रोत पीडीपी के २००८ में सार्वजानिक किए गए ‘सेल्फ रूल फ्रेमवर्क’ में देखा जाता है!

जिस प्रकार के संकेत कश्मीर घाटी से आ रहे हैं उन से तो लगता है ‘नार्थ पोल साउथ पोल की दूरी कम होने के बजाय कुछ ओर बढ़ गई है ! अगर जम्मू कश्मीर में शांति स्थापित करना महबूबा मुफ़्ती या घाटी के अन्य नेताओं का सच्चे मन से सपना है तो फिर कश्मीरियत को भारतियता के प्रतिद्वंधी की तरह साथ खड़े करने के दावों को छोड़ना पड़ेगा नहीं तो अन्तरक्षेत्रीय दूरियां जो भावनात्मक और आकाँक्षाओं के स्तर पर अब साफ़ दिखने लगीं हैं और गहरी हो जाएँगी ! ८ जुलाई के बाद कश्मीर घाटी की जो स्थिति बनी है उस पर यहाँ ज्यादा चर्चा करने के बजाए इतना ही कहेंगे कि अब भी समय है कि राजनिति से ऊपर उठ कर “शीर्ष” पर बैठे नेता लोग “ट्विटर और फेसबुक” के रथों से नीचे उत्तर कर आम जन के बीच जाकर उन को समझें और उन के मन में घर कर चुकी शंकाओं का निवारण उन का विश्वास जीत कर करने का अभियान चलाएं!
यहाँ तक पीडीपी के सेल्फ रूल की बात है उस की एजेंडा फार एलायन्स में कहीं पर कोई बात नहीं की गई है! इस लिए कश्मीर घाटी के पीडीपी में अपने ‘साथी’ एवं समर्थक और पीडीपी के नेशनल कांफ्रेंस जैसे विरोधी आज सेल्फ रूल फ्रेमवर्क के कुछ बिन्दुओं की अकसर याद दिलाते हैं! साल १९९८ – ९९ में मुफ़्ती मोहद सईद जी पीडीपी की नीब रख कर जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्लाह की नेशनल कांफ्रेंस को पछाड़ने में काफी हद तक सफल हुए! इस खेल में पीडीपी ने नेशनल कांफ्रेंस की ‘अटोनोमी’ से कुछ आगे की दूरी भारत गणराज्य से ‘सेल्फरूल’ के दर्पण में कश्मीर घाटी के निवासी को, जो पहले ही कई प्रकार की शंकाओं, राष्ट्रियता की भ्रान्तियों और अपनों द्वारा किए गए वैचारिक शोषण का शिकार था, दिखाते हुए अपने को आगे निकाला! पर अब आगे, चाहे बीजेपी नेतृत्व पीडीपी को कितना ही राजनीतिक और सामजिक सहयोग दे , पीडीपी को अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए राजनीतिक स्तर पर आत्म विश्लेषण करना ही होगा क्यों की पीडीपी एक “मुख्यधारा’ का राजनीतिक दल रह कर अपने सेल्फ रूल के सिध्दान्त को राजनीतिक स्तर पर विना मूल सिधान्तों में संशोधन किए आगे नहीं ले जा सकती है!

यहाँ तक महबूबा जी के राजनीतिक विरोधियों का प्रश्न है उन का उदेश्य तो सिर्फ महबूबा के लिए राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना ही है ! पर यहाँ तक उन के अपने साथियों की बात है उन की नीयत पर शक नहीं किया जा सकता पर फिर भी अगर महबूबा जी ने अपने “सेल्फ रूल” के मूल सिधान्तों में कुछ फेर वदल करने का विचार कर लिया है तो उन के लिए अपने साथियों को इस तथ्य से अवगत कराने को प्राथमिकता देना भी अति आवश्यक है ! अगर एसा नहीं किया गया तो कठिनाई हो सकती है क्यों कि ऐसी दशा में उन को कुछ विवादस्पद विषयों का समय समय पर जिकर करना पड़ेगा जिस से बीजेपी को कठिनाई होगी और इस सरकार की शांतिपथ यात्रा का सपना सपना ही रह जाएगा!

हाँ इतना जरूर है कि यदि महबूबा मुफ़्ती जी पीडीपी को ‘कश्मीर’ केन्द्रित और ‘विदेश’ नीति केन्द्रित मुद्दों के जाल से बाहर निकलने की राह दिखाने के अभियान में लग जाती हैं तो शुरू में कुछ कठिनाई जरूर होगी पर आने बाले ५ सालों में उन के लिए कई ऐसे नए सहयोगी और नई राहें सामने होंगी जो उन को आज की राजनीतिक दूविदाओं से आसानी से नीकाल सकतीं हैं!

पर साल २००२ के वाद जिस प्रकार की सत्ता की राजनिति जम्मू कश्मीर में हुई है उस से इस राज्य से सम्वंधित विषय उस स्थिति में पहुँच गए हैं यहां पर पर्थिक्तावादी और मूख्यधारा/ मूलधारा की विचारधारा के बीच लकीर खींचना आज के परिदृश्य में कठिन लगता है ! हाँ दिल्ली में बैठे नेताओं ने भी बैचारिक स्तर पर घाटी में शंकाओं और मिथ्याओं को दूर करने के लिए कोई खास परिश्रम नहीं किया यहाँ तक के केंद्र के सलाहकार भी आर्थिक सहायता और अप्पीज्मेंट में आम सहयोग के सपने ही दिखाते रहे जिस के संकेत ८ जुलाई के बाद केंद्र सरकार की विश्वसनीयता की घाटी में जो स्थिति दिख रही है उस से लिए जा सकते हैं ! इस लिए पुरानी राजनीति की काल्पनिक राहों और राजनीतिक सलाहकारों के जाल से महबूबा जी के साथ साथ भारत के केन्द्रीय नेत्रितिव को भी बाहर निकलना होगा!

अगर महबूबा मुफ़्ती जी अपनी राहें बदलनें के लिए अग्रसर होती हैं तो यह जरूर है कि सत्ता की दोड़ में उन के विरोधी सामजिक , आर्थिक और राजीनीतिक असुरक्षा के अभावो से पीडित साधारण जन को अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए अशांति पैदा करने के लिए एक्सप्लॉइट कर सकते हैं ! पीडीपी को बने हुए डेड दशक हो चुका है और महबूबा मुफ़्ती भी काफी सुलझ चुकी है ! इस लिए यहाँ तक राजनीतिक प्रतिस्पर्दा का सम्बन्ध है वह बीजेपी – पीडीपी गठ्वंधन होने तक काफी हो चुकी है ! किसी को भी समय की आवश्यकता के अनुसार अपनी रणनीति में सुधार करने पड़ सकते हैं ! महबूबा जी को जम्मू कश्मीर की राजनिति को केन्द्र के साथ प्रतिस्पर्धा और अन्तराष्ट्रीय झंझालों से निकालना होगा और आम जन के हित में जमीनी स्तर पर कार्य को प्राथमिकता देनी होगी ! जिस राह पर चलने की सलाह यहाँ पर महबूबा जी को दी जा रही है उस में उन को दुर्गम स्थिति दिखेगी पर इन्ही राहों पर उन को ऐसे साथी और सहारे मिल जाएंगे जो काँटों को फूलों में बदलते दिखेंगे ! बस पीडीपी के शीर्ष नेता को एक ‘माँ’ की ममता को हर निजी सोच से ऊपर रखना होगा!.

यहाँ तक बीजेपी का प्रश्न है बीजेपी ने तो लिख कर दे दिया हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य को जो भारत के संबिधान में विशेष दर्जा प्राप्त है उस से कोई छेडछाड नहीं की जाएगी ! अगरचे एजेंडा फार एल्लएंस में अनुच्छेद -३७० का कोई जिकर नहीं है पर जिस विशेष दर्जे की वात एजेंडा फार एलायन्स में हुई है पीडीपी के लिए उस का अर्थ जकिनन अनुछेद -३७० से ही है!

(दया सागर वरिष्ठ पत्रकार और जम्मू कश्मीर विषयों के जानकार हैं-संपर्क 9419796096 )

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