Thursday, April 25, 2024
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क्यों खास है उज्जैन में हर 12 साल में होने वाला सिंहस्थ

प्राचीन भारत में आध्यात्मिक सत्यों को सांकेतिक कथाओं के माध्यम से सुरक्षित रखा जाता था कालान्तर मे यही कथाएँ विभिन्न परम्पराओं की जनक सिद्ध हुई और हमारी रहस्यमयी, विविधरंगी संस्कृति ने आकार ग्रहण किया। इसलिए यह सम्भव नहीं था कि कुम्भ जैसे आयोजनों के पीछे कोई कथा न हो। पुराणों में इसकी कथा है। चाहे आज इस कथा के पीछे के सत्य की कोई छाया भी हमारी स्मृति में शेष न हो, लेकिन कथा तो है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में हिमालय के समीप क्षीरोद नामक समुद्र तट पर देवताओं तथा दानवों ने एकत्र होकर फल प्राप्ति के लिए समुद्र-मन्थन किया। फलस्वरूप जो 14 रत्न प्राप्त हुए । उनमें श्री रम्भा, विष, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज, धन्वन्तरि, धनु, तरु, चन्द्रमा, मणि और बाजि । इनमें से अमृत का कुम्भ अर्थात घड़ा सबसे अन्त में निकला। उसकी अमर करने वाली शक्ति से देवताओं को यह चिन्ता हुई कि यदि दानवों ने इसका पान कर लिया तो दोनों में संघर्ष स्थायी हो जाएगा। इसलिए देवताओं ने इन्द्र के पुत्र जयन्त को अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ जाने का संकेत किया। जयन्त अमृत के कलश को लेकर आकाश में उड़ गया और दानव उसे छीनने के लिए उसके पीछे पड़ गये। इस प्रकार अमृत-कलश को लेकर देवताओं व दानवों में संघर्ष छिड़ गया। दोनों पक्षों में 12 दिन तक संघर्ष चला। इस दौरान दानवों ने जयंत को पकड़कर अमृत कलश पर अधिकार करना चाहा। छीना-झपटी में कुम्भ से अमृत की बूँदें छलक कर जिन स्थानों पर गिरीं, वे हैं प्रयाग, हरि‍द्वार, नासिक तथा उज्जैन। इन चारों स्थानों पर जिस-जिस समय अमृत गिरा उस समय सूर्य, चन्द्र, गुरु आदि ग्रह-नक्षत्रों तथा अन्य योगों की स्थ‍िति भी उन्हीं स्थ‍ितियों के आने पर प्रत्येक स्थान पर यह कुम्भ पर्व मनाये जाने लगे।

कहते हैं कि कुम्भ की रक्षा के लिए चन्द्रमा, बृहस्पति ने दैत्यों से उसकी रक्षा की और सूर्य ने दानवों के भय से। अंत में विष्णु भगवान ने मोहिनी रूप धारण करके घड़े को अपने हाथ में ले लिया और युक्ति से देवताओं को सब अमृत पिला दिया। पृथ्वी पर जिन स्थानों पर विभिन्न समयों में अमृत की बूँदें गिरी थीं उन स्थानों पर अमृत का पुण्य-लाभ उक्त अवसर पर स्नान करने से मोक्ष के रूप में प्राप्त होता है। इसी आस्था और धार्मिक विश्वास के आधार पर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में भिन्न-भिन्न समयों पर प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले होते हैं। सिंह राशि में बृहस्पति के स्थित होने के कारण उज्जैन के कुम्भ को ‘सिंहस्थ कुम्भ महापर्व’ कहते हैं।

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इसी प्रकार कुम्भ का धार्मिक महत्व तो स्पष्ट है। इनका संगठनात्मक और सामाजिक महत्व भी है। इन्हें द्वादशवर्षीय जन-सम्मेलन कहना अनुपयुक्त न होगा। बारह वर्षों के पश्चात् साधु-सन्त और महात्मा कुम्भ के बहाने उक्त नगरों में आते हैं। इससे आम लोगों को उनसे आध्यात्मिक सत्संग का लाभ उठाने का अवसर मिलता है। प्राचीन काल में साधु-सन्त नगरों से दूर गुफाओं और जंगलों में ही निवास करते थे। ऐसे ही पर्वों पर वे आम लोगों के बीच आते हैं।

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व
भारत के चार कुम्भ पर्वों में उज्जैन का कुम्भ ‘सिंहस्थ कुम्भ महापर्व’ कहलाता है। यह नगरी अपनी विशिष्ट महानता के लिए भी प्रसिद्ध है। प्राचीन ग्रन्थों में कुरुक्षेत्र से गया को दस गुना, प्रयाग को दस गुना और गया को काशी से दस गुना पवित्र बताया गया है, लेकिन कुशस्थली अर्थात उज्जैन को गया से भी दस गुना पवित्र कहा गया है।

क्षिप्रा नदी ने उज्जैन के महत्व को और भी बढ़ा दिया है। वैशाख मास की पूर्णिमा को क्षिप्रा स्नान मोक्षदायक बताया गया है। उज्जैन में क्षिप्रा-स्नान का महत्व प्रति बारहवें वर्ष पड़ने वाले सिंहस्थ कुम्भ महापर्व पर्व तो और भी अधिक माना जाता है।

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आगामी सिंहस्थ कुम्भ महापर्व
सिंहस्थ कुम्भ महापर्व हेतु निम्नानुसार 10 योग वांछित होते हें

सिंह राशि में गुरु (बृहस्पति )
मेष राशि का सूर्य
तुला का चन्द्रमा
वैशाख मास
शुक्ल पक्ष
पूर्णिमा तिथि
कुशस्थली- उज्जयिनी तीर्थ
स्वाति नक्षत्र
व्यतिपात योग
सोमवार
उक्त में से सिंहस्थ कुम्भ महापर्व आयोजन हेतु गुरु (बृहस्पति) का सिंह राशि में होना सर्वाधिक आवश्यक योग है और उज्जैन तीर्थ आवश्यक सिद्ध है शेष योगों का योग तत्कालीन ग्रह / तिथि आदि पर निर्भर है।

वैशाख शुक्ल के साथ सिंह का गुरु होना आवश्यक हैं बाकी दस योग में प्रायः ६-७ उपलब्ध हो जाते हैं।

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व 2016 की एक माह की अवधि में अलग-अलग ये योग उपलब्ध हो जायेंगे।

मेष का सूर्य
स्वाति नक्षत्र
व्यतिपात योग
सोमवार
संवत् 2073 “शिव” विशतिः के अंतर्गत होने के साथ ही “सोमयुग ” का भाग भी है। अतः उज्जैन शिव की नगरी होने से इस सिंहस्थ कुम्भ महापर्व में इस संवत् का विशेष महत्व स्वयं ही सिद्ध हैं। इस बार सिंहस्थ कुम्भ महापर्व में प्रथम बार श्रद्धालुओ को पवित्र क्षिप्रा एवं नर्मदा के प्रवाहमान शुद्ध जल में स्नान का शुभ अवसर प्राप्त होगा उल्लेखनीय हे कि विगत सिंहस्थ कुम्भ महापर्व में क्षिप्रा में गंभीर नदी का पानी डाला गया था एवं अनेकों वर्षों से प्रवाहमान नदी में वैशाख माह में स्नान के शुभ अवसर एवं धर्मलाभ श्रद्धालुओ को नहीं हो पाया था।

लाखों महिलाएँ और पुरुष इस पवित्र पर्व में भाग लेंगे। साधुओं को भगवा कपड़ों में और विभूति राखों में लिपटा हुआ देखा जा सकता हैं, जैसी कि हमारी परम्परा है। कहा जाता है कि नागा सन्यासी कपड़े नहीं पहन सकते हैं, यहाँ तक कि भयानक सर्दियों में भी और इन्हें भौतिकवादी दुनिया से अलग होने का प्रतीक माना जाता है।सिंहस्थ कुम्भ महापर्व-2016, उज्जैन में 5 करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों के आने का अनुमान है।

अन्तरिम क्षेत्र: 3000 हेक्टेयर
शाही स्नान के दिन अधिकतम : 1 करोड़
शाही स्नान दिवस पर निवासी आबादी : 20 लाख लगभग
महोत्सव अवधि : 30 दिनों के लिए (22-4-2016 से 21-5-2016)
6 ज़ोन्स, 22 सेक्टर्स, 4 फ्लैग्स स्टेशन, 6 सैटेलाइट टाउन, सिंहस्थ कुम्भ महापर्व-2016 के दौरान 51 पुलिस चौकियों को बनाया जायेगा।
अखाड़ों और साधुओं द्वारा सिंहस्थ कुम्भ महापर्व-2016 के दौरान विभिन्न कार्यक्रम (भागवत कथा, राम कथा, भजन, हवन, सुंदरकाण्ड, पूजन, योग) और सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी और खेल आयोजित किये जायेंगे।
साभार-http://www.simhasthujjain.in/से

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