Tuesday, April 23, 2024
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घाचर-घोचर

वाणी प्रकाशन से प्रकाशित लेखक विवेक शानभाग का मूल कन्नड़ में प्रकाशित आधुनिक कालजयी उपन्यास के हिन्दी अनुवाद ‘घाचर-घोचर’ का लोकार्पण व परिचर्चा 4 अक्तूबर 2018 को शाम 7:00 बजे, अमलतास, इण्डिया हैबिटाट सेण्टर, लोधी रोड, नयी दिल्ली में आयोजित किया जाएगा। उपन्यास पर परिचर्चा करेंगे कवि, अनुवादक, शिक्षाविद सुकृता पॉल कुमार, अनुवादक, शिक्षाविद अरुणव सिन्हा और साथ ही चर्चित कवयित्री अनामिका जी का भी सान्निध्य रहेगा।

घाचर-घोचर उपन्यास के बारे में…

‘घाचर-घोचर’ कन्नड़ भाषा से हिन्दी में अनुवादित एक विशिष्ट उपन्यास है। इस उपन्यास के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘नैतिक पतन की भयावह कहानी का प्लॉट लिए हुए ‘घाचर-घोचर’ इस दशक के बेहतरीन भारतीय उपन्यास के रूप में घोषित किया गया है… इस उपन्यास के प्रशंसकों, सुकेतु मेहता और कैथरीन बू ने शानभाग की तुलना चेखव से की है।’

निश्चित रूप से ‘घाचर-घोचर’ उपन्यास और इसके लेखक के लिए यह बड़े ही गर्व का विषय है कि इस उपन्यास को इस क़दर ख्याति मिल रही है। आयरिश टाइम्स के आइलिन बैटरस्बी का इस उपन्यास के विषय में कहना है कि यह कार्य विवेक शानभाग के बेहतर साहित्यिक कार्यों में से एक है।

इसी कड़ी में ‘न्यू यॉर्कर’ की टिप्पणी ‘इस त्रासदीय उपन्यास की क्लासिक कहानी, पूँजीवाद और भारतीय समाज, दोनों के लिए एक दृष्टान्त है।’ इस उपन्यास के बारे में ‘द पेरिस रिव्यू’ ने लिखा ‘घाचर-घोचर’ हमें एक विषय-विशेष के साथ पेश करता है।’

इसी प्रकार गिरीश कर्नाड, द इण्डियन एक्सप्रेस के विचार भी महत्त्वपूर्ण हैं। वह लिखते हैं- ‘श्रीनाथ पेरूर का अनुवाद उपन्यास की बारीकियों को पकड़ते हुए शानभाग के लेखन को और भी समृद्ध करता है। मूल कन्नड़ को पढ़ने और प्रशंसा करने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि यह एक अनुवाद था।’

इस उपन्यास को लेकर अनेक विद्वानों व पत्र-पत्रिकाओं के रिव्यूज़ देखने को मिलते हैं जो इस उपन्यास की सफलता को बयाँ करते हैं। ऐसा ही एक रिव्यू प्रज्वल पराजुल्य, द हिन्दुस्तान टाइम्स का है जो अवश्य देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार ‘बहुत ही कम पुस्तकें ऐसी होती हैं जो पाठकों और अपाठकों के हाथों में एक साथ होती हैं। ‘घाचर-घोचर’ एक ऐसी ही पुस्तक है।’ –

कन्नड़ लेखक विवेक शानभाग के पाँच लघु कथा संग्रह, तीन उपन्यास और दो नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने दो कहानी संकलनों का सम्पादन भी किया है, जिनमें से एक अंग्रेज़ी में है। उनकी कई छोटी कहानियों का नाट्य रूपान्तरण भी हुआ है और एक पर लघु फ़िल्म भी बनी है। विवेक शानभाग साहित्यिक पत्रिका ‘देश काल’ के संस्थापक सम्पादक, शुरुआती दौर में प्रमुख कन्नड़ अख़बार ‘प्रजावाणी’ के साहित्यिक सम्पादक और अंग्रेज़ी में अनूदित यू.आर. अनन्तमूर्ति की कन्नड़ पुस्तक ‘हिन्दुत्व या हिन्द स्वराज’ के सह-अनुवादक भी रहे हैं।

विवेक शानभाग की कहानियाँ अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनूदित हो चुकी हैं। उनके उपन्यास ‘घाचर-घोचर’ का अंग्रेज़ी अनुवाद भारत, अमेरिका, यूके में प्रकाशित हो चुका है और साथ ही दुनिया भर की 18 अन्य भाषाओं में भी अनूदित है। ‘घाचर-घोचर’ न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ-साथ द गार्डियन द्वारा चयनित 2017 की सर्वश्रेष्ठ दस पुस्तकों में से एक है।

‘मास्ति पुरस्कार’ से पुरस्कृत 2014 में प्रकाशित सबसे अच्छी कन्नड़ कथा पुस्तक ‘घाचर-घोचर’ के लेखक विवेक शानभाग 2016 में अन्तरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम के तहत आयोवा विश्वविद्यालय में मानद फेलो रह चुके हैं।

विवेक शानभाग पेशे से इंजीनियर हैं और बेंगलुरु में रहते हैं।

कवि, शिक्षक, आलोचक, सम्पादक व अनुवादक सुकृता पॉल कुमार भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य की प्रतिष्ठित पहचान हैं। उनकी कविता का कैनवस, परिवेश और यथार्थ के साथ मानवीय अनुभव से जुड़े बड़े सवालों, प्रकृति के विराट में एकलय होते मानवीय अस्तित्व, रिश्तों की प्रगाढ़ता, स्त्री के नैसर्गिक रूप के अद्भुत बिम्ब, बेघरों के जीवन संघर्षों के ब्योरे और भी बहुत-सी छोटी-बड़ी बातों से रचा गया है। उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं – ‘विदआउट मर्जिंस’, ‘अपूर्ण’, ‘ड्रीम कैचर’ ‘समय की कसक’, ‘ऑसिलेशन्स’, ‘अनटाइटल्ड’ आदि। गुलज़ार ने उनकी कविताओं के अनुवाद ‘पोएम्स कम होम’ शीर्षक से किये हैं। सविता सिंह के साथ उनकी कविताओं की द्विभाषी प्रस्तुति ‘साथ चलते हुए’ में हुई है। आलोचना के क्षेत्र में ‘नरेटिंग पार्टीशन’ तथा ‘इस्मत आपा’ विशेष उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा किये अनुवादों में प्रमुख हैं ‘ब्लाइंड’ (जोगिन्दर पॉल का उपन्यास नादीद) तथा ‘न्यूड’ (विशाल भारद्वाज की कविताएँ)। International Writing Programme, IOWA में तीन माह की अवधि की लेखन कार्यशाला में सुकृता को कवि रूप में आमन्त्रित किया गया। उन्हें अनेक फ़ेलोशिप मिले हैं जिनमें शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का तथा भारतीय संस्कृति मन्त्रालय का टैगोर फ़ेलोशिप उल्लेखनीय हैं। वे अभी हाल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के अरुणा आसफ़ अली चेयर पर पदासीन रही हैं।

अनुवादक, शिक्षाविद अरुणाव सिन्हा क्लासिक, आधुनिक और समकालीन बंगला और अंग्रेजी में भाषा के जाने-माने अनुवादक हैं। उनकी अब तक अठारह अनूदित कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं और अनेक प्रकाशनधीन हैं। क्रॉसवर्ड अनुवाद पुरस्कार के साथ वह अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत हैं। भारत के अलावा, उनके अनुवाद ब्रिटेन और अमेरिका में अंग्रेजी में और कई यूरोपीय और एशियाई देशों में अनुवाद के माध्यम से प्रकाशित किये गये हैं। कोलकाता में जन्मे और बड़े हुए अरुणव सिन्हा नई दिल्ली में रहते हैं।

प्रख्यात अनुवादक, कवयित्री, लेखिका और आलोचक डॉ. अनामिका की वाणी प्रकाशन से नयी ‘सदी के लिए चयन : पचास कविताएँ’, ‘स्त्री विमर्श का लोकपक्ष’, ‘बिल्लू शेक्सपियर : पोस्ट – बस्तर’ और ‘तिनका तिनके पास’ प्रकाशित हो चुकी हैं| स्त्रीवादी विचारधारा से युक्त इनका स्वर और रचनाएँ अंग्रेज़ी और हिन्दी के नवोदित लेखकों और पीढ़ी दर पीढ़ी पाठकों को प्रेरित करती हैं। डॉ. अनामिका के अनुसार, प्रत्येक शब्द स्वयं में अनुवाद है| उन्होंने कई प्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाओं के अनुवाद किये हैं। डॉ. अनामिका को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें भारत भूषण पुरस्कार, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, साहित्यकार सम्मान, परम्परा सम्मान, केदार सम्मान, इत्यादि शामिल हैं।

वह अकादमिक रूप से दिल्ली में कार्यरत हैं, तथा द्विभाषी लेखक के रूप में 20 से अधिक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय रचनाओं का प्रकाशन कर चुकी हैं| वे एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना हैं। उनके उपन्यास के असंख्य पाठक हैं और उनकी कविताओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है| इनकी रचनाओं को जेएनयू, कोची विश्वविद्यालय और मॉस्को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है| वर्तमान में यह दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं।

वाणी प्रकाशन 55 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

वाणी प्रकाशन भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 18 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो, पोलिश लिटरेरी सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव सम्मान प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउन्सिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।

लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।

3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।

‘किताबों की दुनियाँ’ में बदलती हुई पाठक वर्ग की भूमिका और दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपनी 51वीं वर्षगाँठ पर गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की। फ़ाउण्डेशन की स्थापना के मूल प्रेरणास्त्रोत सुहृद साहित्यानुरागी और अध्यापक स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ हैं। स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र‘महेश’ ने वर्ष 1960 में वाणी प्रकाशन की स्थापना की। वाणी फ़ाउण्डेशन का लोगो विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा द्वारा बनाया गया है। मशहूर शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार वाणी फ़ाउण्डेशन के प्रेरणास्रोत हैं।

वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय और विदेशी भाषा साहित्य के बीच व्यावहारिक आदान-प्रदान के लिए एक अभिनव मंच के रूप में सेवा करता है। साथ ही वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय कला, साहित्य तथा बाल-साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोधवृत्तियाँ प्रदान करता है। वाणी फ़ाउण्डेशन का एक प्रमुख दायित्व है दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा हिन्दी को यूनेस्को भाषा सूची में शामिल कराने के लिए विश्व स्तरीय प्रयास करना।

वाणी फ़ाउण्डेशन की ओर से विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतवर्ष के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम से कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत निम्न है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के इतिहास के मध्य भाषिक और साहित्यिक सम्बन्धों के आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।

वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया। अब वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया है।

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

कार्यक्रम से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी के लिए हमें ई-मेल करें – [email protected]

या वाणी प्रकाशन के इस हेल्पलाइन नम्बर पर कॉल करें : 9643331304

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