Friday, April 19, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चा"याद रहा सब कुछ" आत्ममुग्धता और आडम्बरपूर्ण अतिश्योक्ति से मुक्त उम्दा पुस्तक

“याद रहा सब कुछ” आत्ममुग्धता और आडम्बरपूर्ण अतिश्योक्ति से मुक्त उम्दा पुस्तक

सेवा निवृत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जयपुर निवासी आर.सी.जैन की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ” याद रहा सब कुछ ” एक अनुभव प्रदान और नई पीढ़ी के लिए प्रेरक पुस्तक सामने आईं है। आत्मकथा नहीं होने पर भी उनके बचपन से लेकर जीवन के 75 बसन्त देख चुके जीवन के विभिन्न काल – खंडों के अविस्मरणीय अनुभवों को मणीमाला के रूप में पिरोकर लिखी गई पुस्तक किसी आत्मकथा से कम भी नहीं है। किसी भी आत्मकथा से अलग एक साफ – सुथरी और सपाट लहजे वाली पुस्तक है जो आडम्बरपूर्ण अतिश्योक्ति और आत्ममुग्धता के उबाऊपन से मुक्त है। अलंकारों, उपमाओं से मुक्त प्रस्तुतिकरण, शब्द और वाक्य विन्यास सरल, सहज और सीधे दिल को गहराई तक छू लेता है।

आपने अनुभवों को इस प्रकार लिपिबद्ध किया गया है कि वह लेखक की प्रशासनिक दक्षता के साथ – साथ कार्य शैली, स्पस्ट वादिता, सम्बन्धों की मधुरता, विश्वास भावना को न केवल प्रदर्शित करता है वरन् पाठकों के लिए प्रेरणा पुंज भी है। साफ कहना सुखी रहना, अपनी बात पर द्रड रहना, काम से काम रखना, अपने मित्रों का हर हाल में ध्यान रखना, सभी का पूरा सम्मान करना, व्यवहार में निष्पक्षता और समानता का बर्ताव, अधीनस्थ से काम पूरा लेना लेकिन उसकी परेशानी को समझ कर यथा सम्भव सहयोग करना और उसके दुख – दर्द में भागीदार बनाना जैसे प्रेरक प्रसंग पुस्तक के महत्व को दुगुनित करते हैं।

पुस्तक की भूमिका में शब्द संसार के अध्यक्ष श्री कृष्ण शर्मा ने लिखा कि लेखक ने अधीनस्थ को सुरक्षा एवं उचित संरक्षण के साथ उन्हें यथोचित मार्गदर्शन देने में कोई गुरेज नहीं किया। समस्त पारिवारिक जिमेदारियों से मुक्त हो कर लौकिक जीवन में शरीर के साथ देने तक समाज सेवा में संकल्प के साथ लगे हैं। पुस्तक में अपनी टिप्पणी में से. नि. भारतीय प्रशासनिक अधिकारी आर.एन.अरविंद ने लिखा कि लेखक ने जहां ईमानदारी से भले लोगों को आदर के साथ यथोचित सम्मान दिया है वहीं समाज कंटकों के तिरस्कार को पूरी शिद्दत से रेखांकित किया है। पुस्तक पाठकों को जीवन के संघर्ष और विपरीत समय में परिस्थितियों का साहस और कुशलता से सामना करने का संदेश देती है। यह पुस्तक जितनी पाठकों के लिए प्रेरणादायी है उससे भी अधिक प्रशासनिक अधिकारियों के लिए अनुकरणीय मार्गदर्शक है। पिता के असामयिक देवलोक गमन के बाद की परिस्थितियों का सामना जिस कुशलता के कर घर को संभाला और समस्त दायित्वों का निर्वाह करने वाली माता श्रीमती अशर्फी देवी जैन को समर्पित है यह कृति।

आकर्षक कलेवर में 253 पृष्ठ में प्रकाशित पुस्तक को प्रारम्भ जीवन काल,उच्च अध्यन काल, व्याख्याता काल,प्रशासनिक सेवा काल और सेवा निवृत्ति के बाद का काल के 6 खंडों में विभक्त कर लेखक ने अपने प्रेरक अनुभवों की खुशबू से सुवासित किया है। पुस्तक का प्रकाशन दीपक पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, जयपुर द्वारा किया गया है और इसका मूल्य 525 रुपए है। कभी हाथ लगे तो इसे जरूर पढ़े शायद जीवन को सहज बनाने का कोई महत्वपूर्ण सुराग मिल जाए।

लेखक परिचय
आपका जन्म 13 जून 1946 को करोली निवासी श्यामलाल जैन ( मजिस्ट्रेट) के परिवार में हुआ। आपने घर की कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से टय़ूशन भी किए और मेधावी होने से स्कॉलरशिप के साथ फिजिक्स में एम.एस सी. की उपाधि प्राप्त की। आपने अपनी राज्य सेवा व्याख्याता पद से प्रारम्भ की और बाद में राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन होने पर विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य करते हुए आईं. ए. एस. के सुपर टाइम स्केल तक पहुंचे। सेवा निवृत्ति के पश्चात आप जैन समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ कर समाज सेवा के कार्य में सेवारत हैं।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार