Friday, March 29, 2024
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भक्तों ने 50 साल में इतना घी चढ़ा दिया कि 9 ‘कुएं’ भर गए

 मध्य प्रदेश के दतिया के विख्‍यात उनाव बालाजी सूर्य मंदिर में कुओं में जमा किया जाता है चढ़ावे का शुद्ध घी, रोजाना चढ़ता है करीब 17 किलो घी 

बूंद-बूंद से घड़ा भरना तो सभी ने सुना होगा, यहां तो कुएं भर गए। पानी से नहीं, शुद्ध घी से। एक-दो नहीं, पूरे नौ। मध्‍यप्रदेश के दतिया से 17 किमी दूर उनाव के बालाजी सूर्य मंदिर परिसर में यह देखा जा सकता है। यहां अखंड ज्योति के लिए भक्तों ने 50 साल में इतना घी चढ़ा दिया कि कुएं (हौदी) बनवाने पड़े। एक दिन में 8 किलो घी उपयोग होता है, जबकि एक दिन में 17 किलो से अधिक घी चढ़ावे में आता है। एक सप्ताह में यह घी सवा क्विंटल हो जाता है। हर साल 8 टन का भंडार हो जाता है। पहले एक कुआं बनाया गया, जब भर गया तो दूसरा। इस तरह पूरे नौ हो गए।

चार मौकों पर ही 4 टन का चढ़ावा

यहां शुद्ध घी चढ़ाने की परपंरा लगभग 400 वर्ष पहले मंदिर की स्थापना से शुरू हुई थी। मनोकामनाएं पूरी करने, कुष्ठ-चर्म रोग से मुक्ति, संतान एवं यश प्राप्ति के लिए लोग यहां घी चढ़ाते हैं। मकर संक्रांति, बंसत पंचमी, रंग पंचमी और डोल ग्यारस पर ही पूरे साल के बराबर घी चढ़ावे में आ जाता है। हर मौके पर भक्त 10 क्विंटल से ज्यादा घी चढ़ाकर जाते हैं। रविवार और बुधवार को ही भक्त एक क्विंटल से ज्यादा घी चढ़ा देते हैं।

प्रतिदिन 6 से 8 किलो घी से जलते हैं दीप

सूर्य मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्जवलित होती है, जिसमें घी का इस्तेमाल होता है। मंदिर के अंदर भोलेनाथ, हनुमान जी सहित लगभग 15 देवी देवताओं के मंदिर है, जहां शाम के वक्त दीपक रखा जाता है। इस हिसाब से यहां प्रतिदिन 6 से 8 किग्रा शुद्ध घी का उपयोग होता है। ग्रहण व अन्य आयोजनों पर हवन आदि में भी इसी घी का इस्तेमाल किया जाता है।

मान्यता: गड़बड़ी की तो शाप

लोग मानते हैं कि घी के चढ़ावे में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करने पर उन्हें शाप लगता है और कुष्ठ व चर्म रोग आदि बीमारियां हो जाती हैं। इसलिए मंदिर में आने वाले घी में गड़बड़ी नहीं होती।

जगह कम पड़ी तो कुएं में रखने लगे

पुजारी रामाधार पांडे के मुताबिक पहले जमीन में लोहे के टैंकर की तरह 7 फीट लंबाई-चौड़ाई और 8 फीट गहराई वाले 7 कुएं बनाए गए। इसके बाद मंदिर का प्राचीन कुआं भी घी से भर गया। इसके बाद खोदा गया 20 फीट गहरा व 10 फीट चौड़ा कुआं भी लगभग भर चुका है।

साभार- http://naidunia.jagran.com/ से 

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