Thursday, March 28, 2024
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अरनब गोस्वामी ने कहा, जिनको कोरोना से डर लगता है वो नौकरी छोड़ दें

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत में भी कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है। लोग दहशत में है। कोरोना वायरस से लोगों को सावधानियां बरतने की जानकारी देने वाला मीडिया भी काफी एहतियात बरत रहा है। कई बड़े मीडिया संस्थानों ने अपने कई एंप्लाईज को घर से काम करने के निर्देश दिए हुए हैं। वहीं कई कंपनियां सोशल डिस्टेंस का ख्याल रखते हुए मात्र इतने एंप्लाईज को ही बुला रही हैं, जिससे काम न रुके। वहीं रिपोर्टर्स को भी ऐहतियात बरतने के निर्देश दिए हुए हैं कि हो सके तो वे प्रेस कॉन्फ्रेंस से दूर ही रहें। कई पत्रकार भी कोविड-19 की चपेट में आ गए हैं, जिसके बाद मीडियाकर्मियों के बीच भी खौफ बढ़ता जा रहा है।

लेकिन इस बीच समाचार4मीडिया को ‘रिपब्लिक भारत’ की एक ऑडियो क्लिप मिली है, जिसमें चैनल के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी अपने दिल्ली स्थित टीम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सुनाई पड़ रहे हैं। क्लिप का सार ये बताता है कि कितनी बड़ी ही आपदा क्यों न आ जाए, यह चैनल बंद नहीं होगा और जिस एम्प्लॉई को चैनल में रहना है, उन्हें काम करना ही पड़ेगा। कोरोना जैसी विकट महामारी में भी उन्हें किसी भी तरह की कोई छूट नहीं मिलेगी। वहीं यदि कोई अपने सुर बुलंद कर काम नहीं करता है तो वह इस संस्थान को छोड़कर बाहर जा सकता हैं।

इस ऑडियो क्लिप में रिपब्लिक टीवी के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी ने जो कुछ कहा, वह आप हूबहू नीचे पढ़ सकते हैं।

अरनब गोस्वामी ने रिपब्लिक टीवी के मेंबर्स से कहा कि मैंने निर्णय कर लिया है कि मैं इस चैनल को नॉन स्टॉप चलाउंगा, जब तक कोविड-19 का मामला खत्म नहीं हो जाता, फिर चाहे उसमें तीन हफ्ते लगें या फिर तीन साल। इस चैनल को मैं रुकने नहीं दूंगा और स्लोडाउन भी नहीं होने दूंगा। जो भी बाहर पैनिक होते हैं हों, जितनी ज्यादा स्थिति खराब होगी, उतना ही ज्यादा हम नेशनल सर्विस करने के लिए तैयार रहेंगे। इस समय मैं आपकी लीडरशिप को देख रहा हूं। मैं लोगों को डांटना नहीं चाहता हूं। लेकिन जो लोग हमारे साथ इस समय नहीं रहेंगे, वो न रहें। रहते हुए न रहने वाला ऑप्शन मैं नहीं दूंगा, क्योंकि आप हो भी और नहीं भी।

उन्होंने आगे अपने एम्प्लॉयीज से कहा, ‘वे लोग सीधे तौर पर मेरी बात समझ लें, जो हैं भी और नहीं भी। आप बतौर एम्पलॉई तो बने रहना चाहते हो, पर टेक्निकली नहीं, क्योंकि हम ऑफिस नहीं आएंगे। अगर किसी की तबीयत दो-तीन दिन से ज्यादा खराब है तो वे मुझे टेस्ट कराकर अपनी टेस्ट रिपोर्ट मुझे दिखाएं। मुझे अच्छा लगता अगर आप यह कहते कि प्रॉब्लम तो दिल्ली से नोएडा आने की है, तो मैं वहां खुद आकर हैंडल करता, मैं पुलिस को समझाता, मैं वहां आकर उन्हें पास दिखाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, आपको तो ग्रुप बनाना है। उन्होंने आगे कहा कि यदि ग्रुप ही बनाना है तो इसलिए बनाइए कि इस चैनल में नया क्या कर सकते हैं, चैनल में किस तरह की न्यूज ब्रेक कर सकते हैं, कैसे नए ग्राफिक्स बना सकते हैं, कैसे नए शो बना सकते हैं, क्या कुछ कर सकते हैं अपने चैनल के लिए, जो चैनल की जरूरत है। इसका ग्रुप मत बनाइए कि 10 लोग मिलकर यह बोलें कि 3 दिन हम आ जाएंगे और 4 दिन आप आ जाना। यह संभव नहीं है। अगर ऐसी सिचुएशन बनाना चाहते हैं कि हर आदमी अपनी शिफ्ट डिसाइड करे, तो आप ही इस पूरे ऑर्गनाइजेशन को चलाइए।

उन्होंने फटकार लगाते हुए आगे कहा कि अपनी टीम के अंदर यह डिसाइड न करें, जैसा प्रॉडक्शन टीम ने किया कि अगले 6 दिन हम आते हैं और अगले 6 दिन तुम आ जाओ। जो लोग अभी 6 दिन के लिए नहीं आना चाहते क्योंकि उनको लगता है कि रिस्क है, तो आप मुझे बताइए कि जो लोग आपको रिप्लेस करने के लिए बैठे हैं, यदि सिचुएशन और ज्यादा खराब हो जाए तो क्या गारंटी है कि वे आपको रिप्लेस करेंगे। उन्होंने कहा कि बहुत ही साधारण सी बात है, यहां या तो पूरी टीम एक है, या पूरी टीम नहीं है। या फिर आप सब एक साथ कहो कि हम सब मिलकर इसको टैकल करेंगे, या फिर आप अपने-अपने ग्रुप्स में अपने-अपने तरीके से सिचुएशन को देखना चाहते हो। यदि ऐसा है तो फिर यह चैनल को मुझे बंद कर देना पड़ेगा। अगर आप में से कोई मुझे आकर यह कह दे कि आप चैनल को बंद कर दें, तो सीधे तौर पर आकर मुझसे बात कीजिए और यदि कोई ऐसा कहे कि मैं तो सिर्फ यह कह रहा हूं कि सेफ रहना चाहिए, तो मैं उससे कह रहा हूं कि यदि आपको अपनी ड्यूटी नहीं करनी है, तो आप जर्नलिज्म छोड़ दीजिए। रिपब्लिक भारत छोड़ दीजिए।

हमारे चैनल में हमारे नेटवर्क में मैंने यह कल्चर कभी नहीं बनाया था कि जब चैलेंजिंग समय आएगा तो हर व्यक्ति यह बहाने ढूंढेगा कि किसी तरह से मैं इस सिचुएशन से निकल जाऊं, किस तरह से यह मुझे ना करना पड़े या किस तरह से मैं तीन-चार दिन छुट्टी कर लूं। तो बताइए कि क्या गारंटी है कि तीन-चार दिन में आपकी तबियत ठीक हो जाएगी। क्या कोई गारंटी है कि 1 महीने में ठीक हो जाओगे।

हर ऑर्गनाइजेशन का सिर्फ एक चैलेंज होता है कि वह कैसे आगे निकले और कैसे स्ट्रॉन्ग बने और जो ऑर्गेनाइजेशन और जिस ऑर्गेनाइजेशन के लोग अपने-अपने पॉइंट ऑफ व्यू से ऑर्गनाइजेशन पर बात चलाना चाहते हैं, तो वो लीगल नहीं है। बल्कि जब भी मौका मिले, तो हम दिखाएं कि हम ऑर्गनाइजेशन के लिए क्या कर सकते हैं और यह काम करके दिखाएं भी।

गोस्वामी ने आगे कहा कि इस वक्त मैं बाहर के सभी लोगों को हर दिन फोन कर रहा हूं, फिर चाहे वह ऐडवर्टाइजिंग के लोग हों, डिस्ट्रीब्यूशन के लोग हों या ओबी वैन के लोग। मैं सभी को फोन करके बड़े गर्व से बोलता हूं कि मेरे सभी लोग 24 घंटे काम कर रहे हैं। मेरे लोग 12-12 घंटे की शिफ्ट कर रहे हैं। मेरे लोग ऑफिस में हैं जब दूसरे चैनल बंद हो गए थे।

मैं कह रहा हूं आप सभी से आज कि दूसरे चैनल भले ही बंद हो जाएं, लेकिन यह चैनल बंद नहीं होगा। भले ही पूरी नोएडा की फिल्म सिटी खाली हो जाए, लेकिन यह स्टूडियो खाली नहीं होगा। अगर आप नहीं आएंगे, तो हम पांच लोगों से भी चैनल चलाएंगे। जो लोग अलग से अपनी नेगोशिएशन शुरू कर रहे हैं उनसे कहना चाहूंगा वे जिस पर भरोसा करते हैं, वे आगे आकर दिखाएं कि आपके भरोसे का मतलब क्या है। जिन पर भरोसा करते हैं कि वह नेगोशिएट करें आकर कि आपने तो बोला था कि 3 दिन तुम आते हो, 3 दिन हम आते हैं। आप उनसे पूछो कि तीन दिन बाद यदि सिचुएशन और खराब हो जाए तो क्या वे आपको रिप्लेस करने आएंगे। जब स्वार्थ साफ-साफ दिख रहा है तो आप जिससे बात कर रहे हैं, जिससे नेगोशिएट कर रहे हैं, वह भी स्वार्थी है।

मैं आपसे कहना चाहूंगा कि मैं यह सब रेटिंग के लिए नहीं कर रहा हूं। मुझे रेटिंग से कोई मतलब नहीं। मुझे जो करना होगा वह हम करेंगे। कल हमने मुंबई में जो किया, वह आप भी जानें कि यह ऑर्गनाइजेशन किस तरह का है। हम सब कल रात को गए थे। रात को 11.30-12:00 बजे सारे सीनियर एडिटर्स बाहर खड़े होकर एक-एक एम्पलॉईज को हमारी गाड़ी में बैठाकर, गाड़ियों को सैनेटाइज करके, सेल्फ डिस्टेंस मेंटेन करके कि एक सीट पर 2 से ज्यादा लोग एक साथ न बैठें। खिड़कियां बंद रहें। यह सब करके ही हम सब घर लौटे थे।

हम लोग ऐसे नहीं हैं कि हम सिर्फ आपको लेक्चर दे रहे हैं। मैंने खुलकर कह दिया है, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, फिर चाहे इकनॉमी कुछ भी हो, जितनी गाड़ियां चाहिए आप हायर कीजिए, लोगों को ड्रॉप कराइए, गाड़ियों को सैनेटाइज कराइए। जितना प्रैक्टिकली संभव है, वह मैं कर रहा हूं। लेकिन कोविड-19 हमारे हाथ में नहीं है। यह प्रैक्टिकली हमारे हाथ में नहीं है और समझ लीजिए कि यह कोई मामूली चीज नहीं हो रही है। आप सिंपल सी बात मुझे बताइए कि यदि आप इस समय अनुपस्थित हो, तो 6 महीने बाद आप अपने आपको क्या कहेंगे कि जो संकट हुआ था उसमें हमने चैनल बंद कर दिया था।

कोई पुलिस वाला, कोई सिक्योरिटी गार्ड वाला या कोई हॉस्पिटल वाला कहता है कि मुझे कोई मतलब नहीं है। कोई यह कहता है कि मुझे कोई मतलब नहीं जरूरी लगे, तो मैं मीडिया ही छोड़ दूंगा और कुछ और काम कर लूंगा। तो वे ये बताए कि आप मीडिया में आए ही क्यों थे।

आप लिखित रूप से ले लीजिए दो हफ्ते, चार हफ्ते, दो महीने, तीन महीने, चार महीने बाद यह खत्म तो होगा ही। लेकिन जब खत्म होगा, तब आप अपने आप को क्या कहोगे। मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहता हूं कि मेरे कुछ रिपोर्टर हैं, जो काम नहीं करना चाहते हैं। यह क्या है जिनको मैंने प्रॉडक्शन की बड़ी जिम्मेदारी दी, वो मेरे साथ तब नेगोशिएट करें, जब चैनल के लिए चैलेंज का अच्छा समय था। लीडरशिप क्या होती है। आप मुझे यह बताओ आज 10 लोगों को एक साथ मिलकर सबको बोल सकता हूं कि चलो मैं तुम्हारा लीडर हूं। चलो चलकर बॉस से बात करते हैं, तो वहां 10 में से सिर्फ एक आएगा और यह लीडरशिप नहीं होती है। बल्कि लीडरशिप वो होती है जब 10 लोग बैठकर जिनके मन में डाउट हो उन्हें मोटिवेट करता है कि क्यों वे ऐसा करना चाहते हैं। क्यों वे चैलेंज को एक्सेप्ट नहीं करना चाहते। लीडर वह होता है, जो प्रॉब्लम नहीं, साल्युशन क्रिएट करता है।

मैं आपसे कह रहा हूं कि मुझे लेग डाउन मत कीजिए इस वक्त। हमने चैनल बनाया है। ये हमारे लिए नेशनल सर्विस का एक बहुत बड़ा मौका है। यदि यह संकट डेढ़ महीने में निकल जाए। यदि डेढ़-दो महीने तक हम लोग नॉनस्टॉप काम करें, तो दो महीने बाद आप अपने आपको कॉन्ग्रेचुलेट करेंगे। क्या मेरे घर में बुजुर्ग-बच्चे नहीं है। क्या मैं घर में बैठा हूं। क्या मैं घर रहूं। अकेला हो जाऊं, तो भी मैं हैंडल कर लूंगा। सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करोगे तो कुछ नहीं होगा। सेफ्टी प्रकॉशंस मेंटेन कीजिए।

ऑफिस में कम लोगों को लाने के लिए सिर्फ दो शिफ्ट का सिस्टम हो सकता है। उसके अंदर ही आप अपने अपने शिफ्ट को डिवाइड कर सकते हो। आप लोग शिफ्ट को मैनेज नहीं कर रहे हैं। हमने मुंबई में दो शिफ्ट को मैनेज किया है। वहां पहली शिफ्ट के लोग 5- 5:30 बजे दफ्तर आ जाते हैं और शिफ्ट पूरी करने के बाद गाड़ी में बैठकर घर चले जाते हैं। उसके बाद 5 मिनट के अंदर 2 बजकर 45 मिनट पर दूसरी शिफ्ट अंदर आती है। हैंडओवर ऑफिस के बाहर ही होता है ताकि दो शिफ्ट के बीच में कोई मिक्स न हो। इसके बाद सेकेंड शिफ्ट 11:30 बजे बाहर जाती है, जहां पर हमारी सारी गाड़ियां हैं। इसके बाद उनको सीधे घर भेजा जाता है। इसलिए दो शिफ्ट से ज्यादा कोई शिफ्ट नहीं हो सकती।

उन्होंने आगे कहा, ‘यहां एक बात और क्लियर कर रहा हूं कोई भी इनपुट, आउटपुट और प्रॉडक्शन अपने अपने रूल्स, अपने-अपने तरीके से एडजस्ट नहीं कर सकते हैं। मैं बिल्कुल क्लियर हूं और यह बिलकुल संभव नहीं है। इसलिए अपने लीडर की बात को समझिए। मैं आपका लीडर हूं। मैं आप लोगों को लीड कर रहा हूं। जो हमारे चैनल के लिए और जो आपके लिए अच्छा है, वही मैं कह रहा हूं। कोविड-19 पर कंट्रोल कर पाने में मीडिया की बहुत जरूरत है।

आप इस बात को भी समझ लीजिए, हम छोटे-मोटे चैनल नहीं हैं। अपने बीच में डिस्कशन कीजिए अभी। हमारे इंग्लिश चैनल का फॉर्मूला है ‘नेशन फर्स्ट, नो कंप्रोमाइज’ (Nation first, no compromise) और यह दो महीने का फॉर्मूला नहीं होता। याद रखना जब 2008 में भी जब 26/11 हुआ था, हमारे देश के बहुत दिग्गज पत्रकार उस एरिया केर्पा़स नहीं गए थे, जहां पर गोलीबारी हो रही थी। हर समय जब इस तरह की सिचुएशन होती है तो लोग अपने पॉइंट ऑफ व्यू से देखते हैं। मैं क्लियर कर देना चाहता हूं कि ‘रिपब्लिक भारत’ और ‘रिपब्लिक टीवी’ पर ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं हैं, जिन्हें पब्लिक अपने पॉइंट ऑफ व्यू से देखे। अपने फैमिली मेंबर्स के साथ जाकर बात कीजिए। कहिए कि अरनब ने बोला है ये नेशनल सर्विस है। अगर अपने घर में बच्चे और बुजुर्ग हैं तो अपने आप को घर के अंदर सेल्फ आइसोलेट कीजिए, जितना हो सके। इस सिचुएशन में मुझे अच्छा लगता अगर मेरे डेस्क के लोग कहते कि हम रिपोर्टर बनेंगे, हम बाहर जाएंगे। हम प्रॉब्लम बढ़ाएंगे नहीं, बल्कि आपके लिए प्रॉब्लम कम कर देंगे। जरूरत पड़ेगी तो हम फिल्म सिटी नोएडा के बाहर से रिपोर्टिंग कर लेंगे। क्या बड़ी चीज है रिपोर्टिंग?, कौन नहीं कर सकता? इस समय मौका है, हर आदमी को जाकर दिखाना चाहिए कि हम रिपोर्टिंग कर सकते हैं।

अगर आपमें हिम्मत है तो मेरे साथ रहिए, और एक बात मैं कह रहा हूं, जिनमें हिम्मत नहीं है, मैं उन्हें फोर्स नहीं करूंगा, लेकिन यह चैनल आगे चलेगा और ट्रू नेशनल करेगा, रेटिंग भाड़ में जाए। कल अगर ये सब करने के बाद मेरी रेटिंग गिर जाए, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। हमने अपने मन में कमिटमेंट किया है और दिमाग में इस कमिटमेंट को करके रखिए। एक चीज मैं आपको कह रहा हूं। मैं भी घर से सात बजे कर सकता हूं, नौ बजे कर सकता हूं, लेकिन मैं नहीं करूंगा। मैं भी कह सकता हूं कि देखिए, प्रधानमंत्री ने कहा है कि अपने घर पर रहिए, इसलिए मैं अपने ड्राइंग रूम से एंकरिंग कर रहा हूं, मगर मैं ऐसा नहीं कर रहा, क्योंकि सिर्फ एंकरिंग की बात नहीं होती है, एक मैसेज की बात होती है, क्योंकि यदि लीडर घर में बैठ जाए तो बाकी ‘सेना’ क्या करेगी।

मैं रिक्वेस्ट कर रहा हूं आप लोगों से कि अगर हो सकता तो मैं आज जाता। मुझे लेटडाउन (निराश) मत कीजिए। मैं ये चैनल आपके हाथ में दे रहा हूं। मैं शिफ्ट मैनेज नहीं करूंगा। मैं सिर्फ यही कहूंगा कि दो शिफ्ट के सिस्टम के पीछे सिर्फ एक ही फिलॉसफी है कि स्टाफ जितना कम हों, उतना अच्छा है। इसलिए फिजिकल कॉन्टैक्ट को कम करने के लिए मैंने कल शमशेर और मिहिर को भी यही कहा कि शमशेर जी आप एक शिफ्ट में आइए और मिहिर जी आप एक शिफ्ट में आइए। आप दोनों के बीच में भी फिजिकली कॉन्टैक्ट नहीं होना चाहिए। इतना तक मैं कहूंगा कि अभिषेक एक शिफ्ट में आइए और आयशा आप दूसरी शिफ्ट में आइए। आप अपनी शिफ्ट को इस तरह से डिवाइड कर लें कि दो शिफ्ट में से पूरी एक शिफ्ट को एक हफ्ते के लिए बंद रखा जाता है, फिर भी चैनल चलता रहेगा, इसका साइंटिफिक थिंकिंग है। इसको फॉलो कीजिए, इसका पालन कीजिए और उल्लंघन मत कीजिए।

मत बताइए मुझे कि आप 12 बजे आ गए और 12 बजे तक रहे, क्योंकि आप दूसरी शिफ्ट के साथ मिक्सअप कर रहे हैं। इसे फॉलो कीजिए, क्योंकि यह पूरे ऑर्गनाइजेशन के लिए है। यह स्थिति हिंदी और अंग्रेजी प्रॉडक्शन के लिए अलग नहीं हो सकती है। मैं एक चीज और कहना चाहता हूं कि मेरी ओर से मैं जितनी फैसिलिटी आपको लिए उपलब्ध करा सकता हूं, कराऊंगा। मैं शमशेर जी, मिहिर जी और आयशा जी से पूछ लीजिए, शमशेर जी को मैं पूरी छूट दे रहा हूं कि आपको कल से 10-15 गाड़ियां और हायर करनी पड़ें, ताकि लोगों का आराम से और जल्दी पिकअप हो जाए, तो कर दीजिए। मुझे देखिए कि मैं ऐसे इस स्थिति को डील कर रहा हूं। हमने मुंबई में चार बसें हायर की हैं। 18-18 सीटर बसें और 20 गाड़ियां, क्योंकि परसों जब मैं शिफ्ट के चेंजओवर को देखने गया तो मुझे लगा कि गाड़ियां कम हैं, जिससे लोग देर से पहुंचते हैं। इसलिए मैंने अपनी टीम से कहा कि जितनी गाड़ियां हायर करनी हैं, करो और यही बात मैं अपनी दिल्ली टीम से भी कह रहा हूं। आपके लिए जितना कर सकता हूं, करूंगा। अगर बाहर से खाना मैं ला सकता तो लाता, अपनी टीम के लिए मैं जद्दोजहद करता, लेकिन मुझे नहीं पता कि उस तरह हाइजीनिक कंडीशन में खाना बनेगा कि नहीं बनेगा। ड्राई फूड जितना मेंटेन किया जा सकता है, मैंने किया है। मैंने इस तरह की व्यवस्था बनाई हुई है कि यदि एक हफ्ते तक ऑफिस में रहना पड़े तो हम रहेंगे। लेकिन अपने मन को मजबूत कीजिए, अपने पॉइंट ऑफ व्यू और माइंडसेट को हैंडल कीजिए। बात कीजिए। मुझे जब डिजिटल में एक लड़की ने बोला कि मुझे अपनी सोसायटी में अंदर आने नहीं दे रहे तो हमारी डिजिटल टीम की एक और लड़की जो छोटे से रूम में शेयरिंग में रहती है, उसने कहा कि मेरे साथ रहिए, मुझे लगता है कि वो लीडरशिप है।

बहुत मुश्किल होता है, मैं कह रहा हूं। दिल्ली में तो जगह है, मुंबई में तो जगह की काफी कमी है, फिर भी लोग कर रहे हैं, क्योंकि मैं उनके साथ हूं। मगर क्यूंकि मैं आप लोगों के साथ नहीं हूं तो क्या ये माना जाए कि आप लोग मौके देखकर वही करेंगे। उन्होंने डेढ़ साल में मेरे काम करने का तरीका देखा हुआ है। मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि मैं सुबह आठ बजे से लेकर तीन बजे तक सिर्फ फोन कॉल करता हूं। मैं पूरी इंडिया की इंडस्ट्री के साथ बात कर रहा हूं। मैं इमेज भेज रहा हूं लोगों को और कह रहा हूं कि मेरा सपोर्ट कीजिए। मैंने कहा है कि I am proud of my people। मेरी अपील के बाद पूरी इंडिया के लोग मुझे सपोर्ट कर रहे हैं।

आपको जितना सेफ होने के लिए जो भी चाहिए, मुझे बोलो। मैंने उन लोगों के लिए गाड़ियों की व्यवस्था करने के लिए बोला है, जो गाड़ियों में जाते हैं। सर्जिकल मास्क हो, खिड़की डाउन रखी जाए, गाड़ियों को सैनिटाइज किया जाए और सोशल डिस्टेंसिंग रखी जाए तो कुछ नहीं होता है। आज आपने देखा है कि पीएम ने कैबिनेट की मीटिंग की है। कैबिनेट ने सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन की है। हम लोग काम बंद नहीं करेंगे, आप लोग मेरी बात समझिए। अगर कोई स्पेसिफिक प्रॉब्लम है तो मुझे फोन कीजिए, मैं आपके साथ हूं। मैं भी प्रोफेशनल हूं आप लोग जानते हैं, हो सकता है कि मैं सख्त हूं। मुझे सख्ती बरतनी पड़ती है, नहीं तो मैं हजार लोगों की ऑर्गनाइजेशन को नहीं चला सकता, मगर मैं सेंसेटिव भी हूं। मैं समझता हूं कि क्या हो रहा है, क्योंकि यही सवाल हमारे घरों में भी किए जाते हैं। मगर मैंने सोच बनाई हुई है कि चाहे कुछ भी हो, हम चलते रहेंगे। मैं क्लियरली बोल रहा हूं और मैं डांटता हूं उन लोगों को सर्दी के साथ आए क्यों हो। सर्दी हो रही है तो सर्जिकल मास्क पहनकर काम क्यों कर रहे हो। कल अगर मुझे हो जाए सर्दी तो मैं नहीं जाऊंगा ऑफिस, मैं काम नहीं बंद करूंगा, मगर मैं घर बैठने वाला एडिटर नहीं हूं। न कभी था और न कभी होने वाला हूं।

मैं आपको बता दूं कि मुंबई में जब सीरियल ब्लास्ट हुए थे तो मुंबई में कई लोग चैनल्स बंद करके, ऑफिस बंद करके इसी तरह बोल रहे थे कि वर्क फ्रॉम करेंगे, हमने 100 घंटे नॉन स्टॉप लाइव रिपोर्टिंग की थी। हमारी प्रॉडक्शन टीम और एंकर्स की टीम भी 100 घंटे तक लगातार लगी रही थी। विश्वास न हो तो पूछ लीजिए। दो घंटे की शिफ्ट होती थी सोने के लिए और कॉफी के लिए, बाकी लगातार काम होता था। और अगर आज भी मुझे कोई कहे कि आपकी लाइफ का बेस्ट टाइम क्या है जो मेरे लिए मैटर करता है तो वही था। 12 साल बाद वही सिचुएशन आई है।

साभार- https://www.samachar4media.com/ से

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