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डॉ. आशा मिश्रा
 

  • इक्कीसवीं सदी की स्त्री : भारतीयता की पोषक या विनाशक ?

    इक्कीसवीं सदी की स्त्री : भारतीयता की पोषक या विनाशक ?

    पाश्चात्य सभ्यता से तुलना कर हम स्वयं को कमजोर सिद्ध करते हैं। इतनी तरक्की के बाद भी भारत में कितनी महिलाएं प्राचीन स्त्रियों के बराबर खड़ी हो पाई हैं। आज स्त्री जमीन आसमान एक जरूर कर रही हैं परंतु नंबर अभी भी उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं। सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देकर स्त्री को कटघरे में खड़ा करना

  • हुड़क

    हुड़क

    ‘इंतज़ार की घड़ी लम्बी होती है,‘ सुना था कभी , आज देख रही हैं । “चाय ठंढी हो रही है ।” वह स्वयं से बड़बड़ाईं और उठकर खुद ही कमरे में चली गईं । “अभी तक सो रहे हैं , इतना भी क्या सोना भई, कभी खुद भी उठ जाया करें ।”

  • आशा की किरण

    आशा की किरण

    जिसकी प्रतीक्षा थी उसे कोशिश करती है पहचानने की उन आशा की किरणों को जो बचाएगा उसे अंधेरों से पर दुविधा में है

  • शक है उन्हें

    शक है उन्हें

    कार में हम तीन थे फिर भी एक सन्नाटा पसरा हुआ था । कार गलियों में बाएँ - दाएँ मुड़ती हुई गंतव्य की ओर बढ़ रही थी । सुकन्या एवं सौरभ के रिश्तों को सुलझाने की हमारी छोटी सी

  • फागुन का दर्द !

    फागुन का दर्द !

    बस इतना बताना तेरी फग़ुआ भी क्या मेरी ही तरह है ? तेरे गालों पर भी क्या मेरा असर है ?

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