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राष्ट्रभाषा हिन्दी और देवनागरी लिपि
अपने विचारों को दूसरे तक प्रेषित करने में हमें भाषा की आवश्यकता पड़ती है। स्वामी दयानन्द जब धर्म प्रचार के क्षेत्र में आये तब उनके सामने यही समस्या थी कि वे किस भाषा के द्वारा अपने विचारों को अन्यों तक सम्प्रेषित करें। उनकी मातृभाषा गुजराती थी किन्तु उत्तर भारत में उससे विचारों के सम्प्रेषण में […]
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आर्यसमाज और भारतीय शिक्षा पद्धति
लाला लाजपतराय ने अपनी पुस्तक ‘ दुःखी भारत ‘ ( Unhappy India ) में यह बताया है कि अंग्रेजों के भारत में आगमन से पूर्व भारत में एक व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी । गांव – गांव में पाठशालायें स्थापित थीं जिनमें छात्र व्यवस्थित रूप से विभिन्न विद्याओं और शास्त्रों का अभ्यास करते थे । […]