Friday, April 19, 2024
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हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला द्वारा प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकारों का अभिनंदन समारोह

मुख्यमंत्री द्वारा स्व. श्रीमती इंद्रा स्वप्न रचनावली के 18 खंडों का महालोकार्पण

आजादी के अमृत महोत्सव पर हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला द्वारा प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकारों का अभिनंदन समारोह टैगोर थिएटर चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री माननीय मनोहर लाल जी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में हिंदी, पंजाबी, संस्कृत तथा उर्दू के विद्वानों को हरियाणा साहित्य पर्व में सम्मानित किया गया। इस भव्य कार्यक्रम में रोहतक की स्वर्गीय श्रीमती इंद्रा स्वप्न के संपूर्ण साहित्य की रचनावली के 18 खंडों का महालोकार्पण प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय मनोहर लाल जी के कर कमलों से हुआ। लोकार्पण उत्सव में श्री गुरविंदर सिंह धमीजा- उपाध्यक्ष पंजाबी साहित्य अकादमी, सुनील वशिष्ठ- निदेशक हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी पंचकूला, डॉ वीरेंद्र चौहान- उपाध्यक्ष ग्रंथ अकादमी पंचकूला, डॉ विनय शास्त्री- निर्देशक हरियाणा संस्कृत अकादमी पंचकूला, डॉक्टर चंद्र त्रिखा- उपाध्यक्ष हरियाणा उर्दू अकादमी एवं हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला, वी उमाशंकर- प्रधान सचिव सूचना जनसंपर्क एवं भाषा, डॉ अमित अग्रवाल- महानिदेशक भाषा विभाग, हरियाणा संयुक्त रूप से उपस्थित हुए।

सभी 18 खंडों का सम्पादन उनके साहित्यिक पुत्र, हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार श्री मधुकांत ने किया तथा रचनावली का लोकार्पण भी उन्होंने कराया। इससे पूर्व हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला ने इन्द्रा स्वप्न के 3 उपन्यासों को पुरस्कृत किया- महाराष्ट्र का गौरव, वैशाली सुंदरी तथा अद्य गुरु शंकराचार्य । हरियाणा राज्य की रजत जयंती के अवसर पर उनको विशिष्ट साहित्यकार (हिंदी) के रूप में सम्मानित किया ।

आपके उपन्यास’ निर्भीक सन्यासी स्वामी रामतीर्थ’ का लोकार्पण प्रज्ञा साहित्यिक मंच के द्वारा महामहिम राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के कर कमलों द्वारा हुआ था।

उनके स्वर्ण जयंती वर्ष में हरियाणा प्रदेश की 23 वरिष्ठ साहित्यकार महिलाओं को महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में आमंत्रित करके प्रज्ञा सम्मान से सम्मानित किया। बाद में भी सिरसा, कैथल, रोहतक, करनाल व चरखी दादरी, जीन्द के साहित्यिक मंच पर वहां के साहित्यकारों को इंद्रा स्वप्न स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

श्री मधुकांत जी ने बताया ‘इंद्रा स्वप्न की रचनावली का संपादन एक पावन यज्ञ करने जैसा लगा। इस महान यज्ञ में अनेक साहित्यिक मित्रों ने अपनी-अपनी आहुतियां डाली हैं, जिनमें प्रमुख रूप से डॉ लालचंद मंगल, श्री जगत सिंह हुड्डा, श्री हरनाम शर्मा,श्री राजा नरेंद्र, प्रोफेसर शामलाल कौशल, प्रो. अंजना गर्ग, श्री मधुदीप व श्री नरेश प्रसाद भटनागर का भरपूर सहयोग मिला।

इंद्रा स्वप्न रचनावली के सभी 18 खंडों को कौशिक पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली 93 ने प्रकाशित किया है प्रत्येक खंड का मूल्य ₹1000 तथा पृष्ठ संख्या लगभग 500 है।

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