Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeव्यंग्यलोकतंत्र में गिरने- गिराने की परम्परा है

लोकतंत्र में गिरने- गिराने की परम्परा है

जैसे पीने-पिलाने वालों के मजे होते हैं वैसे ही राजनीति में गिरने-गिराने के मजे होते हैं। राजनीति में गिराने वाला और गिरने वाला दोनों ही महान माने जाते हैं। राजनीति में आदमी गिरने से पहले पुरजोर कोशिश करता है कि वो किसी को गिरा दे और गिरे नहीं,राजनीति में तो एक दुसरें को गिराने की होड़ लगी रहती हैं हर कोई एक दुसरे को कभी शब्दों से तो कभी चरित्र से गिराने की तुकतान में रहते हैं। जरा सी कमजोरी सामने आयी के टांग पकड़ के अच्छे अच्छों को गिरा दिया जाता हैं । लोकतंत्र में गिरने- गिराने का खेल तो जैसे शाश्वत परम्परा का निर्वहन करना हैं । कभी केन्द्र की तो कभी प्रदेश की सरकार गिर जाती है या कहें गिरा दी जाती है।

कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के मुखिया बने तभी से कईं तरह के इंजेक्शन लेकर और एंटीबायोटीक डोज ले कर बैठे हुए थे। उनको ये भरोसा भी था कि उन्होंने जो वैक्सीन लगा रखे हैं वे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम नहीं होने देंगे। लेकिन येदियुरप्पा की ने जो विषैले किटाणु फैलाएँ और जोर आजमाईश की तो उनकी कोई दवा काम नहीं आयी और वे अच्छे भले चलते-चलते लड़खड़ाने लगे और आखिर में गिर ही गये ।

कुमारस्वामी पिछले कईं माह राजनीति के दर्द से पिड़ित थे, कराह भी रहे थे और उपर वाली मैडम से इंजेक्शन के डोज बढ़ाने के भी अनुरोध कर रहे होंगे। लेकिन कहा जाता है, अपने करम अपने को ही भोगना है बाकि लोग तो अंतिम संस्कार और उठावने में ही आते है। विद्वानों ने कर्नाटक का नाटक कह कर पन्द्रह-बीस दिनों से गिरने-गिराने के खेल का खूब मजा लिया वो कुमारस्वामी की छाती पर मुंग दलने जैसा ही था । आखिर कर लोगों के मजे में सरकार गिर ही गई और लोग ताली बजाने में लगे हुए है।

वैसे भी बच्चा जब चलना सीखता है तो पहले थोड़ा चलता है और फिर गिरता भी है। चलने का प्रयास जारी रहता है चंदन गाड़ी के सहारे चलता है वह भी फिसलती है फिर गिरता है। गाड़ी बदलती है सायकिल आ जाती है तो फिर सायकिल से भी गिरता है। सायकिल मोटर सायकिल के नये अवतार में मिलती है और कभी न कभी मोटर सायकिल से भी वह गिरता है। लोकतंत्र में मिलीजुली सरकार चलाना मौत के कुएँ में मोटरसायकिल चलाने से कम नहीं है। जरा सा चुके की सरकार गिरी, और मोटर सायकिल का गिरना कुछ न कुछ निशानी दे जाता है। गिरना तो इंसान के जन्म से जुड़ा है। पर वह बच्चा बड़ा होता है तो पता नहीं कितना गिरता है, किस- किस पर गिरता हैं और कितनों को गिराता हैं। ये उसके समय और भाग्य पर निर्भर करता हैं।

-संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन 456006
मो. 9406649733
मेल- [email protected]

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार