Tuesday, April 16, 2024
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अमेरिका में हिन्दी की गूंज

आज अपने ही देश में हिन्दी बेचारी सी घूम रही है। हिन्दी बोलने वालों को नीची दृष्टि से देखा जाता है। परन्तु सात समुन्दर पार अमेरिका में बसा भारतीय समुदाय अपनी अगली पीढ़ी का भविष्य हिन्दी में देख रहा है। अमेरिका के कई शहरों में हिन्दू मंदिर हिन्दी शिक्षण केन्द्रों की भूमिका भी निभा रहे हैं। व्यक्तिगत स्तर पर भी कई लोग, जिनमें हिन्दी के लेखक भी हैं, इस महत कार्य में अपना योगदान दे रहे हैं। आर्केडिया,कैलिफोर्निया अमेरिका में बसी हिन्दी की रचनाकार, रचना श्रीवास्तव भी ऐसे ही लोगों में हैं जो लेखन के साथ -साथ हिन्दी शिक्षण के क्षेत्र में भी कार्यरत हैं। वे अहिन्दी भाषी बच्चों को हिन्दी सिखाती हैं। पिछले दिनों आर्केडिया,कैलिफोर्निया अमेरिका में रचना की हिन्दी क्लास ने साहित्य- प्रवाह ट्रस्ट , बडॊदरा के सहयोग से बच्चों की हिन्दी भाषण प्रतियोगिता का सफ़ल आयोजन किया। यह दूसरा बर्ष है जब साहित्य- प्रवाह ट्रस्ट , बडॊदरा के सहयोग से ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। साहित्य- प्रवाह ट्रस्ट, वडोदरा २००८ से भारत और अमेरिका के विभिन्न राज्यों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है । इसकी संस्थापिका डा नलिनी पुरोहित है जो एम एस युनिवर्सिटी के रसायन शास्त्र की प्रोफ़ेसर होने के साथ साथ अच्छी रचनाकार भी हैंl

प्रतियोगिता वरिष्ठ और कनिष्ठ दो वर्गों में आयोजित की गयी। वरिष्ठ वर्ग में भाषण प्रतियोगिता और कनिष्ठ वर्ग में कविता वाचन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता के लिए बच्चों का उत्साह देखते बनता था। कार्यक्रम शाम ४ बजे प्रारम्भ हुआ सर्व प्रथम रचना श्रीवास्तव जो की हिन्दी शिक्षिका भी है , ने आकर सभी उपस्थित लोगों को अपने बच्चों को हिन्दी सीखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद किया। इन्होने हिन्दी के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला। अपने बारे में बोलते हुए रचना ने कहा कि वह पिछले १४ सालों से अमेरिका में रह रही है और बहुत से हिन्दी भाषी,गैर हिन्दी भाषी तथा अमेरिकन को हिन्दी पढ़ाती रही हैं । इसके बाद रचना ने साहित्य प्रवाह बड़ोदरा (गुजरात ) की मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ नलिनी पुरोहित जी का ह्रदय से आभार प्रकट करते हुए कहा कि नलिनी जी भारत में और भारत से बाहर भी हिन्दी के प्रचार के लिए बहुत उत्तम कार्य कर रही है|

तत्पश्चात प्रतियोगिता प्रारम्भ हुयी। इस कार्यक्रम का संचालन स्वरित श्रीवास्तव ने बहुत ही उत्तम तरीके से किया इनके छोटे छोटे मासूम चुटकुलों ने सभी का मन मोह लिया। इस प्रतियोगिता के लिए रचना श्रीवास्तव और श्रीमती विद्यावती पान्डेय जो हिन्दी की प्रवक्ता रह चुकी हैं निर्णायक थे। इन्होने बच्चों के उच्चारण ,समय ,भाव,बोलने का तरीका ,याद कितना है इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अंक दिए। इस बार की प्रतियोगिता में एक मुख्य बात ये थी कि बच्चों के भाषण या कविता बोलने के आलावा उनको हिन्दी लिखने और पढ़ने पर भी अंक दिए गए। यहाँ ध्यान देने की बात ये भी है कि इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले बच्चे मुख्यतः अहिन्दी भाषी परिवारों से थे । जिनके घरों में हिन्दी बिलकुल भी नहीं बोली जाती है। बच्चे को बोलने के लिए २ मिनट का समय निर्धारित किया गया था। छोटे बच्चों में प्रथम पुरस्कार आशी खत्री तथा दूसरा पुरस्कार निरंजन महेशवरन तथा बरिष्ठ वर्ग में प्रथम पुरस्कार ऋतिका हरीश कृष्नन ,दूसरा स्थान दो बच्चों साधना उमाशंकर और संजीव महेशवरन को मिला। इस प्रतियोगिता में ५ साल से ले कर १२ साल तक के बच्चों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि जास्मिन ह्ययूमन सर्विसेज की स्थापिका एवं श्रीमती चारु सारूमथ शिवकुमार थीं। चारु जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैl लॉस एंजेलिस कैलिफोर्निया रह रहे भारतियों के विभिन्न संगठनों को अपना सहयोग निस्वार्थ भाव से देती हैं। यहाँ सभी इनको बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।चारु तथा बैंक से शाखा प्रबंधक के पद से सेवानिवृत हुए श्री रमाकांत पांडेय जी ने बच्चों को पुरस्कार वितरित किया।

इस अवसर पर बोलते हुए श्रीमती विद्यावती पांडेय ने कहा कि जहाँ आज भारत में लोग अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं वहाँ विदेश में रहते हुए हिन्दी को सीखना और उसके लिए इतना समर्पण रखना ये बहुत बड़ी बात है। उन्होंने आगे कहा कि हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए जो कार्य रचना जी कर रही हैं वह बहुत ही सराहनीय है।यहाँ बच्चों के माता पिता का हिन्दी के प्रति समर्पण देख कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है,तो हम सब को हिन्दी आनी चाहिए। विद्यावती जी ने आगे कहा की छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए बहुत ही धैर्य की जरुरत होती है और पढ़ाना भी कठिन होता है। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए मै रचना को धन्यवाद देती हूँ और आशीर्वाद देती हूँ कि वह ऐसे ही कार्य करती रहे। इतना अच्छा कार्यक्रम यहाँ करवाने के लिए मै साहित्य प्रवाह संस्था को भी धन्यवाद देती हूँ और उम्मीद करती हूँ कि भविष्य में भी ये संस्था ऐसे कार्यक्रम आयोजित करती रहेगी। कार्यक्रम के अंत में बच्चों और सम्मानीय अतिथियों के लिए जलपान की व्यवस्था थी जिसका सभी ने खूब आनन्द लिया। सभी ने कार्यक्रम की सफलता के लिए रचना और साहित्य प्रवाह संस्था को धन्यवाद दिया।


(रचना श्रीवास्तव अमरीका में रहती हैं और अमरीका में रह रहे भारतीयों की रचनात्मक गतिविधियों पर नियमित रूप से लिखती हैं)

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2 COMMENTS

  1. जब आप “हिन्दी बोलने वालों को नीची दृष्टि से देखा जाता है।” कहते हैं तो यह नहीं बताते हैं ऐसा कहने वाला कौन है? अंग्रेज? अमेरिकी? चीनी? या जो स्वयं को हिन्दीभाषी कहता है, लेकिन अंग्रेज बनने की कोशिश में लगा है। दरसल आम भारतीय भाषायी अभिमान से वंचित है और अंग्रेजी को लेकर कुंठाग्रस्त है जिसका शायद उपचार नहीं है।

  2. India has more English speakers than Great Britain and most of them are polyglots and yet India is unable to provide equal education regardless the medium of instruction through transcription, transliteration and translation. Most world languages have modified their alphabets and use most modern alphabet in writings. Vedic Sanskrit alphabet have been modified to Devanagari and to simplest Gujanagari(Gujarati) script and yet Hindi is taught in a very printing ink wasting non cursive complex script to millions of children in India. Why not adopt a simple script at national level? Indian states can retain their languages, scripts and culture by teaching highly propagated Hindi/Sanskrit in regional scripts to impart technical education through a script converter or in India’s simplest Gujanagari script along with a Roman script to revive Brahmi script.

    अ आ इ ई उ ऊ ऍ ए ऐ ऑ ओ औ अम्‌ अन् अः………..Devanagari
    અ આઇઈઉઊઍ એ ઐ ઑ ઓ ઔ અમ્‌ અન્‌ અઃ……….Gujanagari(Gujarati)
    a ā i ī u ū ă e ai ŏ o au a am ah…………….Roman
    a aa i ii u uu ae e ai aw o au an am ah

    क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण
    ક ખ ગ ઘ ચ છ જ ઝ ટ ઠ ડ ઢ ણ
    ka kha ga gha ca cha ja jha ṭa ṭha ḍa ḍha ṇa

    त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व
    ત થ દ ધ ન પ ફ બ ભ મ ય ર લ વ
    ta tha da dha na pa pha/fa ba bha ma ya ra la va

    श स ष ह ळ क्ष ज्ञ
    શ સ ષ હ ળ ક્ષ જ્ઞ
    sha sa ṣa ha ḽa kṣa gya

    अं आं इं ईं उं ऊं एं ऐं ओं औं अँ आँ इँ ईँ उँ ऊँ एँ ऐँ ओँ औं
    ȧ ā̇ ï ī̇ u̇ ū̇ ė aï ȯ au̇ a̐ ā̐ i̐ ī̐ u̐ ū̐ e̐ ai̐ o̐ au̐……..Roman Diacritics

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