Thursday, March 28, 2024
spot_img
Homeश्रद्धांजलिऐसे कैसे चले गए रोहित सरदाना !

ऐसे कैसे चले गए रोहित सरदाना !

देश के जाने माने युवा पत्रकार और न्यूज एंकर रोहित सरदाना हमारे बीच से अचानक उठकर चल दिए। कोरोना उनको लील गया। वे एक राष्ट्रवादी पत्रकार के रूप में जाने जाते थे। लोग स्तब्ध हैं कि ऐसे कोई भला संसार छोड़कर कोई जाता है क्या।

रोहित सरदाना चले गए। नहीं जाना चाहिए था। बहुत जल्दी चले गए। जाना एक दिन सबको है। आपको, हमको, हर एक को। फिर भी, रोहित के जाने पर दुख इसलिए है, क्योंकि न तो यह उनके जाने की उम्र थी और न ही जाने का वक्त। कोई नहीं जाता इस तरह। खासकर वो तो कभी नहीं जाता, जिसको दुनिया ने इतना प्यार किया हो। पर, रोहित सरदाना फिर भी चले गए। वे 22 सितंबर 1979 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जन्मे और 30 अप्रेल 2021 को कोरोना के क्रूर काल में समा गए। सिर्फ 42 साल, संसार से जाने की उम्र नहीं होती। फिर भी चले गए। दरअसल, विधि जब हमारी जिंदगी की किताब लिखती है, तो मौत का पन्ना भी साथ ही लिखकर भेजती है। विधि ने उनकी जिंदगी की किताब कम पन्नों की लिखी थी। रोहित ने इस रहस्य को जान लिया था। इसीलिए, बहुत समझदारी से उन्होंने आपसे, हमसे और करोड़ॆं लोगों की जिंदगी के पन्नों के आकार के मुकाबले अपनी जिंदगी के आकार को बहुत ज्यादा बड़ा कर लिया, और बहुत कम वक्त में ही उन्होंने बहुत कुछ जी लिया।

पिछले सप्ताह ही में तो उनसे बात हुई थी, और फिर तब भी, जब वे कोराना से संक्रमित हो गए थे। अपन ने उनको सावधानी रखने को कहा था, लेकिन वो तो हम सबको सावधान करके चले गए। सहारा समय के दिनों की हमारी साथी नवजोत ने जब खबर दी, तो उनकी आंखें नम और आवाज भारी थी, शब्द भी नहीं फूट रहे थे। फिर रोहित सरदाना के साथी रहे संदीप सोनवलकर का फोन आया, तो वे भी सन्न होकर लगभग चुप ही रहे। दिल पर बहुत भारी पत्थर रखना होता है किसी अपने की मौत की खबर देने से पहले। दर्द अपने लिए दर्शक नहीं तलाशता, वह तो रास्ता देखता है रिसने का। सो, रोहित सरदाना की साथी एंकर नवजोत ने आजतक पर ऑफ स्क्रीन भी उस दर्द को जीया और ऑन स्क्रीन तो नवजोत खुद भी भर भर कर रोई और पूरे देश को भी रुला ही दिया। मित्र का मृत्युलेख लिखने के लिए कलेजा कोई कितना भी कठोर कर लें, मन रुदन करता है, कलेजा क्रंदन करता है और दिल द्रवित हुए बिना नहीं रहता, दिमाग तो पहले से ही शून्य सा हो जाता है, यह अपन भी अनुभव कर रहे हैं, यो पंक्तियां लिखते लिखते।

रोहित का राजनीतिक ‘दंगल’ आजतक पर देश ही नहीं पूरी दुनिया देखती थी। राजनीति में उनकी रुचि भी गहरी थी और वे जानते थे कि भविष्य की राजनीति की धाराएं किसी दिशा में बहेंगी और इन धाराओं का विलोपन कहां होना है। इसीलिए राष्ट्रवाद प्रत्यक्ष तौर पर उनके पत्रकारीय आचरण में प्रकट था। भले ही साथिंयों ने उन्हें भक्त की उपाधी दे दी थी, लेकिन वे बेलाग थे, इसीलिए उनके राष्ट्रवाद पर उंगली उठानेवालों को जवाब देने के तरीके भी उन्होंने इजाद कर लिए थे। राजनीति की बदलती चाल, परिवर्तित होते चरित्र और बदसूरत होते चेहरे पर चर्चा का उनसे अपना दोस्ताना रिश्ता था। अकसर देर रात आनेवाले उनके हर फोन में बात सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जनअभिप्राय से शुरू होती और अमित शाह पर खत्म। कुछ दिन पहले जब भारत विभाजन की त्रासदी पर उनके पिता रत्नचंद सरदाना का उपन्यास मृत्युंजय बाजार में आया था, तो रोहित से वादा किया था कि अपन खरीद कर पढ़ेंगे। मगर, वादा किया ता कि पापा के सप्रेम भेंट वाले दस्तखत करवाकर कुरियर करेंगे। लेकिन अब तो वह आ नहीं सकती, सो खरीद कर पढ़ना ही अपनी नियती है।

रोहित आकाशवाणी से ईटीवी के रास्ते जी न्यूज होते हुए आजतक पहुंचे थे। छोटे से कस्बे से निकलकर देश में शिखर की यात्रा बहुत मुश्किल होती है, लेकिन हरियाणा के कुरुक्षेत्र से निकले, तो हर मुश्किल आसान करते हुए देश के जाने माने टीवी पत्रकारों के कुरुक्षेत्र में योद्धा बनकर विजयी हुए।पर, सही कहें, तो यह वक्त नहीं था कि रोहित सरदाना हमको छोड़कर चले जाएं, हम उन पर मृत्युलेख लिखें और वे हमको याद आएं। अच्छा होता, रोहित को याद करने का यह वक्त कुछ और सालों बाद आता। क्योंकि असल में तो उनका अपना वक्त, अब उनके हाथ आया था। लेकिन, क्या किया जाए। खुश रहना रोहित, जहां भी रहो, उसी शान से जीना, जैसे हमारे बीच जीये।

(लेखक निरंजन परिहार जाने माने राजनीतिक विश्लेषक हैं)

 

 

 

 

 

Contact – 9821226894

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES

1 COMMENT

  1. मार्मिक, भावपूर्ण श्रद्धांजलि

Comments are closed.

- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार