Friday, March 29, 2024
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हास्य- व्यंग्य कवि हलीम आइना ने  हिंदी कविता को विश्व स्तर पर पहुंचाया

“जीवन भी इक व्यंग्य है, इस को पढ़ ले यार।
जिस ने ख़ुद को पढ़ लिया, उसका बेड़ा पार।।” हास्य- व्यंग्य के इस दोहे के साथ शुरु करते हैं कवि हलीम आइना की साहित्यिक यात्रा की कहानी जिन्होंने हिंदी कविता को विदेशी प्रकाशनों में स्थान दिला कर विश्व स्तर तक पहुंचाया।

गंभीर से गंभीर बात को हास्य- व्यंग्य के माध्यम से इतनी सरलता से कह देना कि वह सीधे दिल पर असर करे और श्रोता हँस – हँस कर लोटपोट हो जाए। ऐसे हैं हास्य – व्यंग के विख्यात कवि हलीम आईना जिन्होंने मनोरंजन से सामाजिक सरोकारों को बहुत ही गहराई से जोड़ा है। 

अपनी कवियों, दोहों, क्षणिकाओ में वे राष्ट्रीय एकता, प्रेम, समता,सद्भाव, भाईचारे की बात करते हैं तो पर्यावरण और अवसाद जैसे सामाजिक सरोकारों से भी आमजन को जोड़ते हैं।

आप राष्ट्र कवि राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त ने कवि धर्म के सिद्धांत पर चलते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि कविता केवल मनोरंजन का कर्म नहीं होना चाहिए वरन उसमें उचित उपदेश का भी मर्म भी होना चाहिए।’ कविता की इस कसौटी पर हलीम आईना खरे उतरते हैं, वे हास्य- व्यंग्य  में उपदेश देने की कला में पूर्णरूप से सिद्धहस्त हैं। 

 आपको 12 वर्ष की उम्र से कविता लिखने का शौक लग गया। उनकी कविताओं में धीरे – धीरे समय के साथ इतनी गहराई आती गई कि वे राष्ट्रीय स्तर पर हास्य- व्यंग्य के कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। उन्हें अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत करने का मौका मिला, उनकी प्रसिद्धि निरंतर बढ़ती गई। उनके दोहे और मुक्त बड़े से बड़े मंच संचालकों की निधि बन गए। 

आपका सम्पूर्ण लेखन राष्ट्र भाषा हिन्दी की साहित्य -सेवा को समर्पित है। आपकी कविताएँ विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हुई हैं , शोध -ग्रंथों में उल्लेखित हुई हैं और सामाजिक चेतना के कार्यक्रमों में सम्मिलित हुयी। यही नहीं चुनाव प्रचार का माध्यम भी बनी हैं। आइए ! देखते हैं सामाजिक संदेश लिए उनकी कविताओं की कुछ बानगी। राष्ट्रीयता की भावना का प्रबल संचार करता एक मुक्तक काफ़ी लोकप्रिय हुआ है ……
ये धरती आन, बान और शान की है
 वफ़ा की, त्याग की, बलिदान की है
 यहाँ रमने को तरसें देवता भी,
 यह धरती मेरे हिन्दुस्तान की है।
** कवि की कम शब्दों में बड़ी बात कहती एक क्षणिका देखिए जो समाज की स्थिति को कितनी खूबसूरती से बयां करती है …….
‘”आज-कल उर्वशी, मेनका व रम्भा भी /रोती है /क्यों कि -/अब तपस्वी की तपस्या /’काम ‘ से नहीं /’दाम ‘से भंग होती है।”

आज की दुनिया में लोग जिस तरह से अपने रंग बदलते हैं उन्होंने गिरगिट को भी पीछे छोड़ दिया है। इस पर देखिए उनका खूबसूरत व्यंग और तेवर……..
रंग पे रंग बदल जा, गिरगिट,
मौक़ा देख फिसल जा गिरगिट।
दल है दलदल, दल का क्या है,
फट से दल को बदल जा गिरगिट ।।
हर आदमी को खुशी देने के हामी आइना लिखते हैं……..
‘अवसादों से मुक्त कर, मानव को भगवान।
हर चेहरा बाँटे सदा, फूलों -सी मुस्कान।।
आपकी “घायल सड़क की गिट्टी, गिरगिट, इलेक्शन आया है… आदि हास्य -व्यंग्य कविताओं को चुनावी प्रचार -प्रसार में भी काम में लिया जाता रहा है।

आपके एक सामयिक दोहे की बानगी देखिए… 
बिन पंखों से नाप ले, धरती अरु अस्मान।
कोई सीमा ही नहीं, कवि जब भरे उड़ान।।  
डॉ. पुरुषोत्तम ‘यक़ीन ‘ (करौली ) लिखते हैं इनकी काव्य -भाषा के लिए मिर्ज़ा ‘ग़ालिब ‘के शब्दों में कहा जा सकता है कि…..
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा,मैंने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है।

वर्ष 2018 में राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से आपके प्रथम हँसो भी, हँसाओ भी… (हास्य -व्यंग्य कविता संग्रह )का प्रकाशन हुआ जिसकी समीक्षाएँ गिरीश पंकज जी की सद्भावना दर्पण सहित..देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित होने से चर्चित रहा। इसी वर्ष किताबगंज प्रकाशन से निशुल्क प्रकाशन योजनान्तर्गत हलीम आईना का दूसरा हास्य -व्यंग्य कविता संग्रह ‘हँसो, मत हँसो!’ प्रकाशित हुआ।
 

 आप इंटर नेशनल पत्रिका ‘निरोग धाम ‘, डायमंड पॉकेट बुक्स की ‘हास्य -व्यंग्य वार्षिकी ‘ में निरंतर प्रकाशित होने वाले राजस्थान के एक मात्र कवि हैं। अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर भी हलीम आईना ने हिंदी कविता के मान को बढ़ाया है। साहित्य कुंज, अनुभूति (कनाडा )पुरवाई (यू. एस. ए.)भारत दर्शन (न्यूजीलैंड )विश्व हिन्दी साहित्य (मॉरीशस ), रचनाकार… आदि में इनकी कविता और समीक्षाएं प्रकाशित हुई हैं। नुक्कड़ और हमलोग ब्लॉग में भी आपको स्थान मिला। 

  
 अहिन्दी भाषा क्षेत्र की हैदराबाद से प्रकाशित ‘गोलकोंडा दर्पण ‘ में भी आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाशित लेख भी किसी सम्मान से कम नहीं है। आपको हरिशंकर परसाई राष्ट्रीय शिखर सम्मान, अन्तर राष्ट्रीय सृजनकार, राजस्थान सरकार के पर्यावरण विभाग, अखिल भारतीय सामाजिक चेतना कविता प्रतियोगिता सम्मान, साहित्य भास्कर, आदि सम्मानों से नवाजा गया है। 

परिचय 
आपका जन्म 6 जून 1966 को सकतपुरा, कोटा के प्रतिष्ठित सूफी परिवार में हुआ। आपने एम. ए. (हिन्दी ), बी. एड. की शिक्षा प्राप्त की और फिल्म कथा -पटकथा लेखन पाठ्यक्रम में भी कुशलता प्राप्ति की।
आप कवि होने के साथ – साथ मंच संचालक और छायाकार भी हैं। आप अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं में अपनी निस्वार्थ सेवाएँ देते रहे हैं। अंसारी समाज की राष्ट्रीय स्मारिका ‘मोमिन इण्डिया ‘व राज्य स्तरीय स्मारिका ‘अंसारी दर्पण ‘का आपने सम्पादन किया है। 

इनके बारे में वरिष्ठ व्यंग्यकार, पत्रकार, कवि, संपादक श्री गिरीश पंकज द्वारा लिखी टिपण्णी दृष्टव्य है “कवि आईना ने अराजक समय को चुनौती दी है और एक बेहतर दुनिया को रचने की कोशिश में ख़ुद को समर्पित कर दिया है, हँसो भी, हँसाओ भी… हिन्दी का ऐसा काव्य संग्रह होगा जिस में पाठकों को एक ही जगह अनेक विधाओं का आस्वाद मिलेगा।”
संपर्क सूत्र मो.+91 86194 4241

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