Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeहिन्दी जगतहिंदी के नाम पर पाखंड

हिंदी के नाम पर पाखंड

ताजा खबर यह है कि विश्व हिंदी सम्मेलन का 11 वां अधिवेशन अब मॉरिशस में होगा। मोरिशस की शिक्षा मंत्री लीलादेवी दोखुन ने सम्मेलन की वेबसाइट का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि ‘आज हिंदी की हालत पानी में जूझते हुए जहाज की तरह हो गई है।’ अच्छा हुआ कि उन्होंने डूबते हुए जहाज नहीं कहा। पिछले 70 सालों में यदि हमारी सरकारों का वश चलता तो वे हिंदी के इस जहाज को डुबाकर ही दम लेतीं।

स्वतंत्र भारत की सरकारों को कौन चलाता रहा है? नौकरशाह लोग ! ये ही लोग असली शाह हैं। हमारे नेता तो इनके नौकर हैं। हमारे नेता लोग शपथ लेने के बाद दावा करते हैं कि वे जन-सेवक हैं, प्रधान जन-सेवक! यदि सचमुच जनता उनकी मालिक है तो उनसे कोई पूछे कि तुम शासन किसकी जुबान में चला रहे हो ? जनता की जुबान में ? या अपने असली मालिकों, नौकरशाहों की जुबान में ? आज भी देश की सरकारों, अदालतों और शिक्षा-संस्थाओं के सारे महत्वपूर्ण काम अंग्रेजी में होते हैं। संसद में बहसें हिंदी में भी होती हैं, क्योंकि हमारे ज्यादातर सांसद अंग्रेजी धाराप्रवाह नहीं बोल सकते और उनके ज्यादातर मतदाता अंग्रेजी नहीं समझते। लेकिन संसद के सारे कानून अंग्रेजी में ही बनते हैं।

हिंदी के नाम पर बस पाखंड चलता रहता है। 43 साल पहले जब पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में हुआ था, तब मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ में संपादकीय लिखा था- ‘हिंदी मेलाः आगे क्या?’ उस संपादकीय पर देश में बड़ी बहस चल पड़ी थी लेकिन जो सवाल मैंने तब उठाए थे, वे आज भी मुंह बाए खड़े हुए हैं। हर विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रस्ताव पारित होता है कि हिंदी को संयुक्तराष्ट्र की भाषा बनाओ। वह राष्ट्र की भाषा तो अभी तक बनी नहीं और आप चले, उसे संयुक्तराष्ट्र की भाषा बनाने ! घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने !!

इस सम्मेलन पर हमारे विदेश मंत्रालय के करोड़ों रु. हर बार खर्च हो जाते हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज स्वयं हिंदी की अनुपम वक्ता हैं और मेरे साथ उन्होंने हिंदी आंदोलनों में कई बार सक्रिय भूमिका निभाई है लेकिन वे क्या कर सकती है ? हिंदी के प्रति उनकी निष्ठा निष्कंप है लेकिन वे सरकार की नीति-निर्माता नहीं हैं। वे सरकार नहीं चला रही हैं। सरकार की सही भाषा नीति तभी बनेगी, जब जनता का जबर्दस्त दबाव पड़ेगा। लोकतंत्र की सरकारें गन्ने की तरह होती हैं। वे खूब रस देती हैं, बशर्ते कि उन्हें कोई कसकर निचोड़े, मरोड़े, दबाए, मसले, कुचले ! यह काम आज कौन करेगा ?

साभार- https://www.nayaindia.com से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार