Wednesday, April 24, 2024
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आजकल कोई न्यूज चैनल तटस्थ नहीं है, पत्रकारिता बुरे दौर से गुजर रही है: सुधीर चौधरी

जी न्‍यूज (Zee News) को पिछले दिनों कई विवादों का सामना करना पड़ा है। इसकी शुरुआत जेएनयू प्रकरण से हुई थी और बाद में एनआईटी (NIT) मुद्दे तक विवाद इस चैनल के साथ लगे रहे। इस दौरान चैनल की खबरों को पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित बताया जाता रहा। यहां तक कि दिल्‍ली सरकार ने भी जेएनयू मुद्दे पर कवरेज को लेकर इस चैनल के खिलाफ केस दर्ज करा दिया। जबकि चैनल ने इन सभी आरोपों का डटकर सामना किया है और इन सबको उसे बदनाम करने की साजिश करार दिया है।

हमारे साथ एक खास बातचीत में जी न्‍यूज के एडिटर सुधीर चौधरी ने इन विवादों पर खुलकर अपनी बात रखी है और यह भी बताया है कि इन दिनों पत्रकारिता के पेशे में किस तरह गिरावट आ गई है।

प्रस्‍तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश

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आपको ‘जी’, ‘सहारा’, ‘लाइव इंडिया’ और ‘इंडिया टीवी’ जैसे विभिन्‍न समाचार प्रतिष्‍ठानों में काम करने का अनुभव है, ऐसे में आप अपने अब तक के सफर के बारे में क्‍या कहेंगे?

विभिन्‍न समाचार प्रतिष्‍ठानों में मेरी अब तक की यात्रा काफी रोचक रही है। मैंने हमेशाचैनलों की शुरुआत से ही इनमें काम किया है। ‘सहारा समय’ की लॉन्चिंग के समय मैंने ‘जी’ छोड़ दिया था। ‘सहारा समय’ की लॉन्चिंग के बाद मैं वर्ष 2008 में ‘इंडिया टीवी’ को लॉन्‍च कराने के लिए वहां चला गया था। जब ‘लाइव इंडिया’ शुरू हुआ था, तब मैंने बिना इसके फ्यूचर के बारे में सोचे रिस्‍क उठाकर इसे जॉइन कर लिया था। जब मैंने ‘जी न्‍यूज’ को 2012 में दोबारा जॉइन किया तो यह प्रमुख चैनल बन चुका था। मेरे दिमाग में प्‍लान आया कि मैं ‘जी न्‍यूज’ की दिशा में थोड़ा बदलाव कर दूं और पिछले चार सालों में इसमें न्‍यूज परोसने के तरीके में काफी आधारभूत बदलाव हो चुके हैं।

आजकल कई न्‍यूज प्रोग्राम चल रहे हैं, ऐसे में उसी फॉर्मेट में आपका शो ‘डीएनए’ (DNA) उन सबके किस तरह अलग है?

डीएनए काफी इनफोरमेटिव (सूचनात्‍मक) है। इसमें काफी तथ्‍यात्‍मक जानकारी रहती है और यह किसी भी विषय पर काफी गहराई से जानकारी मुहैया कराता है, जिसकी दर्शक इससे अपेक्षा करते हैं जबकि अन्‍य न्‍यूज चैनलों में यह कमी देखने को मिलती है। हमारा प्रयास रहता है कि हम दर्शकों को एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट दिखाएं जिसमें काफी सूचनापरक और बेहतर कंटेंट हो। इसके लिए काफी रिसर्च की जाती है और विभिन्‍न स्‍तरों पर तमाम अपडेट भी इसमें शामिल किए जाते हैं। हम कहते सकते हैं कि किसी भी बड़ी खबर का यह ‘डीएनए टेस्‍ट’ करता है, जिसके बारे में लोग जानना चाहते हैं। यही कारण है कि यह देश के लोगों का पसंदीदा शो बना हुआ है।

कुछ लोगों का कहना है कि आपका शो न्‍यूज बुलेटिन से ज्‍यादा सामान्‍य ज्ञान का शो लगता है, इस बारे में आपका क्‍या कहना है और ऐसे लोगों को आप किस तरह जवाब देते हैं?

ऐसे सभी न्‍यूज एडिटर्स और पत्रकारों को पत्रकारिता के स्‍कूल में दोबारा जाने की जरूरत है। यदि हम न्‍यूज की परिभाषा की बात करें तो यह दूसरों के लिए अलग है और मेरे लिए अलग। करीब 99 प्रतिशत मीडिया सोचती है कि न्‍यूज हमेशा संसद, सु्प्रीम कोर्ट, नॉर्थ ब्‍लॉक और साउथ ब्‍लॉक से आती है। ऐसे लोगों के लिए न्‍यूज का दायरा सिर्फ चार-पांच किलोमीटर के बीच ही घूमता रहता है। लेकिन मैं न्‍यूज के लिए इस दायरे के चक्‍कर कभी नहीं लगाता हूं।

मैं कुछ टेलिविजन एक्‍सपर्ट से मिला था जिन्‍होंने मुझे सलाह दी कि मैं 25 साल से ऊपर के आयुवर्ग पर फोकस करूं क्‍योंकि ज्‍यादातर महिलाएं और युवा न्‍यूज नहीं देखते हैं। मैंने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और ऐसा शो बनाना चाहता था जो सभी उम्र के लोगों को पसंद आए। मेरा यह प्रयास कामयाब रहा और आज चाहे वह स्‍कूली बच्‍चा हो अथवा महिलाएं, सभी ‘डीएनए’ देखते हैं।

आजकल यह धारणा तेजी से बनती जा रही ह कि ‘जी न्‍यूज’ एक खास राजनीतिक दल से प्रेरित है। इस बारे में आपका क्‍या कहना है?

यदि हम ‘Zee News’ की बात करें तो यह राष्‍ट्रवादी एडिटोरियल लाइन पर काम करता है। हम अपने आप को एक राष्‍ट्रीय चैनल के रूप में दिखा रहे हैं। ऐसे में लोग राष्‍ट्रवाद का मतलब भाजपा से जुड़ा होना मानते हैं। उदाहरण के लिए- यदि आप कहते हैं कि ‘I love India’ तो लोग यह जरूर कहेंगे कि आप भाजपा के समर्थक हैं और यदि आप यह कहते हैं कि यह देश किसी भी व्‍यक्ति के रहने के लिए सही जगह नहीं है तो आपके ऊपर सेक्‍यूलर होने का ठप्‍पा लग जाता है। हम न तो भाजपा और न ही कांग्रेस से जुड़े हैं, हम तो सिर्फ राष्‍ट्रीय स्‍तर पर देश के लोगों के नजरिये को दिखाते हैं, जो बड़े स्‍तर पर लोगों की भावना से जुड़ा हुआ होता है।

अभी आपने कहा कि आपका चैनल एक राष्‍ट्रवादी (nationalist) चैनल है। इसका मतलब यह तो नहीं कि आप तटस्‍थ (neutral) होने में विश्‍वास
नहीं रखते हैं

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आज की तारीख में कोई भी चैनल तटस्‍थ (neutral) नहीं है। मीडिया आजकल कई धड़ों में बंट चुका है और जेएनयू केस में आपने यह देखा भी होगा। मैं सही बात कह रहा हूं कि कोई भी सच्‍ची बात नहीं बोल रहा है। हम धारा 370 और इसके लागू होने के बारे में बात करते हैं और हम यह सिर्फ इसलिए नहीं कह रहे हैं कि धारा 370 का मामला भाजपा के घोषणा पत्र में है। हम सही सवाल उठाते हैं जबकि आज अधिकांश मीडिया किसी एक अथवा कई पार्टियों में बंट चुकी है।

अपने पूर्व कर्मचारी विश्‍व दीपक के बारे में आपका क्‍या कहना है जिसने जेएनयू के विवाद में ‘जी न्‍यूज’ पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग करने का आरोप लगाया था?

हमारी कंपनी में 2200 कर्मचारी हैं और यदि उनमें से कोई एक व्‍यक्ति खुद को ‘हीरो’ दिखाने के लिए इस तरह की बात कहता है तो उसका कोई मतलब नहीं है जबकि 2199 कर्मचारी हमारे साथ खड़े थे और उनका कंपनी और इस मामले में हमारी कवरेज पर पूरा भरोसा था। ऐसे में आपको किसकी बात सुननी चाहिए ?

विश्‍व दीपक का इस्‍तीफा, जेएनयू के विडियो में छेड़छाड़ का आरोप और अब दिल्‍ली सरकार द्वारा जी न्‍यूज के खिलाफ की गई शिकायत, क्‍या आपको लगता है कि यह जी न्‍यूज की छवि को खराब करने के लिए किया जा रहा है ?

इन सबसे जी न्‍यूज की छवि को कोई खतरा नहीं होने वाला है। जब हमने इस रास्‍ते पर चलने का निर्णय लिया है तो हमें परेशानी तो उठानी पड़ेंगी और जिन राजनीतिक दलों अथवा नेताओं को हम कवर करते हैं और उनके खिलाफ खबरें दिखाते हैं तो वे भी हमें किसी न किसी तरह परेशान करने की कोशिश करेंगे। अभी उन्‍होंने इसके लिए विश्‍व दीपक और हमारे खिलाफ शिकायत का सहारा लिया है। हमें इस सबकी आदत पड़ चुकी है। आप एक बात सोचें कि यह सब सिर्फ हमारे साथ ही क्‍यों हो रहा है और दूसरे चैनलों के साथ इस तरह कुछ क्‍यों नहीं हो रहा है। सीधी सी बात है कि वे काफी सुविधाजनक तरीके से काम करते हैं और कोई भी परेशान नहीं होता है।

क्‍या आपको लगता है कि समकालीन पत्रकारिता का स्‍वरूप बिगड़ चुका है?

हां, वाकई में इसका स्‍वरूप काफी बिगड़ गया है। आजकल इस पेशे से जुड़े अधिकांश लोग अपनी भूमिका का ठीक तरह से निर्वहन नहीं कर रहे हैं। इनमें से कई तो किसी न किसी राजीनीतिक दल को समर्थन कर रहे हैं और वे सत्‍ता के भूखे बन चुके हैं। लगभग सभी बड़े पत्रकार और संपादक खुद को एडवाइजर्स के रूप में देखना चाहते हैं। उनके कॉलम से यह आप साफ रूप से देख सकते हैं। ऐसे लोग न तो पाठकों के लिए लिख रहे हैं और इनमें से कोई भी राष्‍ट्र निर्माण पर फोकस नहीं कर रहा है।

यहां हम राजनीति, भ्रष्‍टाचार और पत्रकारिता की बात कर रहे हैं। इन सभी का स्‍वरूप खराब हो चुका है। पर हम मीडिया पर फोकस करें, तो क्‍या हम इसे पुराने स्‍वरूप में वापस ला सकते हैं?

आजादी के समय से हमारे राजनेता और मीडिया दोनों फेल हो चुके हैं। राजनेता मीडिया को अपने इशारों पर नचा रहे हैं। ‍आप अखबारों अथवा न्‍यूज चैनलों से जुड़े प्रसिद्ध लोगों की संपत्ति और धन को देखेंगे तो आपको इस बारे काफी कुछ जानने को मिलेगा। कोई भी लातूर और वास्‍तविक मुद्दों के बारे में बात करता है। मीडिया आजकल ‘लुटियंस जोन’ को कवर करने की पत्रकारिता में व्‍यस्‍त है और मंत्री से उनके कार्यालय में एक कप चाय पीने के साथ ही पत्रकारों की मीटिंग समाप्‍त हो जाती है। पत्रकारों के साथ लोग सेल्‍फी खिंचवाने के लिए आते हैं और वापस चले जाते हैं। इस तरह के पत्रकारों को मैं ‘डिजायनर रिपोर्टर्स’ (Designer Reporters) कहकर बुलाता हूं और उन्‍होंने अपना शो चलाने के लिए इस तरह के छोटे-छोटे बुटीक खोल रखे हैं।

‘जी मीडिया’ में सभी वरिष्‍ठ एडिटर्स को इस महीने से अपनी संपत्ति का ब्‍योरा देना है और सिस्‍टम में पारदर्शिता लाने के लिए हम इसकी शुरुआत अपने आर्गनाइजेशन से कर रहे हैं।

क्‍या आप मानते हैं कि मीडिया भी सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर है?

आपको सरकारी विज्ञापनों से मीडिया को आजाद करना होगा। चैनल और अखबार को सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यदि आप सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर रहते हैं तो आप निष्‍पक्ष नहीं रह सकते हैं क्‍योंकि आपको विज्ञापनों की जरूरत तो पड़़ती ही है। हमने दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिले विज्ञापन रिजेक्‍ट कर दिए थे क्‍योंकि वे हमारी संपादकीय नीति में फिट नहीं बैठ रहे थे।

आजकल की पत्रकारित में सोशल मीडिया किस तरह की भूमिका निभा रही है

आजकल समय काफी बदल गया है। अब पुराने जमाने जैसी बात नहीं है जब लोग सुबह अखबार आने का इंतजार करते थे अथवा शाम को न्‍यूज के समय टेलिविजन के सामने बैठ जाते थे। आजकल यह सभी चीजें काफी आसान हो गई हैं। अब हम इसे एक शब्‍द ‘इंगेज’ कह सकते हैं जिसमें हमारा ज्ञान, विशेषता, पहुंच और न जाने क्‍या क्‍या शामिल है। सोशल मीडिया के द्वारा इस क्षेत्र में काफी बदलाव आ रहा है। लोग आजकल रियल टाइम इनफोर्मेशन चाहते हैं। वह भी उसी तरह खबरें हासिल करना चाहते हैं,‍ जिस तरह पत्रकार अथवा मीडिया संस्‍थान हासिल करते हैं। इसलिए स्‍टोरी पूरी होने तक उस पर बैठकर काम करना काफी रिस्‍की है क्‍योंकि प्रतिद्वंद्वी उसे पहले दिखा सकता है। आज के समय में यह जरूरी है कि जैसे ही इनफोर्मेशन मिले, सबसे पहले ऑडियंस को थोड़ी सूचना दे दी जाए। आजकल कोई भी मीडिया प्रतिष्‍ठान स्‍टोरी पूरी होने का इंतजार नहीं करना चाहता है। आजकल ट्विटर इस्‍तेमाल करने वाले, ब्‍लॉगर्स और सिटीजन जर्नलिस्‍ट न्‍यूज को ब्रेक करते हैं। आज के समय में न्‍यूज और इसे देने वालों के पास कई अवसर हैं लेकिन इसमें नुकसान की भी गुंजाइश रहती है, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।

‘जी मीडिया ग्रुप’ के लिए आपका क्‍या विजन है, आज से पांच साल बाद आप इसे कहां पर देखना चाहते हैं

टीवी काफी गतिशील (dynamic) माध्‍यम है और न्‍यूज भी काफी गतिशील है। हम देखते हैं कि जी मीडिया अपने दर्शकों को बेहतर कंटेंट और उनके काम का उपलब्‍ध कराने की दिशा में काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। लोगों की जिंदगी में काम आने वाली खबरों को जरिए हम ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं।

भारतीय टेलिविजन में न्‍यूज कवरेज के लिए किस तरह का रास्‍ता अख्तियार किया जाना चाहिए?

निश्चित रूप से ग्राउंड जीरो (Ground zero) रिपोर्टिंग होनी चाहिए। इसके अलावा सक्रिय (Proactive) और प्रतिक्रियाशील (Reactive) न्‍यूज होनी चाहिए जो लोगों को पॉजिटिवली और एक्‍स्‍ट्रा इंफोर्मेशन दे और लोगों की दिनचर्या में काम आ सके। मेरा मानना है कि इंडियन टेलिविजन में न्‍यूज कवरेज के लिए इसी तरह का रास्‍ता अख्तियार किया जाना चाहिए।

साभार-samachar4media.com से

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