Friday, March 29, 2024
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प्रणब मुखर्जी को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए

प्रणब मुखर्जी विलक्षण एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे| वे भारत की उदार, सहिष्णु एवं सर्वसमावेशी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे| वे राजनीति के चाणक्य ही नहीं, अजातशत्रु भी थे| अपने दल में तो वे संकटमोचक की भूमिका में रहे ही, अनेक ऐसा भी अवसर आया जब उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों को प्रश्रय एवं प्राथमिकता दी| प्रणव बाबू ने राजनीति में गरिमा एवं गंभीरता की स्थापना की| वे विवाद से संवाद और संवाद से समाधान की दिशा में आजीवन सक्रिय एवं सचेष्ट रहे| वे सही अर्थों में एक दूरदर्शी राजनेता, कुशल प्रशासक, प्रखर चिंतक, उत्कृष्ट लेखक, वैश्विक राजनयिक, सुविज्ञ अर्थवेत्ता एवं प्रकांड विद्वान थे| उनका सुदीर्घ राजनीतिक जीवन गौरवशाली एवं उपलब्धिपूर्ण रहा| विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी सँभालते हुए अपनी प्रभावी कार्यशैली से उन्होंने न केवल सत्ता-पक्ष और विपक्ष को गहराई से प्रभावित किया, अपितु देश-दुनिया की तत्कालीन एवं परवर्ती राजनीति पर एक अमिट-अतुल्य छाप छोड़ी| दलों की दीवारों और देश की सीमाओं से परे उनकी सार्वजनीन लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता थी| उनके असामयिक निधन पर देश-विदेश के गणमान्य व्यक्तियों एवं राष्ट्राध्यक्षों से प्राप्त भावपूर्ण शोक-संदेश इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं|

वे चलते-फिरते इनसाक्लोपीडिया थे| अध्ययनशीलता और मितभाषिता उनकी दुर्लभ एवं उल्लेखनीय विशेषता थी| वे अपने साथ हमेशा भारतीय संविधान की एक प्रति रखते थे और यात्राओं आदि के दौरान जब भी उन्हें अवसर मिलता, वे उसकी विभिन्न धाराओं-उपबंधों-अध्यायों-व्याख्याओं का चिंतन-मनन-अध्ययन- विश्लेषण करते थे| वे संसद के पुस्तकालय का सर्वाधिक उपयोग करने वाले सांसदों में से एक माने जाते थे| दलगत हितों एवं निष्ठा से परे वे विभिन्न जटिल एवं नीतिगत मुद्दों पर सर्वसुलभ रहते थे और हर दल के नेताओं को उनके व्यापक अनुभव एवं विशद ज्ञान का लाभ एवं मार्गदर्शन मिलता था| संसदीय कार्यप्रणाली एवं परंपराओं के वे अद्भुत ज्ञाता एवं जानकार थे| वे राजनीति एवं राजनीतिक दलों के लिए सदैव अपरिहार्य एवं प्रासंगिक बने रहे| राजनीति के विद्यार्थियों के लिए वे आदर्श एवं प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं|

राजनीतिक ही नहीं, बल्कि अन्यान्य मुद्दों पर भी उनकी जानकारियाँ चमत्कृत करती थीं| वित्तीय मामलों में तो उनकी विशेषज्ञता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि देश एवं दुनिया की शायद ही ऐसी कोई मान्य एवं प्रतिष्ठित संस्था हो, प्रणब दा जिससे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़े न रहे हों| सत्तर के दशक में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के गठन में उनकी अग्रणी भूमिका रही है| प्रणब दा ने देश में आर्थिक एवं प्रशासनिक सुधारों को गति दी| उदारीकरण एवं गैट समझौते को लागू करने में उनकी महती भूमिका रही| यूपीए सरकार के दौरान प्रमुख नीतिगत सुधारों का उन्हें सूत्रधार माना जाता रहा है| प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल आदि से जुड़े सभी अहम मुद्दों एवं परियोजनाओं के वे प्रमुख पहलकर्त्ता एवं प्रणेता रहे| उनकी कार्यकुशलता एवं दक्षता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यूपीए सरकार में 95 अधिकार प्राप्त मंत्रिमंडल समूहों के वे अध्यक्ष रहे| प्रतिभा को पहचानने एवं आगे बढ़ाने में उनका कोई सानी नहीं था| वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गवर्नर उन्होंने ही बनाया था| राष्ट्रपति भवन को उन्होंने आम जन के लिए सुलभ बनाया| उनकी मौलिकता एवं प्रगतिशीलता का परिचय देशवासियों को तब भी मिला, जब उन्होंने राष्ट्रपति पदनाम के साथ प्रचलित ‘महामहिम’ विशेषण को औपनिवेशिक चलन बताते हुए प्रयोग में न लाने की सार्वजनिक अपील की और उसे प्रोटोकॉल से हटाया|

एक सामान्य राजनेता से लेकर देश के सर्वोच्च पद तक का उनका सफ़र असाधारण रहा| उसमें उपलब्धियों का गौरव-भंडार था तो संघर्षों का पारावार भी| परंतु संघर्षों की आग में तपकर वे हर बार कुंदन की भाँति बाहर निकले| एक ऐसा भी दौर आया जब उन्हें अपने ही दल के भीतर उपेक्षा एवं आलोचनाओं का शिकार बनना पड़ा| राजीव गाँधी सरकार में वे दलगत गुटबाज़ी के शिकार हुए| उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से हटाकर प्रदेश काँग्रेस समिति का कार्यभार सौंप पश्चिम बंगाल भेज दिया गया| उनके सुदीर्घ राजनीतिक अनुभव, काँग्रेस कार्यकर्त्ताओं के साथ अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक सांगठनिक संपर्क एवं विभिन्न राजनीतिक दलों व राजनीतिज्ञों के साथ बेहतर संबंध के आधार पर 2004 में जब पूरा देश उन्हें भावी प्रधानमंत्री के स्वाभाविक दावेदार के रूप में देख रहा था, तब उन्हें राजनीति के लिए सर्वथा नवीन एवं कनिष्ठ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में मंत्रीपद से संतुष्ट होना पड़ा| परंतु इन सभी उतार-चढ़ावों के मध्य कभी उनके व्यक्तित्व में विशेष विचलन एवं असंतुलन नहीं देखा गया| उन्होंने उन विषम परिस्थितियों में भी अपने सार्वजनिक व्यवहार एवं वाणी में ऐसा संयम, संतुलन, अनुशासन एवं शिष्टाचार बनाए रखा, जिसका अन्य कोई दृष्टांत दुर्लभ है| प्रायः शीर्ष पदों पर भिन्न विचारधारा एवं दलों के व्यक्ति के सत्तासीन होने पर टकराव की स्थिति निर्मित होती रहती है| पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके इतने मधुर संबंध रहे कि सार्वजनिक मंचों से दोनों एक-दूसरे के व्यक्तित्व एवं गुणों से प्रेरित-प्रभावित होने का संदेश देते रहे| संसदीय राजनीति में उनका यह आचरण अपेक्षित एवं अनुकरणीय है|

देश-हित के मुद्दों पर अनेक अवसरों पर उन्होंने दलगत राजनीति एवं विचारधारा से ऊपर उठकर चिंतन किया और तदनुकूल निर्णय लिया| उन्होंने याकूब मेनन, अफ़जल गुरु और अज़मल क़साब की दया-याचिका को खारिज़ कर राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता नहीं करने का स्पष्ट एवं दो-टूक संदेश दिया| असहिष्णुता के नाम पर किए जाने वाले पुरस्कारों की वापसी को उन्होंने अनुचित बताया और राष्ट्रीय पुरस्कारों के सम्मान एवं संरक्षण की बात कही| संसद में वे सार्थक एवं परिणामदायी परिचर्चाओं को प्रोत्साहित करते रहे और आए दिन होने वाले शोर-शराबे, हल्ला-हंगामे पर अपनी चिंता एवं क्षोभ व्यक्त करते थे|

उन्होंने अपने दृढ़, स्वतंत्र एवं निर्भीक व्यक्तित्व का परिचय उस समय भी दिया जब उन पर संघ के कार्यक्रम में न जाने का चौतरफ़ा दबाव बनाया गया| पर वे उस कार्यक्रम में गए और मतभेद से अधिक संवाद, सहमति एवं समन्वय को महत्त्व देने वाली भारतीय चिंतनधारा का प्रतिनिधित्व किया| मतभिन्नता के कारण मनभिन्नता को उन्होंने कभी प्रश्रय नहीं दिया| उनके लिए राजनीतिक आग्रह अपनी जगह था और सबके प्रति आत्मीय भाव अपनी..|

अंततः निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि वे संवाद एवं सहमति के सच्चे पैरोकार थे| असहमति के सुरों को साधना उन्हें बख़ूबी आता था| उनकी उपस्थिति आज के इस बड़बोले दौर में मौन-मधुर संगीत-सी सुखद एवं प्रीतिकर लगती थी| भारतीय राजनीति के वे एक ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र रहे, जिसकी चमक बीतते समय के साथ-साथ और बढ़ती जाएगी| ”तू-तू, मैं-मैं” के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में प्रणब दा का जाना एक स्वस्थ एवं गरिमापूर्ण राजनीतिक परंपरा के स्वर्णिम युग का अवसान है| यह सामाजिक-सार्वजनिक-राजनीतिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है|

प्रणय कुमार,
[email protected]
9588225950

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