Saturday, April 20, 2024
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दिल पे पत्थर रख कर मुँह पे मास्क रख लिया

बड़े दिनों से मुँह में दर्द हो रहा था । समझ नहीं आ रहा था कि दर्द आखिर क्यों हो रहा है। डॉक्टर के पास जाने की तैयारी में ही थी कि पति से किसी बात पे झगड़ा हुआ , बहस हुई तो मैने गुस्से मुँह मटका दिया । फिर क्या .. मुझे मुँह के दर्द से थोड़ा आराम सा मिला । फिर कई बार मुँह मटकाया तो काफी आराम आया। इससे समझ आया कि मुँह मटकाना कितना जरुरी है ।

वैसे तो मुँह मटकाने के काफी अवसर , सुअवसर व दुरअवसर मिलते हैं । लेकिन अभी कुछ दिनों से ऐसा नही हो पा रहा था । इस वजह से आप सब भी वाक़िफ़ होंगे । अरे नहीं समझे क्या ? वही जो चांई चुई लोगों ने चमगादड़ खा कर फैलाया है .. । इसने बहुत दिक़्क़तें बढा दीं लेकिन सबसे ज़्यादा जो दिक़्क़त बढाई है वो है मुँह पे मास्क चढाने की ।सो अब बड़ी मुश्किलें आ खड़ी हुईं हैं । लोगों को देख मुस्कुराना बंद हो गया । तो महिलाओं के रंग -बिरंगें होंठ ढक गये । तो वहीं लोगो एक बड़ा नुकसान हुआ कि मुँह मटकाने का अवसर चला गया ।

कोई कितनी मुश्किल से आंखे मटकाना, मुँह मटकाना – बिचकाना सीखता है इन चांई चुइयों को क्या मालूम । इनके ना आंखे जैसी आंखें होती हैं ना मुँह जैसा , मुँह होता है । इतना ही नहीं सौंदर्य प्रसाधन कम्पनियों का बीते साल में कितना नुकसान हुआ होगा ये अनुमान लगा पाना भी मुश्किल है ।ये मुआ मास्क की वजह से ना मेकअप होता ना कुछ । इससे आँखों को भी दुख पहुंचा लेकिन दूसरे टाइप का । आँखों का कहना है मुँह तो दिखाने लायक नहीं रहे मतलब मास्क की वजह से . लेकिन हम तो बेचारी दो जोड़ी
दिख रही हैं ना। फिर हम पर मेकअप क्यों नही किया जाता । और तो और लोगो ने हमको मटकाना भी छोड़ दिया ।

अब आँखों को क्या पता कि मास्क लगा कर जब साँस लेने के ही लाले पड़ जाएंगें तो कोई आँखें कैसे सजाएगा संवारेंगा और मटकाएगा। इस मास्क की वजह से “मुंह बिचकाना” “सड़ा सा मुँह बनाना” “मन ही मन में बड़बड़ाना “ जैसे वाक्यों पे घोर संकट आ खड़ा हुआ है । लेकिन किसी का इस ओर खयाल तक नहीं जाता है ।

संकट की बात हो रही है तो एक और संकट याद आया । एक दिन मेरी सहकर्मी मेरे पास से निकली मैने आदतन उसको देख मुस्कुरा दिया लेकिन दूसरे ही पल मुझे याद आया मै इसको देख मुस्कुरा क्यों रही हूं कौन सा इसको मेरा मुँह दिख रहा है मैं चाहूं तो बल्कि चाहूंगी ही कि अंदर ही अंदर उसको देख मुँह मटका लूं लेकिन दुख की बात है कि मेरे इस मुँह मटकाने का असर उस पे कैसे होगा ।अत: इस क्रिया में अपनी ऊर्जा करना अपने मोटापे से बेइमानी करना होगा ।

ऊर्जा की बात आयी तो एक और घटना याद आयी .. एक दिन पेड़ के नीचे महात्मा बुद्ध जैसे बैठी थी। उनसे थोड़ी सी मेरी स्थिति अलग थी । बुद्ध ज्ञान लेने बैठे थे मैं अल्पज्ञानी बच्चों को ज्ञान देने बैठी थी । मेरा लेना देना मुख्य मुद्दा नहीं । लेना देना तो नेताओ का मुख्य मुद्दा होता है ।मेरा मुख्य मुद्दा है वहां पर घटी घटना से है । तो हुआ यूं कि पेड़ के नीचे प्रकृति द्वारा बनाये तमाम चीजों में से एक अत्यंत छोटा जीव चींटी मेरे ऊपर टपक पड़ी । जब वह टपकी और टपककर मेरे हांथ में रेंगने लगी तो मैने उसे फूंक मार कर भगाने का ,गिराने का प्रयास किया लेकिन अत्यधिक ऊर्जा लगाकर ,फूंक कर भी मैं उसको भगाने में जब असमर्थ रही तो मेरा ध्यान मेरे चंद्र से मुख पे लगाए गये मुस्के ( मास्क) पे गया। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि खा खा कर इकठ्ठी की हुई मेरी अत्यंत कीमती ऊर्जा कहां ज़ाया हो रही थी । फिर मुस्के को हटाया और तत्काल प्रभाव से चीटी को फूंक मार उसको मेरे हाँथ की सतह से देखते ही देखते बेदखल कर दिया ।

अंतत: सभी बातों का सार है कि बहुत सारी दिक़्क़तों के बीच मैनें दिल पे पत्थर रखकर मुँह पे मास्क रख लिया ….और मास्क के टास्क का मज़ा चख लिया ।

-शशि पाण्डेय

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