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स्व. बलराज मधोकः जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी

(जन्म 25-02-1920 निधन 02-05-2016)
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भारतीय राजनीति के वर्तमान को समझने के लिए इतिहास की मदद ले तो उसमें कई ऐसे पृष्ठ मिलते हैं जिन पर धूल जम गई है। ऐसा ही एक पृष्ठ है प्रो. बलराम मधोक। मुख्यधारा को दिशा देने वाले भी कभी कभी गुमनामी की गुफा में खो जाते हैं इसका उदाहरण है भारतीय जनसंघ के पूर्व सचिव प्रो. बलराज मधोक। जिस कश्मीर समस्या से हम आज भी जूझ रहे हैं उसको प्रारम्भ में ही नष्ट करने का प्रयास प्रो. मधोक ने किया था। तत्कालीन शासकों ने श्री मधोक की बात नहीं सुनी। भारत देश की विशाल काया पर कश्मीर समस्या का वह छोटा सा घाव आज नासूर बन गया है। अकल्पनीय जन-धन की हानि होने पर भी ठीक होने का कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा है।

जीवन परिचय
बलराज मधोक का जन्म जम्मू कश्मीर में सिन्धु नदी के किनारे बसे अस्कार्दू (वर्तमान बल्टीस्थान) स्थान पर हुआ था। उस समय अस्कार्दू लद्दाख प्रान्त की शीतकालीन राजधानी हुआ करता था। पिता जगन्नाथ मधोक पंजाब के गुजरांवाला जिले के जालेन गांव के रहने वाले थे। सरकारी नौकरी जगन्नाथ जी को अस्कार्दू ले आई थी। मां सरस्वती देवी गृहस्थी संभाले सामान्य महिला थी। प्रारम्भिक शिक्षा श्रीनगर तथा स्नातक की उपाधि दयानंद वैदिक महाविद्यालय जम्मू से स्वर्ण पदक के साथ प्राप्त की। इसके साथ प्राप्त 25 रूपए प्रतिमाह की छात्रवृति के कारण बलराज अधिस्नातक अध्ययन पूरा कर सके। अध्ययनशील होने के साथ बलराज हॉकी के अच्छे खिलाड़ी व अच्छे एथलीट थे। 1936 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सम्पर्क में आए मधोक 1942 में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनकर जम्मू-कश्मीर में संगठन खड़ा करने में जुट गए।

कश्मीर समस्या
दयानंद कॉलेज (श्रीनगर) में 15 अगस्त 1947 को विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए प्रोफेसर मधोक ने भारत के विभाजन को कृत्रिम व अस्थायी बताया था। श्री मधोक की मान्यता थी कि जब तक पाकिस्तान का अस्तित्व रहेगा, वह भारत का स्थायी शत्रु बना रहेगा। श्री मधोक की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई है। 1947 में प्रो. मधोक द्वारा प्रकट की गई पाकिस्तान के साथ युद्ध की संभावना, उसके बाद हुए कई युद्धों के बाद भी समाप्त नहीं हुई है।

कूटयुद्ध निरन्तर आज भी जारी है। प्रो. मधोक का प्रयास बयानबाजी तक सीमित नहीं था। कश्मीर में घुसे पाकिस्तानी घुसपेठियों से श्रीनगर को बचाने में प्रो. मधोक ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। प्रो. मधोक ने बिना किसी आधार पर कश्मीर की सत्ता शेख अब्दुला को सोंपने का विरोध किया था। शेख अब्दुला के सत्ता में आने पर श्री मधोक जम्मू चले गए और प्रजा परिषद के माध्यम से कश्मीर का भारत में पूर्ण एकीकरण करने का आन्दोलन चलाया। श्री मधोक धारा 370 के विरोधी थे। श्री मधोक का विरोध नीतिगत था। उनका कहना था कि सभी प्रान्तों में लाखों मुसलमानों ने अपनी इच्छा से भारत में रहना पसन्द किया है तो केवल कश्मीर के मुसलमानों का तुष्टिकरण अनुचित है।

शेख अब्दुला ने, कश्मीर महाराजा द्वारा, कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार नहीं किया था। शेख अब्दुला जनमत संग्रह का राग अलापते रहे जो देश हित के विपरीत था। यदि उस वक़्त की परिस्थितियों में चुनाव करवाना संभव नहीं था तो भी सत्ता अकेले शेख अब्दुला के बजाय राज्य के तीनों संभागों (जम्मू, लद्दाख और कश्मीर) के जन प्रतिनिधि मंडल को सौंपी जानी थी।

शेख अब्दुला के वंशज आज भी कश्मीर के विषय में देश की नीति के विपरीत अपना अलग राज अलाप रहे हैं। यदि प्रो. मधोक की बात मानी गई होती तो देश एक स्थायी समस्या से बच गया होता। जो धन पाकिस्तान व उसके घुसपेठियों से कश्मीर की रक्षा पर खर्च किया जा रहा है वह कश्मीर के विकास पर खर्च हो सकता था। कश्मीर की सत्ता शेख अब्दुला के हाथ में आने पर बलराज मधोक का जम्मू कश्मीर में रहना निरापद नहीं रहा और मजबूरन उन्हें दिल्ली आना पड़ा था।
बलराज मधोक का विवाह कमला जी से हुआ, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थी। इनके दो पुत्रियां हुई।

राजनैतिक जीवन
1948 में दिल्ली आकर श्री मधोक फिर अध्यापन कार्य से जुड़ गए। श्री मधोक दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी कॉलेज में पढ़ाया करते थे। बाद में श्री मधोक डीएवी (दयानन्द एंग्लो वैदिक) पीजी कॉलेज में इतिहास विभाग के प्रमुख भी रहे थे। विद्यार्थी परिषद, भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे मधोक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने। मधोक के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने पहली बार देशभर में चुनाव लड़ा और 35 सीटें जीतीं। वह खुद भी दूसरी बार दिल्‍ली से सांसद बने।

इसके बाद ही जनसंघ की विपक्षी दल के तौर पर पुख्ता पहचान बनी थी। पंजाब में जनसंघ की संयुक्त सरकार बनी थी जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित देश के 8 प्रमुख राज्यों में जनसंघ मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरा था। यह एक बड़ी उपलब्धि थी। यही मधोक के राजनैतिक जीवन का उच्च शिखर था।

इसके बाद पार्टी संचालन को लेकर आन्तरिक मतभेद बढ़ने लगे। अटल विहारी वाजपेई के नेतृत्व में मधोक-विरोधी पक्ष निरन्तर मजबूत होता चला गया और परिणाम स्वरूप 1973 में तीन वर्ष के लिए मधोक को निष्कासन का सामने आया। आपातकाल के दौरान मधोक 18 महीने तक मीसा कानून के तहत जेल में बंद रहे। आपातकाल समाप्त होने पर सभी विरोधी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया तो मधोक उसमें सम्मिलित हुए। बाद में अखिल भारतीय जनसंघ बनाकर उसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया। इस कार्य में मधोक को सफलता नहीं मिली। अंततः मधोक अपनी मृत्यु तक गुमनामी में डूबते चले गए।

अच्छे लेखक
बलराज मधोक बहुत अच्छे लेखक थे। मधोक ने हिंदी व अंग्रेजी में बहुत साहित्य रचा है। समाचार पत्रो के संपादक भी रहे। मधोक ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा मुखर्जी की जीवनी भी लिखी है। मधोक के उपन्यास ‘जीत या हार’ को मधोक की आत्मकथा माना जाता है। विभाजित भारत में मुस्लिम व कश्मीर समस्या पर भी बहुत लिखा है। पाकिस्तान के भविष्य पर भी मधोक ने कलम चलाई है। प्रो. मधोक के देशहित विचारों का अध्ययन कर लाभ लिया जाना चाहिए। बलराज मधोक को वीर सावरकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
बलराज मधोक आज हमारे बीच नहीं है, मगर उनका जीवन कई सीख दे जाता है। उनकी देश व विचार भक्ति अनुकरणीय है। मधोक के मुख्यधारा की राजनीति से अलग होने का लाभ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उठाना चाहा था। कहते हैं कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने मधोक को मंत्रीमण्डल में लेने का प्रस्ताव किया था। साधारण राजनेता उस अवसर का लाभ अवश्य उठाता, मगर मधोक ने स्वीकार नहीं किया।

बलराज मधोक का जीवन हमें यह भी बताता है कि अपने को बुद्धिमान मानकर, खरी खरी कहना, दूसरों का अपमान करना प्रजातन्त्र में नहीं चल सकता। साथ वालों को अपनी बात से सहमत करना भी आवश्यक होता है।

(सलंग्न चित्र- बलराज मधोक श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ)

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