Wednesday, April 24, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेदेश के मीडिया की हालत बंदर के हाथ में उस्तरा जैसी हो...

देश के मीडिया की हालत बंदर के हाथ में उस्तरा जैसी हो गई है

टीवी चैनलों की खबरें और टॉक शो यही संदेश देते हैं कि हमारे देश का मीडिया इरेशनल और पगलाए लोगों के हाथों में कैद है। किसी व्यक्ति विशेष या चर्चित व्यक्ति के नाम का अहर्निश प्रसारण पागलपन है। एक जाता है दूसरा आता है। पहला पागल तब तक रहता है जब तक दूसरा पागल मिल नहीं जाता। यह मीडिया का पागलपन है। हमें जनता की खबरें चाहिए, पागलों की खबरें नहीं चाहिए। यदि यह रिवाज नहीं बदला तो समाचार चैनलों को पागल चैनल कहा जाएगा।

टीवी पागलपन वस्तुतः मीडिया असंतुलन है। मीडिया अपंगता है। मीडिया संचालक अपने को समाज का संचालक या जनमत की राय बनाने वाला समझते हैं। सच इसके एकदम विपरीत है। अहर्निश प्रसारण जनित राय निरर्थक होती है। और चिकित्सा शास्त्र की भाषा में कहें तो पागल की बातों पर कोई विश्वास नहीं करता। उन्मादी प्रसारण राय नहीं बनाता बल्कि कान बंद कर लेने को मजबूर करता है।

मीडिया से जनता की खबरें गायब

मीडिया पागलपन के तीन सामयिक रूप ‘मोदी महान’, ‘कांग्रेस भ्रष्ट’ और ‘विपक्ष देशद्रोही’। टीवी वालों खबरें लाओ। एक बात का अहर्निश प्रसारण खबर नहीं है। चैनलों को देखकर लगेगा कि भारत गतिहीन समाज है। यहां इन तीन के अलावा और कुछ नहीं घट रहा। भारत गतिशील और घटनाओं और खबरों से भरा समाज है। चैनल चाहें तो हर घंटे नई खबरें दिखा सकते हैं। लेकिन पागल तो पागल होता है! एक बात पर अटक गया तो अटक गया!

टीवी एंकर अपने को समाज का रोल मॉडल समझते हैं और टॉक शो में उनकी भाव-भंगिमाओं को देखकर यही लगेगा कि इनका ज्ञान अब निकला! लेकिन ज्ञान निकलकर नहीं आता! वहां सिर्फ एक उन्माद होता है जो निकलता है। उन्माद का कम्युनिकेशन हमेशा सामाजिक कु-संचार पैदा करता है। यह एंकर की ज्ञानी इमेज नहीं बनाता बल्कि उसकी इमेज का विलोम तैयार करता है। एंकर ज्ञानी कम और जोकर ज्यादा लगता है। उससे दर्शक खबर या सूचना की कम उन्मादी हरकतों की उम्मीद ज्यादा करता है। अब लोग टीवी खबरें और टॉक शो पगलेपन में मजा लेने के लिए खोलते हैं। हमारे समाज में पागल लंबे समय से सामाजिक मनोरंजन का पात्र रहा है। पागल के प्रति समाज की कोई सहानुभूति नहीं रही है। न्यूज मीडिया में अचानक यह फिनोमिना नजर आ रहा है कि ‘हम तो अर्णव गोस्वामी जैसे नहीं हैं।’ ‘सारा मीडिया भ्रष्ट नहीं है।’ ’सब चीखते नहीं हैं।’

अब इन विद्वानों को कौन समझाए कि मीडिया पर संस्थान के रूप में ध्यान खींचा जा रहा है, यह निजी मामला नहीं है। मीडिया कैसा होगा यह इस बात से तय होगा कि राजनीति कैसी है? राजनीतिक तंत्र मीडिया के बिना रह नहीं सकता और मीडिया राजनीतिक तंत्र के बिना जी नहीं सकता। ये दोनों एक-दूसरे से अभिन्न तौर पर जुड़े हैं। जब राजनीति में ईमानदारी के लिए जगह नहीं बची है तो मीडिया में ईमानदारी के लिए कोई जगह नहीं होगी। भारत की राजनीति इस समय रौरव नरक की शक्ल ले चुकी है। ऐसे में निष्कलंक मीडिया संभव नहीं है। राजनीति जितनी गंदी होती जाएगी, मीडिया भी उतना गंदा होता जाएगा।

मीडिया की गंदगी राजनीतिक गंदगी का नतीजा

राजनीति की गंदगी से मीडिया तब ही बच सकता है जब वह खबरें खोजे, राजनीति और राजनीतिक दल नहीं। हमारे मीडिया ने खबरें खोजनी बंद कर दी हैं। राजनीतिक संरक्षक-मददगार खोजना आरंभ कर दिया है। फलतः मीडिया में खबरें कम और दल विशेष का प्रचार ज्यादा आ रहा है। यह मीडिया गुलामी है।

टीवी चैनलों के टॉक शो में आने वालों में राजनेता, बैंकर, वकील, राजनयिक, सरकारी अफसर आदि हैं। ये सारे लोग झूठ बोलने की कला में मास्टर हैं। मीडिया की नजर में ये ही ओपिनियन मेकर हैं। इनमें अधिकांश मनो- व्याधियों और कुंठाओं के शिकार और गैर-जिम्मेदार होते हैं। मीडिया ‘इनकी खबर को जनता की खबर’, ‘इनकी राय को जनता की राय’। ‘इनके सवालों को जनता के सवाल’ बनाकर पेश कर रहा है। इस तरह के लोग जब मीडिया में जनमत की राय बनाने वाले होंगे तो सोचकर देखिए समाज में किस तरह की राय बनेगी? मनो-व्याधियों के शिकार की राय कभी संतुलित और सही नहीं होती। वह खुद बीमार होता है और श्रोताओं को भी बीमार बनाता है। यही वजह है आम लोगों में टॉक शो को लेकर बहुत खराब राय है। त्रासद बात यह है कि मनोव्याधिग्रस्त ये लोग अपनी तमाम व्याधियों को सामाजिक व्याधि बना रहे हैं। वे स्वयं सत्तासुख पाने के लिए राय देते हैं और ‘जनता में भी सत्तासुख असली सुख है’ यही भावबोध पैदा करने में सफल हो जाते हैं।

जबकि सच यह है जनता के भावबोध, दुख, सुख और खबरें अलग हैं और उनका टीवी मीडिया में न्यूनतम प्रसारण होता है। अधिकांश समय तो ये मनोव्याधिग्रस्त लोग घेरे रहते हैं। इसी अर्थ में न्यूज चैनल पागल चैनल हैं।

टीवी वाले बताते रहते हैं कि ईमानदार लोगों को सत्ता में आना चाहिए। सवाल ईमानदार लोगों के सत्ता में आने का नहीं है। सवाल यह है कि ताकतवर लोगों को, सत्ताधारी वर्ग के लोगों की शक्ति को कैसे कम किया जाय। सवाल यह नहीं है कि अरविंद केजरीवाल लाओ, सवाल यह है कि कांग्रेस-भाजपा आदि दल जो सीधे सत्ताधारी वर्गों की नुमाइंदगी करते हैं उनको कैसे रोका जाए।

टीवी का काम नेताओं का महिमामंडन नहीं

हत्यारा हत्याएं करता है। लेकिन कारपोरेट घराने, राजनेता, और धार्मिक मनोव्याधिग्रस्त लोग अर्थव्यवस्था और समाज को नष्ट करते रहते हैं, और टीवी चैनल इनका महिमामंडन करते रहते हैं।

कपिल के लाफ्टर शो कार्यक्रम में औरतों पर वल्गर हमले हो रहे हैं। दादी, बुआ आदि की तो शामत आई हुई है। यह कैसा मनोरंजन है जिसमें औरत को निशाना बनाना पड़े। घिन आती है ऐसे हास्य पर। टीवी पर चुनाव की चौपालें अर्थहीन हंगामों में बदल दी गयी हैं। कमाल है। कारपोरेट हस्तक्षेप का !

मीडिया और फेसबुक में वाक्य-वीर यौन शोषण पर खूब शब्द खर्च करते हैं, लेकिन श्रमिक या मीडियाकर्मी के शारीरिक और बौद्धिक शोषण पर चुप रहते हैं। इन शब्दवीरों को यौन शोषण के अलावा शोषण के अन्य रूप नजर क्यों नहीं आते? मीडिया में स्त्री का शारीरिक शोषण गलत है, उससे भी ज्यादा मीडिया में श्रम का शोषण होता है, यौन उत्पीड़न का जो विरोध कर रहे हैं वे मीडियाकर्मियों के शोषण पर बहादुरी से बोलते नहीं है। यौन-उत्पीड़न तो मीडिया में चल रहे बृहद शोषण का छोटा अंश है।

(साहित्यकार, लेखक जगदीश्वर चतुर्वेदी कोलकाता में अध्यापन का काम करते थे। रिटायर होने के बाद आजकल दिल्ली में रह रहे हैं।)

(साभार: janchowk.com)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार